पैर'नॉइआ और प्रॉपगैंडा (Paranoia और Propaganda)

       अंग्रेजी का एक शब्द है, Paranoia (पैर'नॉइआ). ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार इसका अर्थ है - 'इस गलत विश्वास पर आधारित एक मानसिक रोग कि अन्य व्यक्ति आपको हानि पहुंचाना चाहते हैं अर्थात मिथ्या संदेह या वहम का रोग'.

       इंसान के अंदर कहीं न कहीं एक अज्ञात भय रहता है; लेकिन वह अपना ज्ञान बढ़ाकर, सत्य के अन्वेषण द्वारा अपने अंदर के भय पर विजय हासिल करने की कोशिश करता है. सत्य का अभाव इंसान के अंदर के अवास्तविक डर को बढ़ाता है. डरे हुए लोग इकट्ठे होने लगते हैं, डरे हुए लोगों के बीच एक (तथाकथित) मजबूत नेता उभरता है जो विश्वास दिलाता है कि वह बचा लेगा. लेकिन उस नेता को सारी ताकत आम लोगों के अंदर बैठे डर से मिलती है. इसलिए वह कभी नहीं चाहता कि लोगों के अंदर बैठा डर मिटे. यही कारण है कि नित नए भय का माहौल बना रहता है और भय का यह माहौल रचा जाता है प्रॉपगैंडा से.

       आज से लगभग सौ साल पहले 1923 में जेल में सजा काट रहे हिटलर ने अपनी राजनीतिक विचारधारा के साथ आत्मकथा लिखी थी जो 'मीन कैंफ' (Mein Kampf) के नाम से प्रकाशित हुई.
अपनी आत्मकथा के एक अध्याय 'प्रॉपगैंडा व संगठन' में हिटलर प्रॉपगैंडा की अहमियत को रेखांकित करता है. अंग्रेजी के इस शब्द का अर्थ होता है - '(राजनीतिक नेता, दल आदि के लिए समर्थन जुटाने में प्रयुक्त) असत्य या अतिशयोक्तिपूर्ण जानकारी और विचार अथवा एक शब्द में कहें तो दुष्प्रचार.'
      
       इस अध्याय में हिटलर प्रॉपगैंडा के माध्यम से समाज व देश के दिलो-दिमाग को अपने कब्जे में लेते हुए एकाधिकार सत्ता स्थापित करने का रोड मैप प्रस्तुत करता है. वह कहता है, प्रॉपगैंडा की शुरुआत किसी संगठन अथवा पार्टी के औपचारिक गठन से काफी पहले हो जानी चाहिए और इसे सदा आगे-आगे चलना चाहिए. लोग आरंभ में किसी भी पार्टी अथवा किसी व्यक्ति/नेता को स्वीकार करने से हिचकिचाते ही हैं; इसलिए पार्टी अथवा नेता को पर्याप्त प्रॉपगैंडा से पहले लॉन्च करना सर्वथा असफल होता है. यही कारण है कि प्रॉपगैंडा का कार्य सुनियोजित तरीके से चलना चाहिए. आगे वह समझाता है कि यदि किसी नये आंदोलन को खड़ा किया जा रहा हो और उसका मुकाबला एक स्थापित वैचारिकी से हो, जिसे उखाड़ फेंकना हो तो वह बगैर मजबूत प्रॉपगैंडा के संभव नहीं हो सकता; भले ही संगठन अथवा पार्टी कितनी भी मजबूत क्यों न हो और उसके सदस्यों की संख्या चाहे जितनी हो. किसी संगठन का सदस्य होने के लिए एक अतिरिक्त योग्यता, अतिरिक्त साहस और मेहनत की दरकार होती है जबकि किसी का अनुयायी (Follower) होने के लिए कुछ विशेष नहीं चाहिए. हिटलर एक बात रेखांकित करते हुए कहता है कि अधिकतर लोग स्वभावतः मानसिक रूप से आलसी, सुस्त व कायर होते हैं. इसलिए संगठन अथवा पार्टी की सदस्य संख्या के अधिक होने के कारण संगठन कमजोर ही होता है और संगठन का आंदोलन सफल नहीं होता. अतः सदस्य संख्या बढ़ाने की जगह स्वभावतः दिमागी तौर पर काहिल एवं कायर आम लोगों को अनुयायी (Follower) बनाने के दूरगामी फायदे होते हैं और यही काहिल अनुयायी किसी भी आंदोलन को सफलता की बुलंदी पर ले जाते हैं. यहाँ पर हिटलर साफ तौर पर आम लोगों का दिल जीतने अथवा उन्हें अनुयायी बनाने के लिए सुनियोजित प्रॉपगैंडा का सूत्र देता है. अनुयायी जितने अधिक होंगे, संगठन का आकार उतना ही छोटा होगा अर्थात संगठन व पूरे आंदोलन को गिनती के चंद सदस्य भी बुलंदी के मुकाम पर ले जा सकते हैं बशर्ते उनकी प्रॉपगैंडा मशीनरी प्रभावी ढंग से काम करे. प्रॉपगैंडा मशीनरी के प्रभावी ढंग से काम करने पर देश व समाज में पहले से चली आ रही व्यवस्था व विचारधारा से खुद-ब-खुद विश्वास खत्म होता चला जाता है और देखते-देखते उसे उखाड़ फेंक दिया जाता है. प्रॉपगैंडिस्ट अथवा प्रचारक का काम यहीं पर समाप्त नहीं होता बल्कि उसे अनवरत, बगैर थके चल रहे प्रॉपगैंडा को नए-नए रूप में लोगों के दिमाग में बिठाए रखना होता है.
       कहने की जरूरत नहीं कि धीरे-धीरे सच झूठ मालूम पड़ने लगता है और प्रॉपगैंडा द्वारा फैलाया गया तथ्य सबसे बड़ा सच. इस हिटलरी फार्मूले में जब धर्म एवं धार्मिक पूर्वाग्रहों का छौंक मिलता है तो निशाना अचूक हो जाता है. फिर तो सोचने-समझने की शक्ति, विवेक, सब खत्म ! हम खतरे में, हमारा समुदाय, हमारा मजहब, सब खतरे में क्योंकि 'कुछ लोग' तुले हुए हैं, जिनका मूल एजेंडा ही हमारा नुकसान, हमारी बर्बादी है. पैर'नॉइआ नामक यह बीमारी जब हिटलरी फॉर्मेट के तहत फैलती है तो यह किसी भी महामारी से भयानक होती है क्योंकि अपनी बर्बादी की इंतहा के बावजूद इसके मरीज को अहसास नहीं होता कि वह जिसे सच समझ रहा है, वह महाझूठ के सिवाय कुछ और नहीं. पैर'नॉइआ का शिकार आम आदमी अपने जैसी परेशानियों से जूझते दूसरे आम आदमी से नफरत करता है और नफरत करने का कारण उसे बड़ा तर्कसंगत लगता है. वह व्यवस्था से सवाल नहीं करता क्योंकि उसके अंदर गहरे तक यह बात बैठी होती है कि सारी समस्याओं के जड़ में 'कुछ लोग' हैं. डरा हुआ व्यक्ति तरह-तरह के झूठ पर सहज रूप से यकीन करता चला जाता है. इस तरह पैर'नॉइआ और प्रॉपगैंडा एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं, एक दूसरे को ताकत प्रदान करते हैं. पैर'नॉइआ के शिकार लोग प्रॉपगैंडा को फैलाने में उत्प्रेरक का काम करते हैं, तो साथ ही प्रॉपगैंडा लोगों को पैर'नॉइआ का मरीज बनाता है.

       यहाँ एक दिलचस्प बात है कि आज से लगभग सौ साल पूर्व जब जर्मनी में हिटलर प्रॉपगैंडा के प्रसार मे लगा था, महात्मा गांधी सत्य के आग्रह, सत्याग्रह को फैलाने में लगे थे. जब हिटलर 'मीन कैंफ' लिख रहा था, गांधी 'सत्य के प्रयोग' लिख रहे थे.
जब हिटलर जर्मनी के आम लोगों के मन में परत दर परत एक समुदाय विशेष के लिए घृणा बिठा रहा था, तब गांधी भारत में आपसी प्रेम व सद्भाव की हवा बहा रहे थे. जब जर्मनी में आम लोगों के भय की जमीन पर एक अधिनायक उभर रहा था, यहां एक दुर्बल सा अधनंगा फकीर लोगों को हर तरह के भय से मुक्त होने का पाठ पढ़ा रहा था. प्रचार की बुनियाद पर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचने वाला वह अधिनायक राष्ट्रवाद व देशप्रेम के नाम पर आम लोगों के अधिकार छीनने में लगा था, तब भारत में एक कृशकाय गांधी सत्याग्रह की बुनियाद पर अंग्रेजों के साथ-साथ अपने ही देश की उन सामंती ताकतों से लड़ रहा था जो सदियों से जात-पात के नाम पर अथवा जमीन-जायदाद के बल पर आम लोगों का हक मारे बैठे थे. वहां राष्ट्रवाद के नाम पर नागरिकों के अधिकारों का हरण हो रहा था तो उसके बरअक्स गुलाम भारत में आम लोगों के हाथों में असीम अधिकार सौंप दिए जाने की नींव पड़ रही थी.

       अंत में एक सवाल मन में उठता है, आखिर इतनी बात का मतलब क्या ? ऎसी बातों को दुहराने के निहितार्थ क्या हैं ? इसमें नया क्या है ?

       निःसंदेह नया कुछ नहीं. बस इतना ही कि गांधी अपने ही देश में पुराने हो गए हैं और सत्य, प्रेम, सद्भाव की बात दब्बूपने की बात लगने लगी है. वह पुराने दौर की बात थी, अब नया दौर है. वह भारत की बात थी, अब न्यू इंडिया है. भारत का आदर्श व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता में है जहाँ सबसे महत्वपूर्ण है इंसानी हुक़ूक जबकि न्यू इंडिया में व्यक्ति विशेष विलीन होता जा रहा है भीड़-भारत में.
*****
(Subscribe करें एवं नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें.) 
संजय चौबे

टिप्पणियाँ

  1. प्रोपेगंडा तो आज भी फैलाया जा रहा है हिटलर के नाम पर यदि हिटलर द्वितीय विश्व युद्ध का आगाज न करता तो केवल गांधी जी के प्रेम अहिंसा से अंग्रेज भारत छोड़कर नहीं जाते फिर गांधी जी के प्रेम अहिंसा से देश का बंटवारा नहीं टल सका आज देश फिर उसी दोराहे पर खड़ा है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. I am producing the excellent reply from VARIMA ji (from the blog itself, below) :
      प्रेम, सद्भाव के कारण मानव मानव है. पशु होना बड़ा आसान है. हिटलर होना भी आसान है, ढेरों हिटलर मिल जायेंगे लेकिन महात्मा गाँधी होना बहुत मुश्किल है. जैसे पशु से मानव होने के लिए लंबी यात्रा करनी पड़ती है; गाँधी होने के लिए बहुत लम्बी यात्रा करनी पड़ती है. अल्बर्ट आइंस्टीन की बात याद कीजियेगा जो उन्होंने गाँधी जी के लिए कही थी. यदि सत्य और अहिंसा का परिणाम लाखों लोगों की मौत था तो झूठ व नफरत/हिंसा का परिणाम क्या होता ? सच तो यही है कि गाँधी की सुनता कौन था, आज भी सुनता कौन है; लेकिन जैसे-जैसे हम बेहतर इंसान होने की यात्रा पर निकलेंगे गाँधी व बुद्ध की बात समझ में आयेगी. ऐसे समझ में नहीं आयेगी, आ भी नहीं सकती. लेकिन प्रेम व सत्य हम सबकी मंजिल है और रहेगी; गाँधी ही आदर्श रहेंगे, हिटलर नहीं.

      हटाएं
  2. सबसे मजेदार बात यह कि गांधी के सत्य और अहिंसा का परिणाम विभाजन 15 लाख लोगों की असामयिक मौत और स्वयम गांधी जी की ह्त्या के रुप मे हुई।प्रेम सद्भाव जैसी बातें मानव स्वभाव के विप्रीत हैं।हम भूल जाते हैं कि मानव भी एक जानवर है जो विकसित हो गया है लेकिन आदिम युग के मूल्यों को खोया नहीं है।उसका सीधा लक्ष्य है खुद की सुरक्षा और जब वह हमला देखता है तब वह उसका जवाब देता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रेम, सद्भाव के कारण मानव मानव है. पशु होना बड़ा आसान है. हिटलर होना भी आसान है, ढेरों हिटलर मिल जायेंगे लेकिन महात्होमा गाँधी होना बहुत मुश्किल है. जैसे पशु से मानव होने के लिए लंबी यात्रा करनी पड़ती है; गाँधी होने के लिए बहुत लम्बी यात्रा करनी पड़ती है. अल्बर्ट आइंस्टीन की बात याद कीजियेगा जो उन्होंने गाँधी जी के लिए कही थी. यदि सत्य और अहिंसा का परिणाम लाखों लोगों की मौत था तो झूठ व नफरत/हिंसा का परिणाम क्या होता ? सच तो यही है कि गाँधी की सुनता कौन था, आज भी सुनता कौन है; लेकिन जैसे-जैसे हम बेहतर इंसान होने की यात्रा पर निकलेंगे गाँधी व बुद्ध की बात समझ में आयेगी. ऐसे समझ में नहीं आयेगी, आ भी नहीं सकती. लेकिन प्रेम व सत्य हम सबकी मंजिल है और रहेगी; गाँधी ही आदर्श रहेंगे, हिटलर नहीं.

      हटाएं
  3. हमने महात्मा गांधी , नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग को भी देखा है जिन्होंने अपने देश से आगे निकलकर दूसरे देशों को भी प्रभावित किया है । और हमने हिटलर , मुसोलिनी ,सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी भी देखे जिन्होंने अपने देशवासियों से तालियां तो खुद बटोरी लेकिन अपने अपने देश को बर्बाद करके गए । इसलिए टेक्स्ट बुक(गांधी , मंडेला )कोस्ट करिए ताकि आपका फंडामेंटल स्टॉग हो इन कुंज्जियों (हिटलर आदि) के चक्कर में ना पड़िये ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेहतरीन तुलना किया आपने; गाँधी ही आदर्श रहेंगे सदा. प्रेम व सच ही आदर्श रहेगा, नफरत व झूठ नहीं.

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय ब्लॉग

आदमी को प्यास लगती है -- ज्ञानेन्द्रपति

गिद्ध पत्रकारिता

हिन्दी में बोलना “उद्दंडता” है !