चमकते भारत में दुखिया का दुःख !??
भारत चमक रहा है, भारत दमक रहा है. इस चमकते-दमकते भारत ने दावोस में भी अपना झंडा
गाड़ा, जहाँ पृथ्वी ग्रह के सबसे बड़े लोग – सर्वाधिक शक्तिशाली लोग, सर्वाधिक धनी लोग एकत्रित
थे. बीते दिनों हमनें प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती, चित्त को शांत करने वाली सफेदी देखी. स्विस
स्काई रेसॉर्ट, दावोस में चमकते भारत के चेहरे दिखे. वहां भारत के मेहनती लोग थे, जिन्होंने अपनी
मेहनत से दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया था – वहां मुकेश अंबानी थे. वहाँ राहुल
बजाज, सुनील मित्तल, सज्जन जिंदल, नरेश गोयल, आनंद महिंद्रा, उदय कोटक, चंदा कोचर, रवि रुइआ, एन चंद्रशेखरन समेत भारत के सौ से अधिक मेहनतकश थे. कहने की जरुरत
नहीं कि पूरी धरती इनकी मेहनत व लगन का लोहा मान चुकी है.
सफलता का झंडा बुलंद हो
रहा है फिर भी कुछ ‘नेगटिव आत्माएँ’ बेचैन घूम रही हैं. बीते साल इन बेचैन आत्माओं ने न जाने कैसे-कैसे
इल्जाम गढ़े – ‘विकास कपड़े फाड़कर घूम रहा है.’ ‘विकास पगला गया.’ ‘जीडीपी की हालत खराब’. इन्हें नहीं दिखता
कि बीते एक साल में बिलियनअर (Billionaire) की संख्या 20 प्रतिशत बढ़ी है – अब हमारे मुल्क में 101 बिलियनअर
हैं. कलाम साहब ने कहा था न कि बड़े सपने देखो. देखो, बिलियनअर बढ़ गए न. ये बिलियनअर भी डॉलर वाले हैं, रुपये वाले नहीं –
भाई कम से कम सवा बिलियन डॉलर वाली नेटवर्थ.
नेटवर्थ यानी हैसियत और हैसियत उनकी बढ़ती है जो समय के साथ संभावनाओं
को मूर्त रूप देते हैं न कि उनकी जो हर बात पर रोने लगते हैं. रोने से क्या होता
है भला. मंदी के इस दौर में भी ऐसे लोग हैं जो अपनी हैसियत अपनी लगन व मेहनत से
लगातार बढ़ा रहे हैं. आप प्रेरणा हासिल कर सकते हैं मुकेश अंबानी से जिनकी हैसियत उम्मीद
से भी ज्यादा बढ़ी. (हैसियत मतलब संपत्ति होता है भाई, यहाँ ठाकुरों वाले हैसियत
की बात नहीं हो रही है कि वे सड़क पर तलवार भांजते रहे और भंसाली की लीला देखिये कि
पहले दो दिन में ही पचास करोड़ की कमाई हो गई).
अंदाजा है मुकेश भाई की हैसियत कितनी बढ़ी – सोचिये जरा ! ‘फोर्ब्स’ पत्रिका पढ़ा कीजिये.
मुकेश अंबानी की संपत्ति गुजरे एक साल में 67% बढ़कर 38 बिलियन डॉलर हो गई. एक
डॉलर में कितने रुपये होते हैं और एक बिलियन में कितने शून्य – किसी बच्चे से पूछ
लीजियेगा. अजीम प्रेमजी की हैसियत में 26% की बढ़ोतरी हुई है. तो ऐसे में दावोस के
खुशनुमा माहौल में समृद्ध भारत के प्रतिनिधियों ने सवा सौ भारतवासी के चुने गए
प्रतिनिधि के साथ मिलकर कहा –
“टुगेदर वी कैन !”
तो एक और दुहाई दी गई – दावोस में जो हमने किया उसके लिए प्रत्येक भारतवासी
को गर्व करना चाहिये. लेकिन ऐसे में भी कुछ भटकती प्रेतात्मायें भटक रही हैं और न
जाने कैसी-कैसी कविताओं को पढ़ने लग रही हैं जबकि यू-ट्यूब व मंच पर सीना ताने
ढेरों देशभक्त कवि दहाड़ रहे हैं. ऐसे में उन्हें सुनने की बजाय कविताओं की किताबों
को पलटने का क्या मतलब ?? लेकिन भटकती आत्माओं पर किसी का क्या कंट्रोल, उन्होंने किताब
पलटी और उन्हें दो पंक्ति की एक कविता मिल गई –
“मुखिया का मुख जितना बड़ा है
दुखिया का दुःख उतना बड़ा है.” [i]
अब दो पंक्ति की कविता भी होती है क्या. लेकिन अंदेशा है कि दो पंक्ति
की इस कविता को बैन करने के लिए कहीं एक सेना न तैयार हो जाय. वे नेगटिविटी फैला
रहे प्रेतात्माओं की धुलाई कर पूछेंगे – बताओ दुखिया कहाँ है और उसका दुःख क्या है
? पिटे-पिटाये प्रेतात्मा किसी ‘ऑक्सफेम इंडिया’ की सर्वे का जिक्र
करेंगे तो उनकी और धुलाई होगी – “ई का है बे – ऑक्सफेम का कौनो फेम है का रे ?? इसको कौन जानता है
रे. ..... फिर भी बको - ई ऑक्सफेमवा क्या कह रहा है बे.”
बेचैन आत्मा मास्टर जी से पिटे हुए नाक पोंछते बच्चे की तरह
सिसकते-हकलाते हुए कहने की कोशिश करेगी – “सर जी, सर जी !!!!”
“बोल बे, आज हम तुम्हारी सारी बकवास सुन लेते हैं और दुखिया से भी मिल लेंगे.”
“सर जी, पिछले एक साल में देश की कुल कमाई का 73% मात्र एक प्रतिशत लोगों के
पास चला गया है. सर जी, 67 करोड़ भारतीय की कमाई मात्र 1% बढ़ी जबकि सबसे समृद्ध एक प्रतिशत लोगों
की कमाई 20.90 ट्रिलियन रुपये बढ़ी है.”
“ई ट्रिलियन कितना होता है, बे !”
“सर जी नहीं मालूम लेकिन 2017 में सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों की
कमाई जितनी बढ़ी है वह भारत सरकार के 2017-18 के कुल बजट के बराबर है.”
“हूँ...तो ??”
“सर जी, देश के 101 अरबपतियों की संपत्ति पिछले एक साल में 4.89 ट्रिलियन
रुपये बढ़ी है मतलब देश में जितने राज्य हैं उन सबके स्वास्थ्य व शिक्षा के कुल बजट
का 85% ......”
“तो इसमें दुखिया का दुःख क्या है रे ??? अब समझ में आया ई दुखिया बड़े लोगों से
डाह करके जल रहा है. दुनिया में सब जगह साफ़ हो गए लेकिन यहाँ अभी भी ललका झंडा
लिये ढेरों बुढ्ढन प्रेत भटकते रहते हैं. खैर तू बक ले...”
“सर जी, 2010 से प्रत्येक वर्ष अरबपतियों की संपत्ति में सालाना 13% के दर से
बढ़ोतरी हो रही है जबकि आम मजदूर की मजदूरी महज दो प्रतिशत के दर से बढ़ी हैं.”
“हूँ... चल जल्दी-जल्दी बक ले.”
“सर जी, हमारे देश के गाँव के एक मजदूर को 941 साल लग जायेंगे उतना कमाने
में जितना इस देश की चमकती-दमकती कंपनी का टॉप एग्जीक्यूटिव एक साल में कमाता है.
कहने का मतलब कि किसी चमकती कंपनी का बड़ा साहब साढ़े सत्रह दिन में उतना कमा लेता है
जितना गाँव का एक मजदूर पूरे जीवन में कमाएगा.”
“ई ई ... भूका दिया रे.... ई किस्मत की बात है रे.... तू पूजा करता है
? बोल... पूजा-पाठ किया कर... एकदिन सब ठीक हो जायेगा, तेरे भी अच्छे दिन
आयेंगे. लेकिन सुन ऐसे रोकर माहौल मत खराब किया कर....”
“सर जी, भारत का संविधान समानता–बराबरी का हक देता है...”
“क्या बकता है बे... ऊ ... कैसी बराबरी की बात करता है रे... जिसका जो मन हो रहा है ऊ कर रहे हैं... फिलिम वाले सब हमारा अपमान करते
हैं और हम सह लेते हैं... अगर बराबरी की बात करता है तो चल तिरंगा यात्रा निकाल या
उस फिलिम वाले का नाक काट .... समझ तूं --- ई देश ही सब कुछ होता है... देशभक्त मर रहे हैं
और तूं कोनो फालतू का सर्वे पढ़ रहा है....बड़ा आदमी थोड़ा ज्यादा कमा लिया तो तुमको क्या
दिक्कत हो गया बे !!! लेकिन ऊ बतवा तो रहिये गया रे बेचैन आत्मा - ऊ दुखिया कहाँ है
बे.... हमको कहीं दिखा तो नहीं जिसके लिए तूं बड़ा कूद रहा था.. बुलाव दुखिया को - दुखिया
को कौनो दुःख है का बे ???”
[i]
वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति की कवितासंग्रह
‘भिनसार’ से. ‘भिनसार’ मतलब नहीं समझे; गदबेर की बेला में भिनसार नहीं बुझायेगा भाई.
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