जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल


रिचर्ड बाख की एक अनोखी किताब है - जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल ! 10,000 से भी कम शब्दों में सिमटी यह किताब उस समुद्री पक्षी की कहानी है जिसका उड़ना भोजनमात्र की खोज नहीं है. वह उड़ता है आसमान को छूने के लिए, आसमान से भी पार जाने के लिए. अपने खफ़ा हुए तो क्या,
जमात से अपमानित कर बाहर निकाल दिए गए तो क्या, नितांत तन्हा रह गए तो क्या – लेकिन इस परवाज का मकसद भोजन की तलाश मात्र नहीं हो सकता.
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       सुबह हो गई है, सूरज की किरनें समंदर पर एक अनोखी छटा बिखेर रही हैं. मछुआरों की नाव समंदर किनारे लग गई हैं और इसी के साथ हजारों की संख्या में ‘सीगल’ भोजन की तलाश में झुण्ड बना कर इधर – उधर उड़ रहे है – बस खाने को कुछ मिल जाए. कुछ भी हो - मछली हो या केकड़ा.
       तभी एक सीगल शिशु आसमान से तट पर गिरता है और उसकी माँ चीखती है –
       “जॉन ! जॉन ! तुम कब सुधरोगे ? तुम्हारे साथ क्या परेशानी है, बताओ. तुम्हें बाकी सीगल बच्चों की तरह आराम से रहने में क्या दिक्कत होती है. हर घड़ी हवा में कलाबाजी लेने के चक्कर में गिरते – पड़ते रहते हो... अभी तक कुछ खाया क्यों नहीं ? समझो जीवन में और क्या है – बस खाना क्योंकि उसी से तुम्हारी हड्डियाँ हैं, तुम्हारे पंख हैं.”

       लेकिन माँ ! मैं हड्डी व पंख मात्र नहीं हूँ. और मैं तो कुछ जानने की कोशिश कर रहा हूँ. मैं तो बस इतना पता लगाना चाहता हूँ कि हवा में हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं.”
       तब अनुभवी पिता का प्रेम प्रस्फुटित होता है –
       “जोनाथन ! बेटा, करीब आओ. सुनो. सरदी आने वाली है. मछुआरे नाव लेकर चले जायेंगे और मछलियाँ समंदर में काफी नीचे. बेटा, अगर कुछ जानना ही है तो भोजन के बारे में और जानकारी इकट्ठा करो. हमें आसानी से और पर्याप्त मात्रा में भोजन कैसे मिल सकता है – यह पता लगाओ. हवा में कलाबाजियां ठीक है लेकिन इन कलाबाजियों से तुम्हारा पेट नहीं भरने वाला. फिर यह मत भूलना कि तुम्हारे उड़ने का मकसद क्या है – अपने लिए भोजन जुटाना ताकि तुम जीवित रह सको.”       
       यह सीगल शिशु, जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल है- अपने झुंड में सबसे अलोकप्रिय सीगल क्योंकि उसकी सोच और उसके रंग - ढंग बाकी बच्चों से सर्वथा अलग हैं. लेकिन कभी – कभी वह बाकियों की तरह रहने की कोशिश करता. आज पिता के समझाने का उस पर असर हुआ है और वह कुछ दिनों तक बाकी सीगल की तरह जीने का प्रयास करेगा. वह मछली मारने वाली नावों के इर्द गिर्द चक्कर लगाएगा, मछलियों या ब्रेड के टुकड़ों की खातिर डुबकी भी लगायेगा.
       लेकिन अंततः हमेशा की तरह वह इससे ऊब जाता है और एक बार फिर अनंत आसमान में उड़ान भरता है. एक सप्ताह के अभ्यास के बाद वह एक रिकॉर्ड बनाता है - उसके उड़ने की गति किसी भी जीवित सीगल से अधिक हो जाती है. परन्तु इसके बाद भी रुकना नहीं है. एक हजार फीट की ऊँचाई पर वह मात्र छः सेकंड में सत्तर मील प्रति घंटे की गति पकड़ने लगता; लेकिन इस गति पर उसके पंख अस्थिर हो जाते हैं. उसके लिए अपने को संभालना मुश्किल होने लगता है.
       कई बार गिरने व जख्मी होने के बावजूद उसकी प्यास नहीं मिटती है. प्यास ऊँचा, और ऊँचा उड़ने की; प्यास अधिकतम गति में उड़ने की. आज एक बार फिर वह आसमान की थाह लेने उड़ा – दो हजार फीट की बुलंद ऊँचाई और गति – नब्बे मील प्रति घंटा. जोनाथन ने विश्व रिकॉर्ड कायम किया. लेकिन पल भर में उसकी विजयगाथा बिखर जाती है. वह संतुलन खो हवा में डायनामाइट की तरह फट जाता है और देखते – देखते वह समंदर में गिरता है.  
यह सपनों का बिखरना था. रात हो चुकी है और वह समंदर में डूब रहा है. यह जख्मी पंखों व शरीर का वजन नहीं बल्कि विफलता का अहसास है जो उसे गर्त में ले जा रहा है –

“मैं सीगल हूँ, मुझे मेरी औकात का अहसास होना चाहिए था. मुझे बनाने वाले ने ही मेरी सीमा तय कर रखी है. मैं कोई बाज नहीं कि मैं बुलंद आसमान में हवा से बातें कर सकूं. मुझे ये बेवकूफाना हरकत, ये पागलपन बहुत पहले छोड़ देना चाहिए था. मेरे पिता बिलकुल सही कहते हैं कि मैं एक आम सीगल ही तो हूँ... एक कमजोर सीगल, जो उड़ सकता है केवल मछलियों को पकड़ने के लिए.” 
       वह एक आम सा सीगल है और अगर वह बच गया तो एक सामान्य जिन्दगी गुजारेगा. निःसंदेह अब वह अपने कुनबे में किसी को नाराज नहीं करेगा, सब खुश हो जायेंगे. कुनबे को खुश करने के अहसास ने अन्दर जीवन का संचार किया और वह धीरे – धीरे समंदर के तट पर पहुँचा. तट पर कुछ देर पड़े रहने के बाद अपनों की याद जब तीव्र हुई वह उनसे मिलने हेतु कराहते हुए अपने झुंड की तरफ उड़ा. चारो और घुप्प अंधेरा है. उसे यह सोच कर अच्छा लग रहा था कि अब किसी को उससे कोई शिकायत नहीं होगी. अब वह आम सी जिन्दगी गुजारेगा. तभी अंदर से एक आवाज आई – “कितना अँधेरा है ! और कोई भी सीगल आजतक अँधेरे में नहीं उड़ सका है.”
यद्यपि वह सुनना नहीं चाहता था, आवाज तेज होती चली गई –
“जोनाथन ! नीचे उतरो, उड़ना बंद करो. आज तक कोई भी सीगल अँधेरे में नहीं उड़ा. अगर तुम्हे अँधेरे में उड़ना है तो तुम्हारे पास उल्लू की आँखें होनी चाहिए.
जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल ! तुम अँधेरे में सौ फीट की ऊँचाई पर हवा में उड़ रहे हो. 
पलक झपकी और दर्द का अहसास, पल भर पहले स्वयं से किये गए वायदे, सब गायब हो गए – “वह बाज नहीं है. बाज के पास छोटे पंख होते हैं और ऊँचाई पर तेज गति में उड़ने के लिए छोटे पंख चाहिए होते हैं.”
“बाज के पंख छोटे होते हैं !!!!!”

उसे उत्तर मिल चुका था – “मैं भी कितना बड़ा बेवकूफ हूँ ! मुझे बस छोटे पंख ही तो चाहिये. इसमें कौन सी बड़ी बात है.”
जोनाथन ने अपने लंबे परों को समेटा और उड़ान भरी – विफलता और मृत्यु के अहसास से मुक्त होकर. बड़े पंख समस्या हैं, उसने उन्हें शरीर से चिपका लिया – उड़ने के लिए पंखों का किनारा काफी है.
जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल अथाह समंदर के ऊपर तेज गति से अनंत आसमान को चीरता हुआ ऊपर जा रहा था. अब वह स्थिर था, ऊँचाई और गति उसे विचलित करने में सर्वथा असमर्थ थे. पल भर पहले स्वयं से किये गए सारे वायदे – कुनबे को खुश करने के वायदे, वह भूल चुका था. एक हजार फीट.. दो हजार फीट... पांच हजार फीट की बुलंद ऊँचाई....सत्तर मील प्रति घंटा... नब्बे, एक सौ बीस... एक सौ चालीस मील की गति. उन वायदों का अब कोई मोल नहीं था.... उसने उत्कृष्टता के नए आसमान को छुआ था.
गति बढ़ती जा रही है और ऊँचाई भी...
दो सौ चालीस मील प्रति घंटे की गति और आठ हजार फीट की ऊँचाई !!!!!!
जोनाथन को पता था जैसे ही वह अपने लंबे परों को फैलायेगा, उसके शरीर के लाखों टुकड़े हवा में बिखर जायेंगे. लेकिन अब उसे पता चल चुका था कि ऊँचाई और तेज गति में अपने को संतुलित व स्थिर रखने के क्या उपाय हैं. उसने अपनी पराकाष्ठा को प्राप्त कर लिया था....
गति शक्ति है..गति उर्जा है ! गति खुशी है ! और गति विशुद्ध सुंदरता है !
मछुआरों की नाव के इर्द – गिर्द भोजन के टुकड़े मात्र के लिए लड़ते रहना ही जीवन नहीं है. जीवन बस इतने के लिए नहीं हो सकता. और भी बेहतर उद्देश्य हैं – जिसे पाया जा सकता है !
हम अपनी अज्ञानता से ऊपर उठ सकते हैं ! हम अपने कौशल, ज्ञान को साधन बना सकते हैं – अपनी पराकाष्ठा को पाने के लिए !
हम मुक्त हो सकते हैं !
हम उड़ना सीख सकते हैं !
पंख है तो परवाज भी होगा ! परों की सार्थकता उड़ान में ही है.

जोनाथन लिविंगस्टोन धरती पर लौट आया और बड़ी उत्सुकता से सुबह का इंतज़ार करने लगा – उसके अपने कितने खुश होंगे. उसकी इस खोज से पूरी सीगल प्रजाति ऊँचाई में उड़ने का आनंद पा सकेगी. सब कितने खुश होंगे. वह अधीर होने लगा – सूरज जल्द से जल्द निकले.
अंततः सूरज उगा और सुबह हुई.
सुबह होते – होते समंदर के तट पर सीगलों की भारी भीड़ एकत्रित हो गई. सीगल प्रजाति की पूरी नीति – नियंता समिति भी उपस्थित थी. नीति – नियंता समिति के अध्यक्ष ने कहा –

“जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल ! तुम सबसे बीच में खड़े हो जाओ – बिलकुल केंद्र में.”

केंद्र में खड़े होने के दो मतलब थे – या तो महानतम सम्मान मिलेगा या ‘पतित’ घोषित किया जाएगा. उसने सोचा - ये बात इतनी जल्दी सब तक पहुँच गयी. लेकिन मैं कोई सम्मान नहीं चाहता. मुझे नेता बनने की भी कोई चाहत नहीं. मैं तो ‘अपनों’ से बस वही बताना चाहता हूँ जो मैंने पाया है और सभी उसे पा सकते हैं. यह सोचते – सोचते वह आगे बढ़ा और केंद्र में जाकर खड़ा हो गया.
“जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल !” सबसे बुजुर्ग सीगल ने आवाज दी –
“.....केंद्र में खड़े हो जाओ, बिलकुल केंद्र में ताकि पूरी सीगल प्रजाति उस पतित को ठीक से देख ले जिसने अपनी प्रजाति की महान परंपरा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचायी है....
सीगल भाइयों और बहनों ! ठीक से देख लो इस पतित को जिसके गैरजिम्मेदाराना व निकृष्ट कृत्यों की वजह से पूरा कुनबा आज शर्मिंदा है...”

जोनाथन को कुछ पल लगे इस तुषारापात से संभलने में, उधर सबसे अनुभवी सीगल का व्याख्यान जारी था –
“...जोनाथन ! एक दिन तुम्हें तुम्हारी गलतियों का अहसास होगा. तुम्हे पता चलेगा कि आसमान में आवारागर्दी से कुछ प्राप्त नहीं होता. उससे भोजन नहीं मिलता, उससे जीवन नहीं मिलता. आखिर हम सभी लंबी उम्र की ही तो कामना करते हैं और लंबी उम्र के लिए भोजन ही चाहिए. शायद तुम्हें एक दिन अक्ल आयेगी.” 
आजतक किसी ने भी नीति नियंता समिति के अनुभवी सदस्यों के समक्ष जुबान नहीं खोली थी. लेकिन यह जोनाथन था –
“गैरजिम्मेदाराना व निकृष्ट कृत्य ? मेरे भाइयों व बुजुर्गवार ! जीवन का उद्देश्य क्या है, इसे खोजना और उसके लिए काम करना – गैरजिम्मेदाराना है ? हजारों सालों से हमने मछली के एक टुकड़े की तलाश में अपना जीवन गवायाँ है. हमारे जीवन का और भी बड़ा उद्देश्य है – कुछ और सीखना है, कुछ और खोजना है, कुछ और पाना है. आज आपके परिवार के एक सदस्य ने कुछ खोजा है, कुछ पाया है. आप मुझे बस एक मौका दें, मैं आपको दिखाता हूँ कि मैंने क्या पाया है....”
थोड़ी देर के लिए सीगलों का पूरा कुनबा बुत समान हो गया. फिर वे एक स्वर में चीखे –
“यह नासमझ हमारे बीच के भाईचारे के लिए खतरा है.” – एक साथ सबने आँखें बंद कर ली और उसकी तरफ पीठ कर खड़े हो गए.

पूरी प्रजाति ने उसे पतित घोषित कर कुनबे से बाहर कर दिया. वह अकेला रह गया, नितांत अकेला. उसने अपने अन्दर दुःख महसूस किया – यह दुःख अकेलेपन की पीड़ा के कारण नहीं था. वह इस कारण से दुखी था कि दूसरे सीगल उस गौरव, उड़ने के गौरव, पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं जिसके वे हक़दार हैं. वे एक बार आँखे खोल, बस उसे देख तो लेते – लेकिन उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं.
इस पीड़ा के अहसास के बावजूद वह हर दूसरे दिन कुछ नया सीखने लगा - हवा से बातें करना, हर प्रकार के तूफान में भी अपने को स्थिर व संतुलित रखना, हवा में सो जाने की कला. धीरे – धीरे उसने वह सब हासिल कर लिया जिसके बाद उसे इस बात का गम नहीं रहा कि उसने अपने जीवन में क्या खोया था. उसे उपलब्धि का अहसास था. उसने जान लिया कि वह एक शानदार लंबा जीवन जीयेगा. एक आम सीगल का जीवन छोटा क्यों होता है – इसका राज वह जान गया था. वे कम जीते हैं क्योंकि बोरियत, चिडचिडापन, भय और क्रोध से निर्मित अवसाद उन्हें जीने नहीं देता. जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल हर तरह के अवसाद से मुक्त हो चुका था.

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