गिव अप कंट्रोल, सर !
(कंपनियाँ अथवा आर्गेनाईजेशन अपने स्टाफ सदस्यों को टीम बिल्डिंग, लीडरशिप,
मोटिवेशन आदि का प्रशिक्षण देती रहती हैं और तमाम मैनेजमेंट गुरुओं की चर्चा होती
है, तमाम किताबों का जिक्र निकलता है. लेकिन हमारे यहाँ, भारत में होने वाली इन
चर्चाओं में कोई रिकार्डो सेमलर की किताबों की चर्चा नहीं करता क्योंकि रिकार्डों
सेमलर मैनेजमेंट की पारंपरिक सोच की बुनियाद को हिलाता है. इस रविवार टीकाचक में
रिकार्डो सेमलर की एक किताब पर बातचीत करते हैं.)
रिकार्डो सेमलर की “द सेवेन डे वीकेंड” पढ़ते समय बरबस एक कविता की कुछ
पंक्तियाँ याद आ रही थीं –
“पुत्र का आग्रह है
खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए
ताकि सुनिश्चित हो सके
हर घडी नूतन हवाओं का प्रवाह
पिता अनुभवी है, लेकिन
और उसने देखा है
हवा में उड़ते छप्परों को
वह निर्देश जारी
करता है
क्या जरुरत है खिड़की खोलने की
जबकि
मौजूद हैं घर में पोलर व सिन्नी के पंखे
शीघ्र ही आ जायेगा एयरकंडीशनर
लेकिन आज पता नहीं क्यों
पुत्र ने जिद पकड़ ली है”
ब्राज़ील की एक मशहूर पंप निर्माता कंपनी “सेमको” के मालिक से उसका इक्कीस
वर्षीय पुत्र कंपनी की स्थिति और कार्य प्रणाली को लेकर वक्त - बेवक्त ऐतराज जाहिर
करता रहता है. ये ऐतराज बढ़ कर विवाद का रूप ले लेता है और पुत्र अपनी अलग दुनिया
बनाने/ बसाने के फैसला करता है. अंततः पिता और पुत्र के बीच एक समझौता होता है कि
कम्पनी की पूरी कमान पुत्र के हाथ में होगी – वह जो चाहे फैसला ले सकता है. इस तरह
इक्कीस वर्षीय पुत्र 1980 में “सेमको” की कमान अपने हाथ में लेता है और इसी
के साथ बिज़नेस मैनेजमेंट की एक अलग दुनिया का आरंभ होता है. इस परिवर्तन के साक्षी
रहे सेमको के एक वरिष्ठ मैनेजर, जो बाद में कंपनी का मानव संसाधन (एच आर) गुरु
बने, उस दौर को याद करते हुए कहते हैं –
“मुझे कंपनी के नए मुखिया से मिलने के लिए बुलाया गया था.
मैं एक कमरे में बैठा था कि एक लड़का आया. मैंने सोचा कोई चपरासी है. वह मेरे पुत्र
की उम्र का था, लेकिन वह करीब आ बैठ गया और मुझसे सवाल पूछने लगा. वह कोई और
नहीं रिकार्डो सेमलर था.”
![]() |
रिकार्डो सेमलर |
कंपनी की कमान अपने हाथ में लेने के कुछेक दिनों के अन्दर रिकार्डो सेमलर ने
अपने पिता के समय के दो तिहाई वरिष्ठतम मैनेजरों को एक झटके में बर्खास्त कर नूतन
प्रयोगों को आजमाना शुरू किया. “सेमको” के बिज़नेस दुनिया की अनोखी कंपनी बनने की
गाथा का जिक्र रिकार्डो सेमलर अपनी किताब “द सेवेन डे वीकेंड” में करता है. यहाँ
उल्लेखनीय है कि रिकार्डो सेमलर की पहली किताब “मेवरिक (Maverick)” भी सेमको में
किये गए प्रयोगों पर है और दुनिया भर में इसकी एक करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी
है.
“द सेवेन डे वीकेंड” पाँच भागों में बंटा है जिसके पहले भाग की शुरुआत तीन
मासूम सवालों से होती है –
1.
हम सोमवार अपराह्न में
फिल्म देखने क्यों नहीं जा सकते जबकि रविवार को आराम से दफ्तर का काम कर लेते हैं.
2.
हम अपने बच्चों को दफ्तर
क्यों नहीं ले जा सकते जबकि हम घर पर काम ले आते हैं.
3.
हम ऐसा क्यों सोचते हैं कि काम
का विपरीत “छुट्टी” होता है जबकि वास्तव में यह छुट्टी न होकर “बेकारी” है.
उपरोक्त तीन सवालों से किताब और इसके लेखक के संबंध में पर्याप्त संकेत मिलता
है कि यह सालों की स्थापित सोच के ऊपर करारा प्रहार है जिसे पचा पाना थोड़ा मुश्किल
है. ब्राजील के एक अरबपति और राजनीतिज्ञ, सीनेटर जोस मैसेडो, ने एक कांफ्रेंस में
‘सेमको’ की चर्चा पर पूछा था –
“मिस्टर सेमलर, आप अन्य सवालों के जवाब देने से पहले यह बता
दें कि आप लोग किस ग्रह से हैं ?”
सेमलर के लिए यह सवाल अनोखा नहीं था, कंपनी की कमान लेने के दसेक साल बाद 1990
के दशक में ‘सेमको’ की फिलॉसफी ने दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया. बी बी सी
टेलीविज़न समेत दर्जनों टेलीविजन चैनलों ने इस पर विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया. ‘सेमको’
दुनिया भर के 76 विश्वविद्यालयों के लिए केस स्टडी है तो इस कंपनी की कार्यप्रणाली
271 बिज़नेस स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल है. दुनिया भर से लोग इस कम्पनी की
कार्यप्रणाली से परिचित होने और इसके कर्मचारियों से मिलने के लिए आने लगे. एक ऐसा
भी दौर आया कि 17 माह की लम्बी वेटिंग लिस्ट बन गयी, तब जाकर कम्पनी ने इस तरह के
दौरे पर रोक लगाने का फैसला लिया क्योंकि कर्मचारियों को लगने लगा मानों वे किसी
चिड़ियाघर के पशु हों.
आखिर ऐसी क्या ख़ास बात थी जिसने इतनी चर्चा को जन्म दिया ? रिकार्डो सेमलर परत
दर परत हमें ‘सेमको’ के नूतन संसार में ले जाते हैं. कम्पनी का न तो कोई आधिकारिक
ढाँचा है न कोई स्थापित संगठनात्मक रूप. कोई मानव संसाधन (एच आर) डिपार्टमेंट
नहीं. कोई बिज़नेस प्लान नहीं, कोई ‘मिशन स्टेटमेंट’ नहीं, कोई ‘कैरियर प्लान’ अथवा
‘जॉब विवरण’ नहीं. आम तौर पर कंपनी बगैर किसी सी ई ओ के ही काम करती है. काम करने
का कोई स्थापित मानक नहीं और कर्मचारियों के मॉनिटरिंग अथवा सुपरविजन की तो शायद
ही कभी जरुरत पड़ती हो. इन सबसे ऊपर कम्पनी की सफलता का मतलब लाभ और ग्रोथ से परे
है. रिकार्डो सेमलर जोर दे कर कहते हैं ‘सेमको’ की सफलता का मतलब केवल अधिक लाभ
कमाना या भारी बिज़नेस ग्रोथ नहीं बल्कि इनसे परे और बहुत सारे मानकों के संतोषजनक
होने से है.
फिर कंपनी कैसे ऑपरेट करती है, यह दुविधा तब और बढ़ जाती है जब हमें पता चलता
है कि अधिकतर कर्मचारियों, वरिष्ठतम मैनेजरों, सीनियर एग्जीक्यूटिव के लिए न तो
कोई ऑफिस होता है, न स्थायी डेस्क, न सेक्रेटरी और तो और कोई ऑफिसियल टाइटल भी
नहीं. जब ये सब नहीं तो फिर ‘बिज़नेस कार्ड/ विजिटिंग कार्ड’ का क्या मतलब ?
एक और बात जिस पर हम चौंक जाने को मजबूर होते हैं – कर्मचारियों के आने -
जाने का का कोई तय समय नहीं उसके ऊपर उनकी मॉनिटरिंग के लिए कोई सुपरवाइजरी
व्यवस्था नहीं.
सेमलर कंपनी की कार्य प्रणाली से जुड़े रहस्यों से एक एक कर पर्दा उठाते हैं.
निर्णय लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से बाल सुलभ कौतुहल “क्यों” पर आधारित है. जब
तक इस “क्यों” का जवाब नहीं मिलता, निर्णय को कार्य रूप नहीं दिया जाता. इस मौलिक
सवाल “क्यों” में सभी शामिल होते हैं. मीटिंग में शामिल सदस्य बेवकूफी की हद तक
अंत तक “क्यों” दुहराता है. यह “क्यों” हर स्तर के कार्य में भी लागू होता है. कोई
कर्मचारी अमुक कार्य अमुक तरीके से क्यों कर रहा है, यह सवाल अक्सर पूछ लिया जाता
है. सेमलर अपने एक बुजुर्ग डायरेक्टर, जे वेंद्रामिम के अनुभव का उल्लेख करते हैं.
वेंद्रामिम ने एक कर्मचारी से पूछा –
“यह काम तुम इस तरीके से क्यों करते हो ? क्या तुम कोई और
तरीका नहीं अपना सकते?”
कर्मचारी ने जवाब दिया –
“मेरे बॉस ने जैसा बताया है, मैं
उस तरीके से काम कर रहा हूँ.”
जे वेंद्रामिम के जोर देने पर कि वह उस काम के लिए स्वयं अपना कोई बेहतर तरीका
निकाल सकता था. इस पर उस कर्मचारी ने अपना पुराना अनुभव शेयर किया कि वह ऐसी एक
कोशिश के लिए अपने बॉस से झिड़की खा चुका है. बहुत पहले उस कर्मचारी ने बॉस के
समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा था -
“मैं ऐसा सोच रहा था कि.....”
इस पर उसके बॉस ने तत्काल उसे टोका –
“सोचना ? विचार करना ? तुम यहाँ सोचने और विचार करने के
लिए नहीं हो. यह मेरा काम है. तुम्हें जैसा कहा जा रहा, वैसा करो.”
सेमलर वेंद्रामिम की बात को दुहराते हैं –
“यह कर्मचारी जीवन में फिर कभी काम करते समय विचार नहीं
करेगा. यह किसी भी संगठन के लिए ठीक नहीं है. अगर लोग भयभीत होते हैं वे नए
प्रयोग करना छोड़ देते हैं. ‘सेमको’ में हमें डरे हुए लोग नहीं चाहिए. हम चाहते
हैं कि कम्पनी के प्रत्येक व्यक्ति को मालूम हो कि कंपनी में कहाँ क्या हो रहा है.
हम चाहते हैं वे सवाल करें – ‘क्यों’.
किताब के पहले भाग में सेमलर कंपनी में लागू फ्लेक्सिबल वर्क शेड्यूल का भी
जिक्र करते हैं. फ्लेक्सिबल वर्क शेड्यूल अर्थात कर्मचारियों को दफ्तर आने –
जाने के समय की आज़ादी. लोग जब चाहे दफ्तर आयें, जब चाहे जायें. 1980 के दशक
में जब इसे कंपनी में लागू किया गया, जिसने भी इसके बारे में सुना उसने इसके शीघ्र
ही असफल हो जाने की बात की. भला यह कैसे हो सकता है कि जिसकी जब मर्जी तब दफ्तर/
फैक्ट्री आये. फैक्ट्री की असेंबली लाइन का क्या होगा ? ऐसी सूरत में फैक्ट्री में
अनवरत (लगातार) उत्पादन कार्य कैसे होगा, भला ? सारी आशंकाएँ गलत साबित हुईं – एक
कर्मचारी ने अपने बाएँ - दायें देखा, उनसे उनके और अपने आने का समय तय किया.
फैक्ट्री एक पल के लिए भी बंद नहीं हुई, दफ्तर का काम एक सेकेंड के लिए भी बाधित
नहीं हुआ.
इसके बाद सेमको के कर्मचारियों ने सप्ताह में किस दिन और कितने घंटे काम
करेंगे - यह फैसला स्वयं करना आरंभ कर दिया. आगे चल कर वे कब, कितने घंटे और कहाँ,
क्या काम करेंगे – इन सब का निर्णय कर्मचारियों के हाथ में आ गया. कंपनी इस संबंध
में कोई फरमान जारी नहीं करती.
रिकार्डो सेमलर लिखते हैं अभी भी तमाम लोग यह मानते हैं कि अगर हरेक आदमी को
काम करने के अपने घंटे (वर्क ऑवर) चुनने की आज़ादी दी गयी तो जीवन अस्त व्यस्त हो
जाएगा. पत्रकार कहते हैं ऐसा होने पर समाचार पत्र समय पर नहीं आएगा, डॉक्टर की
आशंका है कि ऑपरेशन को रद्द करना पड़ेगा क्योंकि हो सकता है ‘एनेस्थेटिस्ट’ समय पर
न आये. कलाकार कहते हैं हो सकता है मंच पर पर्दा उठाने वाला ही नहीं हो.
ट्रांसपोर्ट के विशेषज्ञ कहते हैं ऐसे में यातायात की तो कल्पना नहीं की जा सकती.
तब सेमलर जोर से कहते हैं –
बकवास ! नॉनसेंस !
मानव जाति की तारीफ़ में कसीदे कसने वाले यही लोग – अपने बारे में कितना बढ़िया
ख्याल रखते हैं ! क्या कोई जिम्मेदार व्यस्क इतना लापरवाह हो सकता है कि उसके देर
से पहुँचने के कारण ऑपरेशन थिएटर में एक मरीज की मौत हो जाए; क्या कोई पत्रकार
अपने प्रेस को ठप कर समय पर हेडलाइन न भेज कर फिल्म देखने चला जाएगा ! ट्रेन का
ड्राईवर प्लेटफ़ॉर्मों पर इंतजार करते 45,000 पैसंजरों को अधर में छोड़ अपनी पोती को
स्कूल से लाने चला जाएगा, है न !
सालों पहले लोगों ने ठीक यही कहा था जब सेमको में फैसला लोगों के हाथों में
छोड़ा गया था.
अगली कड़ी थी, कर्मचारी काम करने के लिए अगर ऑफिस न आना चाहे तो ? सेमलर टेक्नोलॉजी
को दुधारी तलवार कहते हुए हमारी आदतों में आये एक परिवर्तन को लेकर एक बेबाक सवाल
उल्लेख करते हैं – “हमने छुट्टी के दिन ऑफिसियल ई मेल का जवाब देना तो सीख लिया
है लेकिन सोमवार को ऑफिस के समय पर फिल्म देखने जाने पर आत्मग्लानि क्यों ?” इसी के साथ तय किया गया अगर संभव हो, कोई भी
अपने घर से काम कर सकता है. साथ ही सेमको में “सेटेलाईट ऑफिस” की शुरुआत हुई अगर
किसी के लिए घर पर काम करना सुविधाजनक न हो. यह “सेटेलाइट ऑफिस” पूर्णरूपेण किसी भी
तरह के नियंत्रण से मुक्त है – कोई बॉस नहीं. लोग जब चाहें, जैसे चाहें, जितनी देर
चाहें – काम करें. इस तरह सेमको के हर कर्मचारी का सातों दिन सप्ताहांत के आनंद से
भरा रहने लगा.
कुल मिला कर रिकार्डो सेमलर की ‘सेमको’ हर तरह के बॉस/ नियंत्रण से
मुक्त – स्वंतत्र कर्मचारियों के जन्म लेने की कहानी है. सेमलर इस पूरी गाथा
को तार्किक तरीके से समझाते हैं.
आज़ादी कोई आसान दशा नहीं, आजादी हमारे जीवन को “केयरफ्री” नहीं बनाती – यह
जीवन की कठिन जिम्मेदारियों को लेने की शुरुआत है. लोगों के लिए यह बड़ा सुविधाजनक
होता है अगर उन्हें कोई निर्णय न लेना पड़े. किसी के नेतृत्व में, किसी के दिशा -
निर्देश पर काम करना हमेशा बड़ा आसान होता है. इस प्रकार कर्मचारियों की आज़ादी में
सबसे बड़ा फायदा संगठन का ही है.
इसके बाद उत्पादकता (प्रोडक्टिविटी) के सबसे बड़े अवरोधक – तनाव (स्ट्रेस) का
जिक्र आता है. सेमलर का कहना है तनाव हमारी अपेक्षाओं और हमारी वास्तविकताओं के
बीच का अंतर है. सुबह की शुरुआत से ही यह अंतर बढ़ता चला जाता है. घर से समय पर
निकलने की अपेक्षा थी, मगर वास्तविकता है कि पंद्रह मिनट की देरी हो गयी. फिर
ट्रैफिक का जाम. दोपहर में खाने के बाद एक झपकी - “कैटनैप” लेने की चाहत तो टेबल
पर फाइलों का अंबार. घर में बीमार माँ को डॉक्टर को दिखाने या बेटी को स्कूल से
लाने की चाहत तो दूसरी ओर सर्वज्ञात वास्तविकता ! कुल मिलाकर किसी भी संगठन को
दीमक की तरह चाटता ‘तनाव’.
योग्यतम व्यक्तियों, टैलेंटेड एक्जीक्यूटिव/ मैनेजरों से भरे संगठन, जहाँ के
समर्पित लोग छुट्टियों में अथवा देर रात तक काम करते रहते हैं, की उत्पदाकता (प्रोडक्टिविटी)
भी जब कम होती है तो सेमलर की बात सचमुच
प्रासंगिक हो जाती है. सेमलर का कहना है सरसरी निगाह में देखने से लगता है कि ट्रैफिक
की जाम में फंसे कर्मचारियों के बर्बाद होते समय और इस कारण बढ़ते तनाव की समस्या
से बचने के लिए सेमको में फ्लेक्सिबल वर्क ऑवर और सेटेलाइट ऑफिस की शुरुआत हुई.
लेकिन बात इतनी ही नहीं है. हर व्यक्ति की शारीरिक चाहत एक जैसी नहीं होती. किसी
व्यक्ति को सुबह के नौ बजे तक सोना अच्छा लगता है अब उसका दफ्तर आठ बजे खुलता हो
तो उसकी उत्पादकता कैसी होगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है. हो सकता है किसी
व्यक्ति का तन और मन इस तरह से ट्यून हो कि वह शाम के आठ बजे से अपनी अधिकतम
उत्पादकता दे सकता
है, ऐसे में अगर उसका दफ्तर शाम के छ: बजे बंद हो जाय तो इसका साफ़ मतलब है कि
वह व्यक्ति अपनी उत्पादकता के चरम पर पहुँचना लगभग असंभव है. इसका दूसरा पहलू भी
है - बहुत संभव है कर्मचारी की घरेलु जरुरत दफ्तर की टाइमिंग से टकराती हो. उदाहरण
के तौर पर घर में नवजात शिशु या किसी बीमार सदस्य के होने की दशा में दफ्तर में
अनजाने ही कर्मचारी के ख़राब परफॉरमेंस का कारण होता है. सेमको में दो हफ्ते के
‘पैटरनिटी लीव’ का प्रावधान होने के बावजूद किसी भी कर्मचारी ने पिता बनने पर इस
छुट्टी का उपभोग नहीं किया क्योंकि वह अपनी जरूरतों के मुताबिक दफ्तर/फैक्ट्री में
काम कर सकता है. सेमलर का साफ़ कहना है कि सब के लिए एक समान स्टैण्डर्ड
कार्यावधि (वर्क ऑवर) उत्पादकता कम होने का एक बड़ा कारण है.
कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि कर्मचारियों की दफ्तर अथवा फैक्ट्री में
उपस्थिति तो सुनिश्चित की जा सकती है, लेकिन उनकी क्षमता का शत प्रतिशत दोहन और
अधिकतम उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए हर घड़ी नूतन प्रयोगों के लिए तैयार रहने
की जरुरत है.
कंपनियों/ संगठनों में लम्बी अवधि तक दिए जाने वाले महंगे ‘मोटिवेशनल
ट्रेनिंग’ और इन ट्रेनिंगों के कुल परिणाम – “व्यर्थ – सब बेकार” का उल्लेख करते
हुए सेमलर का एक अलग नजरिया है. मोटिवेशन के लिए बस एक भरोसा चाहिए कि किसी भी
कर्मचारी का हित कंपनी का सबसे बड़ा हित है और एक बात अगर कोई कर्मचारी अपने
वर्तमान काम/ असाइनमेंट को ‘एन्जॉय’ नहीं कर पा रहा तो कोई भी मोटिवेशनल कार्यक्रम
उसमे स्थायी मोटिवेशन पैदा नहीं कर सकता. उस कर्मचारी को “परिवर्तन” चाहिए – कोई
दूसरा काम. कम्पनी के अन्य विभागों, अन्य डेस्क में उसे काम करने देने का मौका दे
यह मदद अवश्य करनी चाहिए कि स्टाफ खुद को, अपनी चाहत को समझ सके. अगर किसी काम के
करने में कोई स्टाफ दीवानगी के आलम तक जा सकता है तो उस कम्पनी का हित तो अपने आप
सुरक्षित हो जाएगा. सेमको में पूरी कोशिश इसी बात की होती है.
सेमलर कहते हैं कम्पनी में लागू किया गया हर फैसला तर्क की कसौटी पर परखा गया
है. उत्पादकता या स्टाफ की क्षमता के शत प्रतिशत दोहन हेतु आवश्यक है कि कम्पनी के
केंद्र में उसका स्टाफ रहे. यह एक विचित्र विसंगति है कि अगर किसी कम्पनी के
कर्मचारी अपना शत प्रतिशत नहीं देते तो शायद ही कोई कम्पनी हो जो इसके लिए अपनी
नीतियों को जिम्मेदार ठहराती हो. कोई भी कर्मचारी ख़राब ढंग से काम नहीं करना चाहता,
कोई भी ख़राब माल (प्रोडक्ट) नहीं बनाना चाहता. कर्मचारियों के मोटिवेशन (या
मोटिवेशन से भी कहीं ऊपर कुछ ऐसा जिसके लिए शब्द नहीं मिल रहा) को बनाये रखने
सेमको में अनवरत कुछ चलता रहता है – एक ही काम से पैदा होने वाली उब से बचने के
लिए ‘जॉब रोटेशन’, ‘सेल्फ मैनेजमेंट’, ‘रिवर्स इवैल्यूएशन’ और न जाने क्या क्या.
‘सेल्फ इन्सटिंक्ट’ पर दौड़ते अनेकों लोग कई गुना कम तनख्वाह पर भी सेमको में नौकरी
को लालायित रहते हैं और यहाँ सालों की वेटिंग लिस्ट के बावजूद नौकरी हेतु
प्रतीक्षारत रहते हैं. अंततः सेमलर की बात सत्य साबित होती दिखती है कि – “पैसा
ही सब कुछ नहीं”.
किताब के अंतिम अध्यायों में सेमलर आने वाले दौर में काम करने के बेहतर तरीकों
की तलाश में
कंपनी के प्रबन्धकर्ताओं से उनके पाखण्ड और दोहरे मानदंड पर सवाल खड़े
करते हैं –
Ø
हम अपने कर्मचारियों से यह
क्यों कहते है कि हम उन पर भरोसा करते हैं जबकि उनके घर जाने पर उनके डेस्क की
तलाशी लेते हैं ? यहाँ तक कि उनके घर तक हम जासूसी करते है.
Ø जब हम राष्ट्र के रूप में लोकतंत्र लाने (यानि देश के
शासक को चुनने के अधिकार) के लिए लड़ने को तैयार हों तो उसी समय दफ्तर में अपना बॉस
चुनने के अधिकार के बारे में सोचते तक क्यों नहीं ?
सेमलर ने किताब में रह - रह कर वक्त की जरुरत को रेखांकित किया है –
ऑर्डर ऑफ़ द डे : गिव अप कंट्रोल, सर !
लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है. सेमलर को पता है एक व्यक्ति के रूप में हम भले
ही व्यवस्था को लाख कोसते रहें, हम अपने लिए एक सुविधाजनक दुनिया चाहते है जिसमें
हमें कोई निर्णय न लेना पड़े. हमारे लिए कोई और निर्णय लेता रहे ताकि इससे जुड़े हर
जोखिम से हम बचे रहें और अंत में अपनी परेशानी के लिए किसी और को जिम्मेदार ठहरा
अवसाद से मुक्त हो चैन की नींद ले सकें. सेमलर इसीलिए एक व्यक्ति के रूप में हमें
चुनौती देते हैं –



साफ़ है सेमलर एक नूतन व्यवस्था की बात करते हैं. यह आज या आज नहीं तो आने वाले
कल की जरुरत है और इसके लिए आवश्यक है सबसे पहले अपनी बासी सोच और मान्यताओं से
मुक्ति. हम बगैर सोचे समझे परम्परा की लकीर पीटते जीवन यात्रा करते रहते हैं और
अपनी मान्यताओं को उचित ठहराने की खातिर “महाजन येन गताः सो पन्थाः” का अनवरत जाप
भी करते हैं. बासी सोच की चादर ओढ़ भविष्य की यात्रा नहीं हो सकती, भविष्योन्मुख
होने की पहली शर्त है इस चादर को तथा इससे जुड़े (तथाकथित) सुरक्षा बोध को उतार
फेंकना. जैसे ही हम ऐसा करने का साहस जुटा लेंगे, रिकार्डो सेमलर की ‘सेमको’ कहीं
दूर की कौड़ी नहीं होगी.
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