भगत सिंह को जानते हैं ? भाग-3

       कहने की जरुरत नहीं कि लोगों को भगत सिंह का नाम आकर्षित करता है. पिछले रविवार को टीकाचक में भगत सिंह की बात निकलने पर कई साथियों की प्रतिक्रिया आयी कि वे भगत सिंह के बारे में व उनके लेखन को पढ़ना चाहते हैं. कुलदीप नैयर द्वारा लिखित भगत सिंह की जीवनी पढ़ी जा सकती है. 223 पृष्ठों में सिमटी यह जीवनी ‘सरफरोशी की तमन्ना’ नाम से राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित है. इसमें भगत सिंह के दो महत्वपूर्ण लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ ?’ और ‘बम का
दर्शन’ भी शामिल है. इसके अतिरिक्त आधार प्रकाशन, पंचकूला ने ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज नाम से भगत सिंह का समग्र लेखन प्रकाशित किया है. चमन लाल के संपादन में प्रकशित यह किताब 478 पृष्ठों की है और इसकी भूमिका भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह ने लिखी है.
       पढ़ना कम हुआ है और आज का भीड़-भारत किताबों की जगह अपनी धारणाओं को पुष्ट करने हेतु ‘प्रॉपगंडा सामग्री को तरजीह देने में लगा है. फिर भी सच जानने की भूख बनी रहती है. ऐसे में किताबों के अतिरिक्त कोई और उम्मीद नहीं. इसलिए भीड़-भारत अंततः किताबों की ओर लौटने के लिए मजबूर होगा क्योंकि इस दौर के प्रायोजित झूठ और अफवाह से मोहभंग होना ही है और सच जानने की चाह में, भारत की खोज में किताबों के अतिरिक्त हमारे पास कोई और विकल्प नहीं. किताबों ने अनेकों जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया है. भगत सिंह तमाम क्रांतिकारियों में बिल्कुल अलग से दिखते हैं तो इसके पीछे निःसंदेह किताबों का रोल रहा है. कुलदीप नैयर भगत सिंह के पुस्तक प्रेम का जिक्र करते हुए लिखते हैं – ‘बचपन से ही उन्हें किताबों का जुनून रहा था.’
       फाँसी से पहले भगत सिंह के वकील प्राणनाथ मेहता उनकी आखिरी इच्छा जानने के लिए जेल में उनसे मिले. भगत सिंह ने मुस्कराकर मेहता का स्वागत करते हुए पूछा कि क्या वे उनके द्वारा मँगवाई गई किताब ‘द रिवोल्यूशनरी लेनिन ले आये थे. मेहता ने किताब उनकी तरफ बढ़ा दी तो वे खुशी से झूम उठे और फ़ौरन ही इसे पढ़ने लगे, मानो उन्हें इस बात का अहसास हो कि उनके पास ज्यादा समय नहीं था. मेहता के जाने के बाद जेल के अधिकारियों ने उन्हें बताया कि उनकी फाँसी का समय ग्यारह घंटे पहले रखा जा रहा था. उन्हें अगले दिन सुबह छः बजे की बजाय उसी शाम सात बजे फाँसी दी जायेगी. भगत सिंह ने तब तक किताब के कुछ ही पन्ने पढ़े थे. उन्होंने पूछा – “क्या आप मुझे एक चैप्टर पढ़ लेने देंगे.”
       जीवन के अंतिम क्षणों में भी किताब के लिए यह भूख भगत सिंह को रचती है. फाँसी के पूर्व जेल के अंतिम दो वर्षों में उन्होंने विश्व ज्ञान के श्रेष्ठतम को पढ़ा. चमनलाल लिखते हैं - ‘जीवन के अंतिम दो वर्षों में भगत सिंह ने अपने व्यक्तित्व का श्रेष्ठतम रूप उजागर किया.’ भगत सिंह के लेखन के संबंध में आगे वे लिखते हैं – ‘.....16 से 23 वर्ष (उम्र) के बीच का यह लेखन कम नहीं है. इस उम्र में ऐसे प्रौढ़ लेखन का एकाध उदाहरण जो ध्यान में आता है वह रूसी जनवादी युवक दार्शनिक दोब्रोल्यूबोव की है, जिसका देहांत 24 वर्ष की आयु में हो गया था, लेकिन जिसका भौतिकवादी दार्शनिक चिंतन चकित कर देने वाला है.”
       भगत सिंह चिंतन के स्तर पर मार्क्सवादी विचारधारा को अपना चुके थे, साथ ही वे लेनिन से भी बेहद प्रभावित थे. आज के पूँजीपतियों व नए तरह के साम्राज्यवादियों/उपनिवेशवादियों की प्रॉपगंडा मशीनरी ने देश में जो हालात पैदा किये हैं, उससे भगत सिंह की वह चिंता सच होने लगती है जिसे उन्होंने अपनी माँ विद्यावती कौर को लिखे पत्र में जाहिर की थी –
       “माँ, मुझे कोई शक नहीं है कि एक दिन मेरा देश आज़ाद होगा. लेकिन मुझे डर है कि गोरे साहबों द्वारा छोड़ी गई कुर्सियों पर भूरे साहब बैठ जायेंगे.”
       माना वामपंथी विचारधारा की अपनी खामियों व अंतर्विरोधों के कारण इससे मोहभंग हुआ है लेकिन उसके बरक्स खड़ी की गई पूंजीवादी व्यवस्था के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं. धीरे-धीरे वंचित और अधिक वंचित होता चला जा रहा है और संशाधनों/संपत्तियों पर चंद लोग काबिज होते जा रहे हैं. आम आदमी के मौलिक सवालों से ध्यान भटकाने के लिए छद्म राष्ट्रवाद व धर्म का सहारा लिया जा रहा है. ऐसे में भगत सिंह की नास्तिकता में एक समाधान छुपा है. फाँसी से ठीक पहले जेल के वार्डन चरत सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसाहकर उन्हें वाहे गुरू को याद करने के लिए कहा. भगत सिंह ने मुस्कराकर जवाब दिया –
       “मैंने अपनी पूरी जिंदगी में कभी भी उसे याद नहीं किया. उल्टे मैं गरीबों की दुर्दशा के लिए भगवान को कोसता रहा हूँ. अगर मैं अब उससे प्रार्थना करूँगा तो वह कहेगा, ‘कितना डरपोक आदमी है, मौत को सामने देखकर मुझे याद कर रहा है.”
       भगत सिंह की नास्तिकता किसी प्रतिक्रिया या भावनाओं में बहने के कारण नहीं थी बल्कि यह उनके गहरे चिंतन का निचोड़ था. भगत सिंह की नास्तिकता गरीब व आम आदमी के जीवन में क्रान्ति ला सकती है, उन्हें भयमुक्त कर सकती है क्योंकि राजसत्ता व पूँजीवादी व्यवस्था धर्म व ईश्वर का इस्तेमाल आम आदमी के जीवन में क्रांति की संभावना को ख़त्म करने के लिए करती है – सब ईश्वर की माया है; आदमी के हाथ में क्या है, उसका गरीब अथवा धनी होना ईश्वर के हाथ में है. इसके अतिरिक्त आम लोगों के बीच व्याप्त छद्म आस्तिकता कि उसका धर्म सबसे महान है और उसका धर्म खतरे में है, एक खतरनाक खेल है. इस खेल में एक समुदाय अपने जैसे दूसरे समुदाय के खिलाफ लड़ता है जिनकी समस्याएँ एक जैसी होती हैं, जो अन्यथा बिल्कुल एक जैसे होते हैं. लेकिन अपने धर्म व ईश्वर की रक्षा हेतु वे आम लोग लड़ते-भिड़ते रहते हैं और इन सबके बीच कोई अपनी रोटी सेंक रहा होता है. थोड़ी सी तार्किकता कि ईश्वर यदि सचमुच है तो भला वह और उसका धर्म इतना कमजोर कैसे हो सकता है कि उसकी रक्षा उसके द्वारा बनाये गये इंसान को करना पड़े. इस मसले पर बात करने पर तमाम तार्किकता को ताक पर रखकर लोग उग्र हो उठते हैं – ये श्रद्धा की बात है, आप इस संबंध में कोई सवाल नहीं कर सकते हैं. भगत सिंह इस खतरनाक श्रद्धा के प्रति आगाह करते हैं –
       “सिर्फ श्रद्धा और अंधश्रद्धा बहुत खतरनाक है. यह मस्तिष्क को निष्क्रिय और व्यक्ति को प्रतिक्रियावादी बना देती है. यथार्थवादी होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को प्राचीन आस्था को उसके समस्त रूप में चुनौती देनी होगी.”

       चुनौती भरे इस समय से भिड़ने के लिए किताबों के लिए भगत सिंह का जुनून और ओढ़ी गई नकली आस्तिकता के बरक्स एक तार्किक सोच, एक सच्ची नास्तिकता चाहिए अन्यथा पाकिस्तानी शायरा फहमीदा रियाज़ की बात सच होती चली जा रही है –
         “तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
         अब तक कहाँ छुपे थे भाई
         वो मूरखता, वो घामड़पन
         जिसमें हमनें सदी गँवाई
         आखिर पहुँची द्वार तुम्हारे
         अरे बधाई बहुत बधाई.

         प्रेत धर्म का नाच रहा है
         ...............................”

टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छा लिखा। नास्तिकता के विचार को आगे ले जाने का विचार बहुत उज्ज्वल है।बधाई।

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  2. मेरा मानना है कि जो वास्तविक आस्तिक है वह सृष्टि के रचयिता को एक अंतिम और एकमात्र सत्य स्वीकार करेगा। दुनियावी प्रतिकों में उलझी धर्मांधता और अंधता उस अटल सत्य और विज्ञान का भद्दा मज़ाक है। भगतसिंह पर प्रस्तुत जानकारी चकित करती है तो अंदर के विश्वास को दृढ़ भी।

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