केशव नहीं आयेंगे, लेकिन हताश मत होना....
आखा तीज या अक्षय
तृतीया से जुड़ी मान्यताओं की फेहरिश्त लंबी है. इसी दिन त्रेतायुग का आरम्भ हुआ
था, गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थीं, महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश से महाभारत
लिखवाना शुरू किया था, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम व सौभाग्य की देवी
अन्नपूर्णा का भी जन्म हुआ था और आखा तीज के दिन ही भगवान शिव ने कुबेर को धन –
संपदा का प्राधिकार सौंपा था.
तमाम मान्यताओं के
साथ एक मान्यता यह भी है कि आखा तीज के दिन हुआ विवाह बहुत ही मंगलदायी सिद्ध होता
है. विवाह हेतु सबकी मंगल कामना होती है लेकिन अगर अबोध बच्चों की शादी का आयोजन
हो तो किसी भी विवेकी मन में आशंकाओं का घर करना स्वाभाविक है. साथ ही यह भी सत्य
है कि मान्यताओं को विवेकी और तर्कशील बातें नहीं सुहाती क्योंकि उनका एक तर्क
होता है –
“यह हमारी सनातन परंपरा है और इसे भगवान ने
बनाया है.”
राजस्थान में आखा
तीज के दिन बाल विवाह की पुरानी परंपरा रही है जबकि सालों पहले इसे अपराध घोषित
किया जा चुका है. तमाम प्रयासों के बावजूद इस आपराधिक कृत्य को जड़ से समाप्त नहीं
किया जा सका है. हाँ, इसे समाप्त करने की कोशिश करने वाले परंपरा और व्यवस्था के
दानवी भंवर में फँस अपना सब कुछ लुटाते रहे हैं. ऐसे ही कुछ लोगों में से एक नाम
का ख्याल आता है – “भँवरी देवी.”
भँवरी देवी !
भँवरी देवी जयपुर
से पचपन किलोमीटर दूर के एक छोटे से गाँव भटेरी के कुम्हार परिवार में जन्मी थी.
इस गाँव में गुर्जरों का बर्चस्व था, जो जात – पात की परम्परा में कुम्हारों से
उत्तम जाति मानी जाती है. 1985 में भँवरी देवी राजस्थान सरकार की महिला विकास
परियोजना के तहत साथिन बनी. अपने जज्बे की वजह से वह धीरे – धीरे गाँव में
लोकप्रिय हो गई और सभी उसे अपनी साथिन मानने लगे. लेकिन एक आखा तीज उसके जीवन में
बवंडर लेकर आया और सब कुछ तहस नहस कर गया.
1992 का आखा तीज –
राजस्थान सरकार ने इस दिन होने वाले बाल विवाह को रोकने के लिए एक व्यापक अभियान
छेड़ा और महिला विकास परियोजना के सदस्यों से यह कहा गया कि वे बाल विवाह को रोकने
के लिए गाँव वालों को मनाएं, लेकिन यह आसान नहीं था. गाँव वाले हों या ग्राम
पंचायत के प्रधान – किसी के लिए इस सरकारी अभियान का कोई मतलब नहीं था.
यद्यपि भँवरी देवी
साथिन थी, इस मसले पर उसके साथ कोई नहीं था. वह लाख कोशिश करती रही लेकिन कोई उसकी
बात सुनने को राजी नहीं था और यह तय हो गया कि उसके गाँव के राम करण गुर्जर की एक
साल की नवजात बच्ची की शादी होकर ही रहेगी. बात बढ़ने पर जिले के डी एस पी और सब
डिवीज़नल ऑफिसर (एस डी ओ) आखा तीज के दिन इस नवजात बच्ची की शादी रुकवाने के लिए
भटेरी पहुँचे. शादी रुकी नहीं, टल गयी – बस थोड़ी देर के लिये. सुबह के दो बजे इस
आपराधिक कृत्य को अंजाम दे दिया गया – उस बच्ची की शादी हो गयी.
इस अपराध के लिये
कोई पुलिस कार्यवाही नहीं हुई. किसी को दंडित नहीं किया गया, सिवाय भँवरी देवी के.
भँवरी देवी के परिवार का हुक्का – पानी बंद हो गया. अब कोई भी न तो इस कुम्हार
परिवार के बनाये मिट्टी के सामान खरीदता न उसे कुछ बेचता. उसके पति की पिटाई होने
लगी. साथ ही महिला विकास परियोजना के अधिकारी के साथ भी धक्कामुक्की हुई और अंततः
भँवरी देवी साथिन नहीं रही – उसे इस काम से हटा दिया गया.
यह सब तो केवल
शुरुआत थी, बवंडर आना अभी शेष था. कहते हैं आखा तीज के दिन ही दुःशासन ने महान
भारत की भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण करने की कोशिश की थी जो भगवान श्री कृष्ण
की वजह से घटित न हो सका. आखा तीज के दिन से ही भँवरी देवी के इर्द - गिर्द
दुशासनों के ताकतवर हाथ बढ़ने लगे और कुछ माह पश्चात एक शाम जब वह अपने पति के साथ
खेत में काम कर रही थी, दुशासनों की फ़ौज बिल्कुल करीब आ गयी. उसके पति को पीट कर
अचेत करने के बाद एक नहीं, पाँच - पाँच दुःशासन उसकी तरफ बढ़े. वह तड़फड़ाती रही, तीन
उसे जमीन पर दबोचे रहे और दो ने बारी – बारी बलात्कार किया – लेकिन भगवान
श्रीकृष्ण नहीं आये.
दुःशासन अभी और भी
थे. पुलिस स्टेशन पर एक दुःशासन ने उसके लहंगे को उतरवा कर साक्ष्य के रूप में जमा
कराया, फिर भी केशव नहीं आये. अपने पति के रक्तरंजित साफे से उसने अपने को ढका.
केशव नहीं आये और
प्राइमरी हेल्थ सेंटर के डॉक्टर ने मेडिकल परीक्षण करने से इनकार कर दिया क्योंकि
वह पुरुष था. बलात्कार की दशा में कानूनन 24 घंटे के अन्दर मेडिकल परीक्षण होना
चाहिये लेकिन उसे प्राइमरी हेल्थ सेंटर से जयपुर के सवाई मान सिंह हॉस्पिटल रेफ़र
कर दिया गया. यह राज्य की राजधानी का
हॉस्पिटल था लेकिन यहाँ के डॉक्टर ने भी मना कर दिया, उसे मैजिस्ट्रेट का आदेश
चाहिये था. मैजिस्ट्रेट ने आदेश देने से मना कर दिया क्योंकि उसके काम करने का समय
ख़त्म हो चुका था. दूसरे दिन जब तक
मैजिस्ट्रेट ने आदेश दिया और डॉक्टर ने उस आदेश की तामील की, सब कुछ समाप्त हो
गया. केशव फिर भी नहीं आये.
केशव फिर भी नहीं
आये. एक के बाद एक दुःशासन चीर हरण करते चले जा रहे थे, लेकिन वह भँवरी देवी थी और
उसमें अभी भी कुछ बचा था. शायद इसलिए कि लोग, भले ही अँधे हों, एक बार अपनी महान
धरती पर काबिज दुशासनों की अंतहीन श्रृंखला को देख सकें. इस दफा दुःशासन न्यायाधीश
के रूप में था. पाँच जज बदल गए लेकिन फैसला नहीं सुनाया जा सका. अंततः छठे
न्यायाधीश ने न्याय किया –
“...... यह
बलात्कार हो ही नहीं सकता क्योंकि जिन पर आरोप लगा है वे अगड़ी जाति के लोग हैं और
एक ब्राह्मण पर भी आरोप लगाया गया है. ये लोग एक नीच जाति की महिला के साथ
बलात्कार नहीं कर सकते.”
केशव फिर भी नहीं
आये. दुःशासन जनप्रतिनिधि के रूप में मंच पर आया, वह राज्य का एक विधायक था. उसने
इन आरोपियों के निर्दोष घोषित होने पर राज्य की राजधानी, जयपुर, में रैली निकाली
और उसकी पार्टी ने भँवरी देवी को झूठा करार दिया.
इसके बाद मामला
राजस्थान हाई कोर्ट में गया और उल्लेखनीय है कि घटना के पंद्रह साल बाद तक हाई
कोर्ट में इस मामले पर केवल एक बार चर्चा (सुनवाई) हुई थी. केशव फिर भी नहीं आये.
दुशासनों के बीच अकेली भँवरी देवी आज भी अकेली अपनी राह चली जा रही है और तथ्य बता
रहे हैं वह अकेली नहीं रही. वह एक आंदोलन है और देर से ही सही, नतीजे सामने आ रहे
हैं – बलात्कार की पीड़िता अब शर्म से मुँह छुपाने की जगह मुँह खोलने लगी है,
राजस्थान में बाल विवाह की घटनाओं में कमी आयी है.
आज जब साल दर साल
बाजार की ताकतें आखा तीज या अक्षय तृतीया के सौभाग्य का जिक्र करती फिर रही हैं,
बरबस भँवरी देवी सामने आ जाती है लेकिन सिसकती हुई नहीं, कोई देवी बन कर नहीं. वह
एक नारी है और जो कमजोर नहीं है, बस यही कहते हुए –
“केशव नहीं आयेंगे. उनके आने की प्रतीक्षा
भी मत करना. वे तुम्हें नहीं बचायेंगे. बस तुम ही हो जो स्वयं को बचा सकती हो. उठना, लड़खड़ाते ही सही, लंगड़ाते ही सही लेकिन
उठना.... और नजर मिला कर बात करना. वे
तुम्हें बेशर्म कहेंगे, बेशर्मी ही सही लेकिन नजरें मत झुकाना.... ”
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(फरवरी 2017 में प्रकाशित किताब 'वह नारी है...' में संकलित)
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