आइये, भजन-कीर्तन करते हैं !
पूरा देश भजन-कीर्तन के मूड में लग रहा है. ग्रैंड
दिवाली के अवसर पर सरयू नदी के तट पर हमने एक विश्व रिकॉर्ड बनाया और शीघ्र ही हम
विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति भी स्थापित करेंगे. दीपावली के दूसरे दिन हमने जय बाबा
केदारनाथ का उद्घोष किया और शीघ्र ही केदारनाथ के एक अति भव्य व दिव्य स्वरुप का
दर्शन संभव होगा. यह सब बाबा की प्रेरणा से बाबा के बेटे के माध्यम से हो रहा है.
श्रद्धा की
अपनी माया है. वह मायावती थी – उसने भी तो मंदिर बनाये थे, प्रतिमा स्थापित की थी;
और तो और जीते जी अपनी ही मूर्ति लगवा ली. काबा देखा है, आपने ! वैटिकन सिटी देखी
है, आपने ! लेकिन यहाँ अपने आराध्य देव के लिए कुछ किया नहीं कि घर के ही चार दुष्ट
चौदह सवाल खड़े करने लगते हैं. आप भले ही कुछ कहो, कुछ करो हम भगवान राम के त्रेता
युग को इस धरती पर उतार कर रहेंगे. पुष्पक विमान भी उतरेगा, बंदर-भालू भी आयेंगे.
सब कुछ भव्य होना चाहिये – देश चमकता हुआ दिखना चाहिये. सब कुछ अति भव्य - रोड शो
याद है न ! जहाँ ईश्वर की कृपा होगी, वहाँ लक्ष्मी होंगी और जहाँ लक्ष्मी होंगी
वहाँ सब कुछ भव्य ही तो होगा. भव्यता, शानदार जलसे व समारोह इस ‘न्यू इंडिया’ की पहचान
हैं. हमारे हर इवेंट ग्रैंड होने चाहिये, क्योंकि विशालता में दिखता है हमारा
सामर्थ्य, दिखती है - हमारी समृद्धि.
समृद्धि नहीं सर, उसका नाम संतोषी कुमारी था –
भात-भात कहते हुए मर गई.
नहीं ! बिल्कुल गलत ! इस न्यू इंडिया में वह भूख
से नहीं, मलेरिया से मरी थी. सब बदनाम करने की साज़िश है. और एक बात सत्तर साल आपने
क्या किया – देश को बर्बाद करके छोड़ा.
सर, माई-बाप ! हुजूर ! मेरी ओर देखिये तो भला –
मैं कौन हूँ. मेरी औकात तो देखिये. बड़ी आस से सबका साथ – सबका विकास व पंद्रह लाख
के लिए आपके पीछे लगा था. अब जब भी जुबान खोलता हूँ, आप धमकाने लगते हैं. वैसे भी
मेरा क्या है – भात–भात न सही, राम-राम करते हुए मर जाऊँगा. राम-राम करते ही तो
दिन गुजार रहा हूँ – जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये.
मुख में हो
राम नाम राम सेवा हाथ में,
तू अकेला नाहिं प्यारे राम तेरे साथ में |
विधि का विधान जान हानि लाभ सहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ||
तू अकेला नाहिं प्यारे राम तेरे साथ में |
विधि का विधान जान हानि लाभ सहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ||
ज़िन्दगी की
डोर सौंप हाथ दीनानाथ के,
महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे |
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ||
महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे |
धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ||
लेकिन हुजूर ! इस भजन की एक पंक्ति परेशान कर
रही है – ‘किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा !’ ये लाइन कुछ गड़बड़ है – अभिमान
से जब तक सीना नहीं फुलाया तब तक मान नहीं मिलता. इसीलिए तो आप लगातार सीना फुलाते
रहते हो. इतना अभिमान ! बाप रे बाप – बहुत गरजते हो भाई ! हमेशा गुस्से में क्यों
रहते हो भाई ! वो तो हमारी बच्ची थी, भात-भात कहते हुए मर गई; वो तो हमारे बच्चे
थे – ऑक्सीजन की कमी से मर गए ! हमें तो गुस्सा नहीं आता क्योंकि हम तो राम जी की
भजन पर यकीन करते हैं -
आशा एक रामजी से दूजी आशा छोड़ दे,
नाता एक रामजी से दूजे नाते तोड़ दे |
नाता एक रामजी से दूजे नाते तोड़ दे |
लेकिन हम जैसे ही जुबान
खोलते हैं – आप चिल्लाने लगते हो, सत्तर साल का हिसाब मांगने लगते हो. अरे भाई,
मेरी सरकार तो आप ही हो – माई-बाप. सरकार, आपलोगों ने ही पिछले महीने सत्तर साल का
हिसाब-किताब बड़े तार्किक ढंग से न्यूयॉर्क में,
“..... क्या कभी अपने अंदर
झाँककर यह सोचा है कि भारत और पाकिस्तान साथ-साथ आजाद हुए थे। दुनिया में आज भारत
की पहचान IT के superpower
के रूप में है और पाकिस्तान की पहचान एक दहशतगर्द मुल्क के रूप में
है, एक आतंकवादी देश के रूप में है। इसकी वजह क्या है? .............. हमने विश्व प्रसिद्ध Indian Institutes of
Technology बनाए, Indian Institutes of Management बनाए और All India Institute of Medical Science जैसे
बड़े अस्पताल बनाए। लेकिन आपने क्या बनाया? आपने आतंकवादी
ठिकाने बनाए, terrorist camps बनाए। हमने scholars पैदा किए, engineers पैदा किए, doctors पैदा किए। आपने क्या पैदा किया? आपने दहशतगर्द पैदा
किए, जेहादी पैदा किए। आपने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और हक्कानी नेटवर्क
पैदा किए। आप जानते हैं ना कि doctors मरते हुए लोगों को
बचाते हैं और आतंकवादी, जिन्दा लोगों को मारते हैं।”
माई-बाप ! हम जानते हैं कि इतिहास बदला नहीं जा सकता
फिर भी आप कोशिश में लगे हो, चलो ठीक है. आज आप भले ही इतिहास बदलने की कोशिश कर
रहे हो, त्रेता युग को साक्षात धरती पर उतारना चाहते हो - पूरी दुनिया के सामने
सत्तर साल में बने जिस भारत का नाम अभिमान से ले रहे हो उसकी बुनियाद को हिलाने में सत्तर साल लगे. अब नहीं मालूम अगले सत्तर साल में हम कैसे
होंगे.
दौर के मुताबिक़ हम सभी भजन-कीर्तन करने लगे हैं, आगे
और भी उत्साह से करेंगे. भजन के बोल भी बदलेंगे. हमें मालूम है जिस तरह के भजन
में हम लीन रहें हैं, उस भजन की अब जरुरत नहीं. अब तो जोश भरने वाले भजन चाहिए. नए
दौर का नया भजन चाहिए. हमारी नसें फड़फड़ायेंगी, खून खौलेगा – भात के न मिलने पर
नहीं; इस बात पर भी नहीं कि इसी भारत में एक फीसदी धनपतियों के पास अठावन प्रतिशत
लोगों की कुल संपत्ति से भी अधिक संपत्ति क्यों और कैसे हो गई. जोश में रहेंगे हम,
दिव्य दर्शन भी करते रहेंगे लेकिन कभी भी सवाल नहीं पूछेंगे कि एक व्यक्ति के एक
शाम के खाने का खर्च किसी के पूरे परिवार की सालाना आय का कई गुणा अधिक कैसे हो सकता
है. हम भजन करते रहेंगे. नए दौर का भजन हमारे अंदर गरमी पैदा करेगा जरुर, लेकिन बिगड़ी व्यवस्था के विरुद्ध रफ़ीक आज़ाद की कविता ‘भात दे हरामजादे’ नहीं फूटेगी. हम देशद्रोही नहीं, इसीलिए हम सड़ती व्यवस्था के विरुद्ध रफ़ीक आज़ाद के बोल नहीं दुहराएंगे –
‘मेरी भूख की ज्वाला से
कोई नहीं बचेगा,
भात दे हरामजादे
नहीं तो खा जाऊँगा
तेरा मानचित्र’
हम भजन-कीर्तन करते रहेंगे.
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