तीन कवितायें...

देव- बीमार व कैदी

क्यों होता है
आमतौर पर
एक दरवाजा मंदिर में
और होता नहीं
एक भी झरोखा
कल पूछा था देवदूत से

देवदूत के चेहरे पर उभरी
लाचारी व दर्द की रेखाएं

अगर होंगे झरोखे
परमात्मा हो जायेगा स्वस्थ
और उसे कैद रखना होगा मुश्किल
अगर हुए एक से अधिक दरवाजे

दूत के चेहरे पर दर्द था
क्योंकि उसका देव बीमार है
और लाचारी
क्योंकि बेडियाँ नहीं काट सकता
                                          19.09.1996 

पुत्र का आग्रह है

पुत्र का आग्रह है
खिड़कियां खोल देनी चाहिए
ताकि सुनिश्चित हो सके
हर घड़ी नूतन हवाओं का प्रवाह

पिता अनुभवी है, लेकिन
और उसने देखा है
हवा में उड़ते छप्परों को
वह निर्देश जारी करता है
क्या जरुरत है खिड़की खोलने की
जबकि
मौजूद हैं घर में पोलर व सिन्नी के पंखे
शीघ्र ही आ जायेगा एअरकंडीशनर

लेकिन आज पता नहीं क्यों
पुत्र ने जिद पकड़ ली है
खिड़कियां खोल देनी चाहिए

पुत्र की जिद
पिता के लिए परेशानी है
लेकिन यह एक सुखद करवट है
क्योंकि हाल के वर्षों में
नचिकेताओं ने जन्म लेना बंद कर दिया था

यद्यपि यह तथ्य है कि
हाल के वर्षों में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ी है
और आंकड़े बता रहे हैं
वृद्धों का अकेलापन बढ़ा है
बावजूद इसके कि
हाल के वर्षों में
पुत्रों ने पिता की अवज्ञा नहीं की थी   
                                                वर्ष 2002

एक अदद कुएँ की तलाश है

एक अदद कुएँ की तलाश है
जिसकी परिधि हो, भले ही
कुछेक इंच
पानी हो जिसमें, भले ही
एकाध बाल्टी
लगा न सकूँ, भले ही
मैं अपनी पूरी छलांग

लेकिन,
होने चाहिए उसमें कुछ कीड़े – मकोड़े
मुझसे कमतर व बदसूरत मेंढक
हों जिसमें कुछ मेंढकियां
जिन्होंने देखा न हो
कभी भी बाहर के समंदर को,
उसके फैलाव को 

रहूँ मैं उनके लिए अप्रतिम, अतुलनीय
और इस तरह कायम रहे मेरी पहचान
उस कुएँ में,
संकरा, अंधेरा, छोटा हो वह, भले ही

क्योंकि
सृष्टि के हर मेंढक के लिए आवश्यक है
एक कुएँ का होना,
जिसमें सुरक्षित रहे उसकी पहचान.
                                                            09.02.2006
(कविता संग्रह ‘अवसान निकट है’ में संकलित)







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