सॉलिड साथी


स्कूलों में गरमी की छुट्टियाँ हो गई हैं. अब गरमी की छुट्टी में शहर के बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ कहीं और निकल पड़ते हैं, पहले बच्चे गाँव जाते थे. जैसे भी हुआ हो लेकिन सच यही है कि इस ग्लोबल धरती के मानचित्र में भले ही गाँव दिखते हों, गाँव बहुत दूर चले गए हैं – हमारी सोच से, हमारी संवेदनाओं से, हमारी दृष्टि से.
 टीकाचक में भी पहले गरमी व सर्दी की छुट्टियों में बड़ी गहमा-गहमी रहती थी. अब सन्नाटा पसरा रहता है. बगीचा मृत्युशय्या पर लेटा है, उसके पेड़ एक-एक कर अदृश्य हो चुके हैं और तालाब, जिसमें बच्चे घंटों डुबकी लगाते ही रहते थे और निकलने का नाम नहीं लेते थे, पट चुका है.
वह भी पांचवी कक्षा तक नियमित रूप से हर गरमी की छुट्टी में टीकाचक जाता रहा था. कहने का मतलब वह अंतिम बार फिफ्थ क्लास की गरमी की छुट्टी में टीकाचक गया था. सुबह उठकर वह सीधे बगीचे पहुँचता और बम्बईया आम के टपकने का इंतज़ार करता. बम्बईया आम के इंतज़ार में उसके साथ कई और भी रहते थे - कुछ उसकी तरह छुट्टियों में शहर से गाँव आने वाले शहरी बच्चे थे लेकिन बहुतायत में टीकाचक के मूल बारहमासी बासिंदे ही होते थे. कहने की जरुरत नहीं कि टपकते आमों को लेकर संघर्ष होता, खेमे-बंदी होती और अंततः पंचायत भी होता. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खेमेबंदियों की तरह यहाँ भी न तो स्थायी मित्र होते, न स्थायी दुश्मन – दुनिया है तो बड़ी तरल (लिक्विड) व हम इस तरल दुनिया में बहते पदार्थ, कभी इसके संग कभी उसके संग. लेकिन इस तरल दुनिया में कुछ ठोस भी होते हैं – सॉलिड. तो टीकाचक में बम्बईया आम को लूटने का संघर्ष हो या फिर कोई और अभियान - उसका एक सॉलिड साथी था जो हमेशा उसके साथ रहता था. यह सॉलिड साथी टीकाचक का बारहमासी बासिंदा था, उसके माँ-बाप मजदूरी करते. इस सॉलिड दोस्त की एक बुआ थी जिसकी झोपड़ी सबसे अलग गाँव के एक कोने में थी. अलग झोपड़ी इसलिये कि शादी के पहले ही साल उसका पति मर गया था.  
वह किधर रहेगा इसका भरोसा उसे नहीं रहता लेकिन उसका सॉलिड साथी उस पर हमेशा भरोसा करता और हमेशा उसके साथ रहता. छुट्टियाँ ख़त्म होने वाली थीं, बम्बईया आमों ने टपकना बंद कर दिया था. इस कारण बगीचे में बच्चों ने आना कम कर दिया लेकिन दो बच्चे - वह और उसका सॉलिड साथी नियमित रूप से छुट्टियों के अंतिम दिन तक बगीचे में आये थे. माफ़ करेंगे, अंतिम दिन तक नहीं – अंतिम दिन से दो दिन पहले तक.
छुट्टियों के ख़त्म होने से दो दिन पहले वे दोनों, वह और उसका सॉलिड साथी, बगीचा पहुँचे. उस दिन जब सूरज ढलने वाला था, वह बोला – चलो कुछ मजेदार करते हैं. गाँव वालों को डराते हैं. सॉलिड साथी ने सहमति में सर हिलाया. फिर उन्होंने इकट्ठा किया – एक टूटी हांडी व कुछ और. टूटी हांडी सॉलिड साथी लेकर आया और वह अपने घर से चुपके-चुपके चुराकर लाया - बिंदी, सिन्दूर, धूप, अगरबत्ती, हल्दी, अक्षत व लाल चूड़ी. सब कुछ सेट हो चुका था, तभी उसे ख्याल आया – रुको, एक और काम करते हैं. मैं अभी आया, मजा आ जायेगा. वह भागकर गया और थोड़ी देर में काला कपड़ा लेकर वापस आया. हांड़ी को काले कपड़े में लपेटा गया और जब सूरज डूब गया व अँधेरे में दिखना बंद हो गया वे दोनों, वह और उसका सॉलिड साथी, उस जगह पहुँचे जहाँ पगडंडियाँ मिलती थीं. सुबह-सवेरे टीकाचक के लोग हल्के होने के लिए पगडंडियों की इसी मिलनस्थली से अपनी राह पकड़ते थे. उन्होंने अपनी योजना को अंजाम दिया और वापस अपने-अपने घर चले गए. देर से पहुँचने के कारण वह डांट के साथ मिले खाना खा सो गया.
सुबह बिस्तर पर नींद पूरी तरह टूटने से पहले आँगन से जो आवाज आई उससे पता लगा कि उसकी योजना सफल रही है. वह बिस्तर से कूदा और पल भर में पगडंडियों की मिलनस्थली पर पहुँच गया – वहां बड़ी भीड़ लगी थी. लोग चिल्ला रहे थे – ये डायन नहीं सुधरेगी. इसे सबक सिखाना ही पड़ेगा. तभी उसकी नजर सॉलिड साथी से मिली और लोगों की भीड़ से एक आवाज़ हवा में गूँजी –
इस कतरी रांड को चेताया था कि ठीक से रहे. आज उसे बताना ही होगा, ऐसे वो नहीं मानेगी.
दो-तीन मजबूत हीरो जैसे लोग (जो विलेन थे) गाँव के कोने पर सबसे अलग बनी झोपड़ी की ओर ललकारते बढ़े. सॉलिड साथी तेजी से कहीं दौड़ता हुआ भागा था, शायद कतरी बुआ को बचाने. वह भी भागा, भागते-भागते माँ की बात याद आई जो हर गरमी छुट्टी में टीकाचक आने पर आँगन में दादी से कहती थी – कतरी कैसी है, कितनी सुंदर थी बेचारी. इतनी जल्दी.... भागता हुआ वह टीकाचक के सबसे बड़े आदमी के पास पहुँच गया जबकि वह जानता था तीनों हीरो जैसे लोग (जो विलेन थे) उस बड़े आदमी के घर के थे. वह रोता हुआ चिल्लाया – “बाबा, कतरी बुआ...”
टीकाचक का सबसे बड़ा आदमी तेज कदम अपनी लाठी लिये गाँव के कोने पर सबसे अलग बनी झोपड़ी के पास पहुँच कर गरजा – “छोटे !”
हीरो जैसे तीनों लोग (जो विलेन थे) झोपड़ी से बाहर निकल गए. झोपड़ी के अंदर कतरी बुआ भोकार पार कर रो रही थी. सॉलिड साथी कहीं नहीं था.
वह आज बगीचा नहीं गया, छुट्टी खत्म हो चुकी थी. पापा सबको ले जाने आ गए थे. माँ ने आँगन में पापा को बताया – बड़े बाबा ने आज कतरी को बचा लिया.
दूसरे दिन बस में वह अपनी मनपसंद विंडो सीट पर बैठा था. माँ दबे स्वर दीदी को डांट रही थी – इतनी बड़ी हो गई लेकिन होश नहीं रहता. अपना काला दुपट्टा कहाँ छोड़ दिया.
वह चलती बस की खिड़की से बाहर झाँक रहा था – सॉलिड साथी कहीं नहीं था.
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