पिता की याद में एक कविता

(जिससे मैं बहुत प्यार करता हूँ, उसके जाने के बाद उसकी चर्चा से बचता हूँ. शायद उसे भुला देना चाहता हूँ लेकिन हर चाहत कहाँ पूरी होती है - जाने वाले को रोकने की चाहत थी जो अधूरी रह गई. अब उसे भुलाना चाहता हूँ - जानता हूँ यह भी संभव नहीं है. सब-कुछ आधा-अधूरा; जानता हूँ - इस मरुस्थल में सामने जो दिख रहा है वह पानी नहीं, मृग मरीचिका है. फिर भी भाग रहा हूँ, शायद अपने आप से. 
वह मेरा पिता था - साँस की बीमारी से ग्रस्त. मैं जानता हूँ, यदि वह होता उसे जानकर अच्छा नहीं लगता कि आजकल मेरा दम फूलने लगा है.) 

आजकल मेरा दम फूलने लगा है

प्रेम के आलिंगन
नफरत की हर लड़ाई में
तुम्हारी याद आयी है
और
जब भी लिपटा हूँ
भविष्य से
आँखों में
अतीत का बादल बरसा है.

भट्टी जो धधक रही थी
तुम्हारे सीने में
और
सोख रही थी जिंदगी
आज कल
धधकने लगी है
मेरे सीने में.

पल प्रतिपल
एक एक साँस हेतु
तुम्हारी तड़प को
नजरअंदाज करती
मेरी जवानी
आज
छुपाती फिर रही है
तम की चादर में
अपनी बेबसी.


घर के आँगन में
माँ की कहानियों में
दादी, मम्मा-पापा, फुआ, दीदी
नानी–नाना, मामा-मामी, मौसी-मौसा
सब हैं;
केवल तुम ही क्यों नहीं.


कोने में पडी
अतीत की बकुडी
को लिए
भविष्य तुम्हे याद करने लगा है
और
मैं नजरें चुराता
“इन्हेलर” या “नेबुलाईजर”
ढूढनें लगता हूँ 

आजकल मेरा दम फूलने लगा है.



            (25.02.2012 को लिखित)

कविता संग्रह 'अवसान निकट है' में संकलित 

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