सराय
सूफी फकीर हुआ, इब्राहीम. पहले वह एक सम्राट था. एक रात उसने
देखा कि, सोया अपने महल में, कोई छप्पर पर चल रहा है. उसने पूछा :
‘कौन बदतमीज आधी
रात को छप्पर पर चल रहा है ? कौन है तू ?’
उसने कहा : ‘बदतमीज
नहीं हूं, मेरा ऊंट खो गया है. उसे खोज रहा हूं.’
इब्राहीम को हंसी
आ गई. उसने कहा : पागल ! तू पागल है ! ऊंट कहीं छप्परों पर मिलते हैं अगर खो जाएं
? यह भी तो सोच कि ऊंट छप्पर पर पहुंचेगा कैसे ?’
ऊपर से आवाज आई : ‘इसके
पहले कि दूसरों को बदतमीज़ और पागल कह, अपने बाबत सोच. धन में, वैभव में, सुरा-संगीत में सुख मिलता है
? अगर धन में, वैभव में, सुरा-संगीत में सुख मिल सकता है तो ऊँट भी छप्परों पर मिल
सकते हैं.’
इब्राहीम चौंका. आधी
रात थी, वह उठा, भागा. उसने
आदमी दौड़ाए कि पकड़ो इस आदमी को. लेकिन तब तक वह आदमी
निकल गया. इब्राहीम ने आदमी छुड़वा रखे राजधानी में कि पता लगाओ कौन आदमी था. क्या
बात कही ? किस प्रयोजन से कही है ?
लेकिन रात भर इब्राहीम
फिर सो न सका. दूसरे दिन सुबह जब वह दरबार में बैठा था, तो उदास था, मलिनचित्त था,
क्योंकि बात तो उसको चोट कर गई. चोट कर गई कि बात तो ठीक ही करता है. अगर यह आदमी
पागल है तो मैं कौन सा बुद्धिमान हूं ? किसको मिला है सुख संसार में ? सुख संसार
में मिलता नहीं और अगर मिल सकता है तो फिर ऊँट भी मिल सकता है.
वह चिंता में बैठा
है. बैठा है दरबार में. दरबार चल रहा है, काम की बातें चल रही हैं, लेकिन आज उसका मन यहाँ नहीं. मन कहीं उड़ गया.
तभी उसने देखा कि दरवाजे
पर कुछ झंझट चल रही है. एक आदमी भीतर आना चाहता है और दरबान से कह रहा है कि मैं
इस सराय में रुकना चाहता हूं. और दरबान कह रहा है कि ‘पागल हो, यह सराय नहीं है,
सम्राट का महल है. सराय बस्ती में बहुत हैं, जाओ वहां ठहरो.’ पर वह आदमी कह रहा है, मैं यहीं ठहरूंगा. मैं
पहले भी यहीं ठहरता रहा हूं और यह सराय ही है. तुम किसी और को बनाना. तुम किसी और
को चराना.
अचानक उसकी आवाज
सुनकर इब्राहीम को लगा कि यह आवाज वही है और यह फिर वही आदमी है. उसने कहा, उसे
भीतर लाओ, उसे हटाओ मत.
वह भीतर लाया गया.
इब्राहीम ने पूछा कि तुम क्या कह रहे हो ? यह किस तरह की जिद कर रहे हो ? यह मेरा
महल है. इसको तुम सराय कहते हो ? यह अपमान है !
उसने कहा : अपमान हो
या सम्मान हो, एक बात पूछता हूँ कि मैं पहले भी यहां आया था, लेकिन तब इस सिंहासन पर कोई और बैठा था.
इब्राहीम ने कहा :
वे मेरे पिताश्री थे, मेरे पिता थे.
और उस फकीर ने कहा
: इसके भी पहले मैं आया था, तब कोई दूसरा ही आदमी बैठा था.
तो इब्राहीम ने
कहा : वे मेरे पिता के पिता थे.
तो उसने कहा :
इसलिए तो मैं इसको सराय कहता हूं. यहां लोग बैठते हैं, चले जाते हैं. आते हैं चले
जाते हैं. तुम कितनी देर बैठोगे ? मैं फिर आऊंगा, फिर कोई दूसरा बैठा हुआ मिलेगा.
इसलिए तो सराय कहता हूं. यह घर नहीं है. घर तो वह है जहां बस गए तो बस गए; जहां से
कोई हटा न सके, जहां से हटना संभव ही नहीं.
इब्राहीम, कहते
हैं, सिंहासन से उतर गया.
इब्राहीम ने महल
छोड़ दिया.
एक क्षण में कुछ
घटित हो गया.
(भगवान श्री रजनीश : अष्टावक्र महागीता, भाग-1)
Parivartan hi prakriti ka niyam hai. Bahut achha lekh.
जवाब देंहटाएं