दो कवितायें - (1) प्रवास उस प्रदेश में और (2) माँग सजाई है.
दो कवितायें
प्रवास
उस प्रदेश में
बगैर किसी स्मृति के
एक किरदार निभा गए यात्री की
नहीं थी, परन्तु, यात्रा
था सिर्फ अमेय भटकाव.
जीवन भी एक भटकाव
नहीं, परन्तु, यात्रा
सहसा हो जाती है एक दुर्घटना
और सामने होती हो “तुम”
विलसित नहीं
आटा गूँथती, परन्तु.
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माँग सजाई है.
कोरे कागज पर
अनायास ही
उगते हैं कुछ शब्द
जिनका कोई
अर्थ नहीं विशेष
फिर भी वे कहते हैं
यह अलका के लिए है.
और
जब खिंच जाती हैं कुछ लकीरें
और बिन्दु एक गोले में
सुनता हूँ मैं
चिर कुंवारी अलका ने
माँग सजाई है.
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