दो कवितायें
देवदास को मेरी याद आयी है
बरसों
बाद
देवदास
को
मेरी
याद आयी है
आसमान
से
उतरने
लगा है वह
रोज
रात
की तन्हाई में
और
दबे
पांव दाखिल हो
मेरी
जिंदगी में
खूब
चर्चा करता है
चंद्रमुखी
की.
चंद्रमुखी
चुन्नी
बाबू
माँ
और
मदिरा
सब
हैं उसकी आत्मकथा में
बस
वो नहीं है
जिसकी
वजह से
देवदास
का अस्तित्व है.
माना
आत्मकथाओं में सच नहीं होता
और
इतिहासकारों
को सच का पता नहीं
देवदास
न
जाने कैसे
बन
जाता है मेरा सच
रोज
रात
की तन्हाई में.
पुनर्जन्म ही अंतिम सत्य है
मंदिरों
में
पंडितों ने अर्चना की
सालों तक
अलका के मोक्ष हेतु
जनम मरण के
बंधन से मुक्ति हेतु
लेकिन
काल के कुछेक पृष्ठ पलटते
ही
वीरान खंडहरों में
उसके नृत्य व
हंसी
की गूँज............
यज्ञ,
पूजा – अर्चना की बेबसी
और
अलका की उन्मुक्त हंसी
हमेशा की भांति
मृग - मरीचिका के हादसों
का
शिकार
देवदास - बदहवास
पुनर्जन्म ही अंतिम सत्य
है
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