भीड़-भारत # 2
कुछ
दिनों पहले ही लोगों की भीड़ जोर से गरजी
थी कि वह बदल रहा है. वह जानता है कि उसकी उमर कुछ ज्यादा ही हो चली है, वह यह
भी जानता है कि लोग उसे लेकर तरह-तरह की बातें करते हैं या कहें तो उसे कई तरीके से
देखते हैं. कभी-कभी सोचता है कि उसकी उमर शायद कुछ ज्यादा ही हो गई है, इसीलिए
उसे ठीक-ठीक याद नहीं रहता कि असल में वह कैसा है, असल
में वह कौन है. वैसे वह जैसे ही ठहर कर शांत चित्त कुछ याद करने की कोशिश करता है,
जोर-जोर कोई चिल्लाने लगता है कि वह बदल रहा है. इतना तो वह जानता है कि वह बदल
रहा है क्योंकि बदलना ही सबसे बड़ा सत्य है. पल प्रतिपल हर कोई बदल रहा है, धरती
बदल रही है, आसमान बदल रहा है. बदलना ही नियति है, लेकिन
उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है कि हर घड़ी कोई न कोई चिल्लाने लगता है कि वह बदल रहा
है. इतनी रात जबकि अँधेरा गहरा गया है उसके घर के आगे लोग फिर से चिल्लाने लगे
हैं.
यद्यपि चिल्लाते हुए लोग फुसफुसाते भी हैं
और उनकी फुसफुसाहट वह सुन सकता है. ‘मार साले को, साला
बुढ्ढा, भोंस... के, मादर
......., साले का घर ही जला डाल’
चिल्लाहट के बीच किसी को फुसफुसाते उसने साफ़ सुना था – ‘अरे उन
लौंडों का ख्याल रखना, उनकी जमानत का इंतजाम करो. वे सब देश-धर्म की
रक्षा में काम आयेंगे.’
अँधेरी
रात में सायं-सायं करती आवाजों को झेलना उसके लिए नया नहीं था. रात के अँधेरे में
इंसानों के दानव बनते हुए वह पहले भी देख चुका है लेकिन दिन के उजाले में ? वे और
जोर से चिल्लाते हैं – ‘स्साले, क्या यह पहली
बार हो रहा है तुम्हारे साथ... बुढ्ढे ! फलां साल के फलां दिन उन्होंने तुम्हारा
क्या हाल किया था भूल गए.... अब हो रहा है तो मिर्ची लग रही है.’ वह
सोचता है कैसे समझाये उन्हें कि अँधेरा केवल रात में ही नहीं, भरी
दुपहरी में भी आता है.
आज ही भरी दुपहरी उसने देखा था चौराहे पर, उन दो
लड़कों को लहू-लुहान. थोड़ी देर पहले ही चौराहे की नाके-बंदी की गई थी और
देखते-देखते उन लड़कों की तेज रफ़्तार लाल कार को जैसे ही रोका गया, लोग
चिल्लाते हुए टूट पड़े – ‘साले, हरामी,
हरामजादे ...... भोंस... के......मादर....’ लाल कार के
सीसे तोड़ उन दोनों को खींच बाहर निकाल लिया गया और अब सड़क पर, कपड़ों
पर, सर से पांव तक सब कुछ लाल ही लाल था. वे हाथ जोड़
रहे थे, पाँव पड़ रहे थे – ‘भैय्या..
अंकल.. हमनें कुछ नहीं.... देख लो हमारे पास आधार है... पैन कार्ड,
पासपोर्ट है ..... हम .... गाँव के है..... भैय्या मत मारो उसको ! सुनो, सुनो
मेरी बात वह डॉक्टर है.... अमेरिका से घर वापस आया ..... सुनो तो प्लीज .....
पुलिस को बुला लो..... पुलिस फैसला......’
“साले...
पुलिस क्या फैसला करेगी मादर...” लोग जोर से चिल्लाये.
अँधेरा
गहराने लगा था – उसने साफ़ देखा, साथ ही उसे अपनी
बुढाती उमर का पक्का यकीन हो गया क्योंकि वह थर-थर काँप रहा था. वे लड़के उसके पाँव
पर गिर गए – ‘बाबा ! हम तुम्हारे बच्चे समान....प्लीज
बाबा..... पुलिस को बुला लो..... हमनें कुछ नहीं...’
वह
थर-थर काँप रहा था. जो जमीन पर गिरे पड़े थे - अपने
को उसके बच्चे समान कह रहे थे.
उसने भीड़ की ओर थर-थराती निगाहों से देखा – वे सब भी तो उसके बच्चे समान थे. उसने
गुहार लगाई – सुनों, इन्हें मारो मत, पकड़
कर रखो और पुलिस को बुला लो.’
“पुलिस
क्या करेगी... जो करेंगे हम करेंगे. सालों को सबक सिखाना जरुरी है.”
“मान
लो तुम्हारे समझने में कोई चूक हो रही हो. ये अगर निर्दोष हुए तो ?”
“तुम
क्या समझोगे बुढ्ढे ! पिछले गाँव में ये भोंस.. के एक बच्ची को फुसला रहे
थे....देखो व्हाट्सएप पर इनका वीडियो....”
“लेकिन
सुनो तो... एक परसेंट अगर ये निर्दोष हुए तो.... इनके खून का पाप.....”
तभी
किसी ने उन लड़कों के सर पर एक बड़े से पत्थर को पटका और सब समाप्त ! भीड़ चिल्लाती
हुई चली गई – सठियाए बुढ्ढे ! सब कुछ तेजी से बदल रहा है, तुम
भी बदल रहे हो और अब खून का पाप नहीं लगता.... खून तो वीरों की, वीर
भारत की शान है..... अब कोई हमसे मुकाबला कर दिखाये ..... जय हो !
वह
चश्मदीद गवाह है, बाद में पुलिस ने सुना और दुहराया. लेकिन क्या
वह अपनी बात पर टिका रहेगा, उमर ज्यादा हो
गई है बाबा ! कहाँ उलझ रहे हो. बुढ़ापे में क्यों उलझते हो ! वैसे भी इंडिया में
केस-मुक़दमे का क्या नतीजा निकलता है ! आज वह बुढा गया है लेकिन कभी वह बच्चा भी था
और जब बच्चा था उसके स्कूल में आये चीफ गेस्ट ने उससे कहा था – तुम भारत हो !
आजकल
वह रह-रह कर शून्य भी हो जाता है. इसके आगे अभी वह इस बात से बेखबर है कि घर के
बाहर लोग चिल्ला रहे हैं, पत्थरबाजी
होने लगी है और कुछ लोग उसका घर फूँकने वाले है. वह बुदबुदा रहा है –
“मैं
भारत हूँ ! और तुम भीड़-भारत !”
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