संदेश

Mahtma Gandhi लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पैर'नॉइआ और प्रॉपगैंडा (Paranoia और Propaganda)

चित्र
       अंग्रेजी का एक शब्द है , Paranoia ( पैर ' नॉइआ). ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार इसका अर्थ है - ' इस गलत विश्वास पर आधारित एक मानसिक रोग कि अन्य व्यक्ति आपको हानि पहुंचाना चाहते हैं अर्थात मिथ्या संदेह या वहम का रोग '.        इंसान के अंदर कहीं न कहीं एक अज्ञात भय रहता है ; लेकिन वह अपना ज्ञान बढ़ाकर , सत्य के अन्वेषण द्वारा अपने अंदर के भय पर विजय हासिल करने की कोशिश करता है. सत्य का अभाव इंसान के अंदर के अवास्तविक डर को बढ़ाता है. डरे हुए लोग इकट्ठे होने लगते हैं , डरे हुए लोगों के बीच एक (तथाकथित) मजबूत नेता उभरता है जो विश्वास दिलाता है कि वह बचा लेगा. लेकिन उस नेता को सारी ताकत आम लोगों के अंदर बैठे डर से मिलती है. इसलिए वह कभी नहीं चाहता कि लोगों के अंदर बैठा डर मिटे. यही कारण है कि नित नए भय का माहौल बना रहता है और भय का यह माहौल रचा जाता है प्रॉपगैंडा से.        आज से लगभग सौ साल पहले 1923 में जेल में सजा काट रहे हिटलर ने अपनी राजनीतिक विचारधारा के साथ आत्मकथा लिखी थी जो ' मीन...

विरोधी होना अपराधी होना नहीं है !

विरोधी होना अपराधी होना नहीं है. नि:संदेह समर्थन में बोलने वाले अच्छे लगते हैं और विरोध करने वाले अच्छे नहीं लगते. समझ कहती है ऐसा होना एक मानवीय कमजोरी है और हमें ऐसी प्रवृत्ति से बचना चाहिए. समझ कहती है , समर्थन व विरोध को तर्क की कसौटी पर कसते हुए विचार करते रहना. लेकिन जब विरोध करने वाले दुश्मन लगने लगें , अपराधी लगने लगें तो एक बर्बरता , एक मूढ़ता का जन्म होता है जो अंततः व्यक्तिगत स्तर पर व समाज के स्तर पर बड़ा घातक साबित होता है. हाँ में हाँ मिलाने की प्रवृत्ति के मुकाबले विरोध व सवाल करने की प्रवृत्ति के कारण ही इंसान अपनी यात्रा में कुछ बेहतर कर पाया है. इसके बरअक्स सवाल करने अथवा विरोध को बर्दाश्त न कर पाने की कमजोरी आदमी को हिंसक बनाती है , उसे बर्बर बनाती है. हमने धार्मिक मामलों में विरोध को पाप की श्रेणी में रखने की मूढ़ता की है और मानव जाति आज भी इस मूढ़ता के खतरनाक परिणाम झेलने के लिए अभिशप्त है. 21वीं सदी के न्यू इंडिया में सवाल करने वाले , विरोधियों के लिए नए-नए नाम गढ़े जा रहे हैं जो बेहद खतरनाक हैं व शर्मनाक भी. सवाल पूछने वाले , विरोध करने वालों को चुप करा देने की ब...

बा ! संतरा केवल आप ही खाइयेगा !

चित्र
बागडोगरा के लिए उड़ान भरने वाली फ्लाइट के इंतजार में कोलकाता एअरपोर्ट पर बैठा हूँ. कल रविवार है और टीकाचक के लिए कुछ लिख नहीं पाया हूँ. कौन पढ़ रहा है , मालूम नहीं लेकिन खूब लिखा जा रहा है ; कौन सुन रहा है – पता नहीं लेकिन लोग बोल रहे हैं. बहुत बोल रहे हैं और न जाने क्या-क्या बोल दे रहे हैं. तो बहुत लिखने व बहुत बोलने के दौर में बगैर कुछ बोले , चुपचाप – बस पढ़ने का मन हो रहा है. तो फिर से एकबार पढ़ रहा हूँ उसके बारे में जिसके बारे में खूब लिखा गया है और आज भी लिखा जा रहा है. भारत वापसी के बाद वह पूरे देश की ख़ाक छान रहा था – मुँह बंद किये लेकिन आँख व कान खोले हुए. ऐसे में उसे बनारस में हिन्दू कॉलेज (जो आगे चल कर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी कहलाया) के उद्घाटन समारोह में बोलने के लिए बुलाया गया. जिसमें वायसराय समेत कई राजा-महाराजा शामिल थे. राजा-महाराजाओं ने इस कॉलेज के निर्माण में भारी चंदा दिया था , इसलिये इस समारोह में उन्हें वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलना बिल्कुल स्वाभाविक था. वैसे भी वे थे तो राजा-महाराजा ही न - सोने-हीरे के आभूषणों से लदे हुए. महिमामंडन के उस समारोह में साधारण से दिखने ...