किताब एक खतरनाक चीज है !

प्रख्यात कवि ज्ञानेन्द्रपति की एक कविता है – टेलीविजन को देखो. इस कविता की कुछ पंक्तियाँ अनायास ही झकझोरने लगती है – ‘किताब एक खतरनाक चीज है. आदमी के हाथों में उसके जाते ही सल्तनत के पाये डगमगाने लगते हैं किताब की चुप्पी में बंद चीखें और ललकारें किताब को खोलते ही बारूद की गंध की तरह उठने लगती हैं रक्त संचार में घुलने लगती हैं .....................’ कहते हैं किताबें अँधेरे दूर करती हैं. इसके शब्द बोध व समझ की ज्योति लेकर आते हैं, ऐसे में किताब को खतरनाक चीज कहना क्या वाजिब है ? कविता की शुरुआती पंक्तियाँ हैं – 'फेंको पुस्तक देखो अब शुरू होता है हमारा सबसे दिलचस्प कार्यक्...