चमकते भारत में दुखिया का दुःख !?? - भाग - 2
पिछले रविवार टीकाचक में ‘ चमकते भारत में दुखिया का दुःख ’ पोस्ट करते समय नहीं सोचा था कि फिर से उसी मसले पर लिखूँगा लेकिन पूरे सप्ताह रह-रह कर मिलती प्रतिक्रियाओं ने आगे लिखने के लिए प्रेरित किया. मैंने भारत में आर्थिक असमानता की गहरी होती खाई का जिक्र करते हुए ऑक्सफेम की रिपोर्ट के हवाले से बस इतना लिखा था कि पिछले एक साल में देश की कुल कमाई का 73% मात्र एक प्रतिशत लोगों के पास चला गया है और गाँव के एक मजदूर को 941 साल लग जायेंगे उतना कमाने में जितना इस देश की चमकती-दमकती कंपनी का टॉप एग्जीक्यूटिव एक साल में कमाता है. प्रतिक्रिया देने वालों में किसी बड़े पूंजीपति अथवा किसी बड़ी कंपनी के सीईओ के होने का तो सवाल ही नहीं लेकिन मेरे वे मित्र जो ऑक्सफेम की रिपोर्ट पर आधारित मेरे ब्लॉग पर आपत्ति दर्ज कर रहे थे वे मेरी ही तरह भारत के उस 99% लोगों में से थे जिनके सामूहिक हाथों में साल भर की कुल कमाई का मात्र 27% लगा था. मजेदार बात कि आज हमारे अंदर यह बात गहरे तक बैठ गई है कि यदि किसी मुकेश अंबानी की हैसियत एक साल में 67% बढ़कर 38 बिलियन डॉलर हो जाती है तो...