नचिकेता से डरता समाज

यजुर्वेद की दो शाखाओं में से एक है – कृष्ण यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद की कठशाखा से कठोपनिषद् निकलता है. मात्र दो अध्यायों और 118 श्लोकों में सिमटे कठोपनिषद् का विस्तार बहुत बड़ा है; उसके कई श्लोक हूबहू भगवान श्रीकृष्ण की जुबानी श्रीमद्भगवद्गीता में उतरते हैं. लेकिन कठोपनिषद् अप्रतिम बनता है – नचिकेता के कारण. नचिकेता की कथा कमोबेश हमें मालूम है. मालूम होने के बावजूद हम नचिकेता की चर्चा करने से बचते है; उसका उल्लेख नहीं किया करते हैं. कारण स्पष्ट है, नचिकेता का जिक्र जोखिम भरा है; हमारी समझ नचिकेता से डरती है. हमारे संस्कार , हमारा लोकाचार , हमारी मर्यादा सब नचिकेता की संभावना मात्र से दरकने लगते हैं. किस्से-कहानी , मिथकों , भाषणों आदि तक तो ठीक है , लेकिन नचिकेता जैसा बालक सचमुच हमारे सामने खड़ा हो जाए तो... कथा बड़ी प्यारी है. वाजश्रवा अपनी दयालुता व दान के कारण प्रसिद्ध है. वाजश्रवा नाम ही काफी है. कठोपनिषद् के शंकर भाष्य का एक श्लोक है – “वाजमन्नं तद्दानादिनिमित...