तुम्हारे हिस्से भी एक आकाश है !

वह भारतरत्न है. उसने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को विश्व में प्रसिद्धि दिलायी. वह आम नहीं ख़ास है, उसकी महान उपलब्धियों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है. उसकी उपलब्धियों को कमतर साबित करना या बेवजह विवाद पैदा करना मकसद नहीं. यहाँ बस उस कुंठा का जिक्र है जो हमारे अपनों की तरक्की से जन्म लेती है और विशेषकर जब वह हमारी पत्नी या बहन हो. तालियों की गड़गड़ाहट, तारीफ के पुलिंदे अगर किसी और के लिए हों तो कोई बात नहीं लेकिन वह अपनी पत्नी या बहन के लिए हो तो अपने बौनेपन का अहसास तीव्र होने लगता है. यह अहसास, यह कुंठा केवल छोटे और आम लोगों में नहीं भारतरत्नों में भी प्रबल होती है, जान के अच्छा नहीं लगता लेकिन एकाकीपन के दंश को सह रही अट्ठासी वर्षीय महिला जब आपबीती कहती है तो उसे नकारना संभव नहीं लगता – “यद्यपि उन्होंने साफ – साफ कभी भी मना नहीं किया लेकिन कई दूसरे तरीकों से उन्होंने जाहिर किया कि वे खुश नहीं हैं क्योंकि मुझे ज्यादा तारीफ मिल रही थी.....” मैहर घराने के आदिपुरुष उस्ताद अलाउद्दीन खान एक ऐसे इंसान थे जो एक तरफ माँ सरस्वती की पूजा करते थे तो दूसरी तरफ रोजाना पाँचों नमाज भी पढ़...