संस्कारित बच्चे और मानव बम
आज से लगभग अस्सी साल पुरानी बात है. एक छोटे से गाँव में एक छोटा सा बच्चा है – सात साल का. यह बच्चा अपने वृद्ध नाना के साथ रहता है. कहने की जरुरत नहीं कि दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं. बच्चा हर घड़ी अपने नाना से चिपका रहता, यहाँ तक कि नाना के साथ ही सोता , खाता-पीता , खेलता-कूदता. इस बच्चे के गाँव में एक मंदिर है. गाँव वाले मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. बच्चे के नाना भी नियमित रूप से मंदिर जाते हैं. यह बच्चा घर से अपने नाना के पीछे-पीछे निकलता , लेकिन जैसे ही मंदिर करीब आता उसके नाना कहते हैं – “बेटा , जाओ खेलो-कूदो.” रोज यह होता , नाना बच्चे को मंदिर के दरवाजे से बहला-फुसला कर खेलने के लिए भेज देते हैं. मंदिर से बार-बार वापस कर दिये जाने पर बच्चा एक दिन अपने आपको रोक नहीं पाता है. वह पूछ बैठता है – “रोज मैं आपके पीछे-पीछे मंदिर तक आता हूँ और आप मुझे मंदिर के अंदर नहीं जाने देते. गाँवभर के बूढ़े-बुजुर्ग, माँ-बाप अपने संग बच्चों को मंदिर लेकर जाते हैं – उन्हें अच्छे संस्कार देते हैं.” नाना कहते हैं – “थोड़े बड़े हो जाओ – च...