संदेश

मैं नास्तिक क्यों हूँ ? लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगत सिंह को जानते हैं ? भाग-2

चित्र
       23 मार्च 1931 को महज तेईस साल की उमर में भगत सिंह को फाँसी दी गयी थी. बीते तेईस मार्च को उनकी शहादत के अट्ठासी साल गुजर गए. साथ ही इक्कीसवी सदी में जन्में कई करोड़ बच्चे बालीग होकर इस वर्ष भारत की नयी सरकार के गठन की प्रक्रिया में हिस्सा लेने जा रहे हैं – वे पहली बार मतदान करने जा रहे हैं. ऐसे में अनायास ही भगत सिंह का ख्याल आ रहा है. हम सभी भगत सिंह का नाम जानते हैं और बार-बार उनका नाम दुहराते रहते हैं. ‘नाम जानते हैं ’ का सीधा मतलब है कि हम केवल नाम ही जानते हैं और बार-बार नाम दुहराये जाने के कारण ऐसा भ्रम हो जाता है कि हम भगत सिंह को जानते हैं.        औपचारिक रूप से शिक्षित लोगों के बीच का एक अनौपचारिक सर्वे कि वे भगत सिंह को कितना जानते हैं, बड़ा मजेदार रहा. यहाँ उल्लेखनीय है कि ये वे लोग थे जो हर बात पर उनकी दुहाई देते रहते कि ‘भगत सिंह के आदर्शों को भुला दिया गया , नहीं तो भारत एक अलग ही देश होता.’ उस सर्वे में शामिल लोगों की प्रतिक्रिया का एक नमूना है –        ‘वे पंजाबी थे / क्रांतिकारी...

भगत सिंह को कितना जानते हैं ??

चित्र
8 अप्रैल 1929 को असेम्बली हॉल में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बांटे गए पर्चे में एक पंक्ति थी–            “ व्यक्तियों की हत्या करना तो सरल है , किन्तु विचारों की हत्या नहीं की जा सकती.”        लेकिन हम कमाल के बाजीगर लोग हैं. हम व्यक्ति विशेष को सदियों तक जिंदा रखने व उसके विचारों को आसानी से दफन करने का जादू जानते हैं. हमें ऐसा करने में बड़ी महारत हासिल है. व्यक्ति को जिंदा रखने का सबसे सरल उपाय है कि उस व्यक्ति विशेष की पूजा आरंभ कर दो और उसके विचारों को दफनाने का आसान तरीका है कि उसकी बातों/उसके विचारों को धर्म-ग्रंथ का दर्जा दे दो. इस तरह व्यक्ति देवदूत की भाति जीवित रहेगा लेकिन उसके विचार मर चुके होंगे, श्रद्धा के फूल व पवित्र अगरबत्ती की राख तले. लोगों को उसकी बातों से कोई मतलब नहीं होगा , हद से हद एकाध अधिक श्रद्धावान आदमी उसकी बातों को मंत्र अथवा आयत बनाकर, उन्हें बगैर समझे तोते की तरह दुहराता रहेगा.        विचारों पर विचार करना होता है. उसस...