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झूठइ लेना झूठइ देना / झूठइ भोजन झूठ चबेना//

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वह दिखता नहीं है. न दिखने के बावजूद वह है और उसके होने मात्र की आशंका हमें डरा रही है. उसे देख पाने के लिए तकनीक की , यंत्र की , समझ की जरूरत पड़ती है. हमारे साथ होता रहता है यह सब कि होने के बावजूद हमें नहीं दिख पाता क्योंकि हममें देख पाने के लिए आवश्यक क्षमता का विकास नहीं होता. नंगी आंखों से नहीं दिखने वाले अतिसूक्ष्म जीव या कि विषाणु से बचने हेतु जब हमनें अपने-आपको कैद करने का फैसला किया , लक्ष्मणरेखा न लाँघने की कसमें ली , तो शुरुआती दिनों में ऐसा लगा कि हम कुछ-कुछ सोचने-विचारने लगे हैं. ' इबादतगाह में सन्नाटा ' लिखते समय यह आशा थी कि खाली बैठा हुआ इंसान अपने अंदर एक तार्किक दृष्टि विकसित करने की कोशिश करेगा क्योंकि शीघ्र ही सोशल डिस्टेंसिंग का सच हमें दिखा था , जब न्यू इंडिया के हाईवे पर हजारों-लाखों बेबस भारतवासी अपने पूरे परिवार के साथ निकल पड़े थे. हम विचलित होने लगे थे कि यह इंडिया और भारत के बीच का डिस्टेंस है. हमने स्वीकारा यह डिस्टेंस ठीक नहीं है , हमें दूरी पाटने की कोशिश करनी चाहिए. हमने महसूस करना शुरू किया कि सोशल डिस्टेंसिंग हमारे सामाजिक जीवन का बेहद क...

भगत सिंह को जानते हैं ? भाग-3

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       कहने की जरुरत नहीं कि लोगों को भगत सिंह का नाम आकर्षित करता है. पिछले रविवार को टीकाचक में भगत सिंह की बात निकलने पर कई साथियों की प्रतिक्रिया आयी कि वे भगत सिंह के बारे में व उनके लेखन को पढ़ना चाहते हैं. कुलदीप नैयर द्वारा लिखित भगत सिंह की जीवनी पढ़ी जा सकती है. 223 पृष्ठों में सिमटी यह जीवनी ‘सरफरोशी की तमन्ना’ नाम से राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित है. इसमें भगत सिंह के दो महत्वपूर्ण लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ ?’ और ‘बम का दर्शन’ भी शामिल है. इसके अतिरिक्त आधार प्रकाशन , पंचकूला ने ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज ’ नाम से भगत सिंह का समग्र लेखन प्रकाशित किया है. चमन लाल के संपादन में प्रकशित यह किताब 478 पृष्ठों की है और इसकी भूमिका भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह ने लिखी है.        पढ़ना कम हुआ है और आज का भीड़-भारत किताबों की जगह अपनी धारणाओं को पुष्ट करने हेतु ‘प्रॉपगंडा सामग्री ’ को तरजीह देने में लगा है.  फिर भी सच जानने की भूख बनी रहती है. ऐसे में  किताबों के अतिरिक्त कोई और उम्मीद नहीं. इसलिए ...