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गाली में स्त्री

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जुलाई 2016 में भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म की सर्वाधिक दुहाई देने वाली राजनीतिक पार्टी के उभरते नेता ने एक वरिष्ठ दलित महिला नेता को गाली दी , जिसे लेकर हंगामा बरपा हुआ. इसके साथ ही कुछ दिनों तक गालियाँ सुर्खियों में रहीं. वैसे गालियाँ हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं , हमें पता भी नहीं चलता और हमारे मुँह से अनायास ही गालियाँ निकल जाती हैं. ब्रिटिश लेखिका मेलिसा मोर गालियों पर लिखी अपनी किताब में कहती हैं कि गालियाँ देना , हमारे इंसान होने की निशानी है. यह हमारी बुनियादी जरूरत है ताकि हमारी भड़ास निकल सके.        गालियाँ देना हमारे इंसान होने की निशानी है !!! दिलचस्प बात है कि तमाम चीजें हमारी बुनियाद तय करती हैं और उनमें गालियाँ भी हैं , लेकिन गालियों की बुनावट , उसके भाषाविज्ञान पर ध्यान देने पर एक नया आयाम उभरता है – तेरे माँ की , तेरे बहन की , मादर** , बहन**. कितने कमाल की है हमारी प्रयोगधर्मिता. आखिर तमाम गालियों में माँ , बहन व बेटी ही क्यों हैं. जिस धरती पर भारत माता और गौ माता के नाम पर सपूतों के खून उबाल मारने लगते हों उनकी बोलियों और ...