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तीन तलाक़ पर रोक और लोकमत

तलाक़-ए-बिद्दत या इंस्टेंट तलाक़ पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल एक झटके में लोकसभा से पारित हो गया है. सत्ता पर काबिज लोगों की नीयत जो भी हो यह एक स्वागत योग्य फैसला है. स्वागत योग्य इसलिये भी कि कदम-कदम पर यदि धर्म खतरे में पड़ने लगे तो एक बार थम के विचार कर लेना उचित है. आस्थावान लोगों की मान्यता कहती है कि धर्म को ईश्वर ने बनाया. साथ ही ईश्वर सर्वशक्तिमान भी है तो एक मासूम सा सवाल कि फिर ईश्वर के बनाये धर्म को खतरा कैसे हो सकता है. सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना बेबस कैसे हो सकता है कि हर घड़ी उसके धर्म पर मिटने का खतरा मंडराता रहे और वास्तव में यदि ऐसा खतरा हो तो वह धर्म नहीं हो सकता , फिर उसका मिट जाना ही सबके हित में होगा. वैसे यह दौर धार्मिक आस्थाओं (मैं धार्मिक मूढ़ता कहने की धृष्टता नहीं कर सकता , इतना साहस भी नहीं) के परचम लहराने का है. कोई भी धार्मिक आस्थाओं के नाम पर कुछ भी कर सकता है. आज से सत्तर साल स्वतंत्र भारत में जब महिलाओं की स्थिति को सुधारने पर विचार किया तो आस्थावान लोग हिल गए थे. बहु विवाह की समाप्ति , अंतरजातीय विवाह की अनुमति , तलाक को कानूनी दर्जा , बेटियों को संपत...

सोमनाथ की पताका लहरा रही है !

"आज जिन लोगों को सोमनाथ याद आ रहे हैं, इनसे पूछिए कि क्या तुम्हें इतिहास पता है ? तुम्हारे परनाना, तुम्हारे पिता जी के नाना, तुम्हारी दादी माँ के पिता जी जो इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे, जब सरदार पटेल सोमनाथ का उद्धार करवा रहे थे तब उनकी भौहें क्यों तन गईं थी."      इक्कीसवीं सदी का आधुनिक व वैज्ञानिक भारत इस तंज पर जोर की ताली बजाता है तो इसके जवाब में डरे हुए लोग अपनी भक्ति व अपने नेता की भक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं -       “सारा देश जानता है कि वे अनन्य शिवभक्त हैं और कहने की जरुरत नहीं कि वे न सिर्फ हिन्दू धर्म से हैं , बल्कि ‘जनेऊधारी ’ हिंदू हैं.”       भजन-कीर्तन करते भारत के लिए पूजा-अर्चना आज किसी व्यक्ति का निजी मामला नहीं है. आज उसके प्रदर्शन का दौर है. समय धार्मिक उद्घोष का है , शंखनाद का है. कोई यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि ‘नहीं, मैं नहीं मानता !’ कोई यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि राजा (प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि जन प्रतिनधि) व राज्य को पंथनिरपेक्ष रहना है. पंथनिरपेक्षता...