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झूठइ लेना झूठइ देना / झूठइ भोजन झूठ चबेना//

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वह दिखता नहीं है. न दिखने के बावजूद वह है और उसके होने मात्र की आशंका हमें डरा रही है. उसे देख पाने के लिए तकनीक की , यंत्र की , समझ की जरूरत पड़ती है. हमारे साथ होता रहता है यह सब कि होने के बावजूद हमें नहीं दिख पाता क्योंकि हममें देख पाने के लिए आवश्यक क्षमता का विकास नहीं होता. नंगी आंखों से नहीं दिखने वाले अतिसूक्ष्म जीव या कि विषाणु से बचने हेतु जब हमनें अपने-आपको कैद करने का फैसला किया , लक्ष्मणरेखा न लाँघने की कसमें ली , तो शुरुआती दिनों में ऐसा लगा कि हम कुछ-कुछ सोचने-विचारने लगे हैं. ' इबादतगाह में सन्नाटा ' लिखते समय यह आशा थी कि खाली बैठा हुआ इंसान अपने अंदर एक तार्किक दृष्टि विकसित करने की कोशिश करेगा क्योंकि शीघ्र ही सोशल डिस्टेंसिंग का सच हमें दिखा था , जब न्यू इंडिया के हाईवे पर हजारों-लाखों बेबस भारतवासी अपने पूरे परिवार के साथ निकल पड़े थे. हम विचलित होने लगे थे कि यह इंडिया और भारत के बीच का डिस्टेंस है. हमने स्वीकारा यह डिस्टेंस ठीक नहीं है , हमें दूरी पाटने की कोशिश करनी चाहिए. हमने महसूस करना शुरू किया कि सोशल डिस्टेंसिंग हमारे सामाजिक जीवन का बेहद क...

इबादतगाह में सन्नाटा

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नज़रबंदी के इस दौर में हम एक-दूसरे का हाल-चाल कुछ अधिक ही पूछने लगे हैं. रंगीलाल जी बड़े पुराने मित्र रहे हैं. इधर कई सालों से उनसे बातचीत नहीं हो पाई थी , कल उनका फोन आया , " भैया , अब तो मानोगे कि कोई केन्द्रीय शक्ति है , जो इस दुनिया को चलाती है." रंगीलाल जी बड़े भोले इंसान हैं , वे अनावश्यक समय बर्बाद नहीं करते और मौक़ा मिलते ही सबको अपने रंग में रंगने लगते हैं. मैं क्या कहता , अमूमन मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं होता और रंगीलाल जी की बात तो ठीक ही थी. हमारे लिए एक मर्कज़ी साहिबे इख्तियार तो हैं ही , जिनके ऐलान के साथ हम सब अपनी मर्जी से नज़रबंद हो गए. ये बात दूसरी है कि जोश में कुछ बड़े साहब लोगों ने घंटा बजाने व शंख पूरने के लिए सड़क पर जुलूस निकाल लिया , जबकि मस्नदनशीं साहिबे इख्तियार ने अपने-अपने घरों से न निकलने की हिदायत दी थी. हो जाता है अक्सर , दिमागी-दड़बे की दीवार-ओ-छत के बेहद मजबूत होने पर होने लगता है ये सब.        खैर , रंगीलाल जी ने जिस केन्द्रीय शक्ति अथवा ईश्वर की बात की थी , उस ईश्वर के होने का सवाल लगातार मथता रहा है. सदियों से इंसान क...