नए भारत में गुरुदेव की कविता ‘इंडियन प्रेयर’ की जरुरत

आज से 119 साल पहले 1900 के आस-पास गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक कविता लिखी थी – ‘चित्त जेथा भयशून्य’. 1911 में उन्होंने इस कविता का अंग्रेज़ी अनुवाद किया जो गीतांजलि में शामिल हुआ. आगे गुरुदेव ने इस कविता को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भी पढ़ा था. उस दौर में इस कविता का शीर्षक ‘इंडियन प्रेयर ’ था. पराधीनता की बेड़ियों से जकड़े भारत के लिए कामना थी कि ईश्वर इस देश को हर तरह की संकीर्णता से मुक्त कर ज्ञान, सत्य व तार्तिकता से युक्त एक व्यापक चेतना वाली स्वतंत्रता प्रदान करे. आजादी के इकहत्तर साल बीतने के बावजूद और इक्कीसवी सदी के नए भारत के लिए उस प्रार्थना की उतनी ही जरुरत है जितनी उसकी रचना के समय रही होगी. प्रार्थना है कि Where the mind is without fear and the head is held high Where knowledge is free ...