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ये कवितायें भी तो प्रेम में ही रची गईं थीं...

  तुम्हारे पर कतर देती है....... घनघोर बारिश में मिलन की आस में लंबी यात्रा के पश्चात एक काली रात को जब वह दस्तक देता है अपनी प्रेयसी के दरवाजे पर तो अनायास ही कुछ घटित होता है, उसके बाद के “तुलसी” को सब जानते हैं. लेकिन दरवाजे पर घटित पल भर की घटना तुम्हारे जीवन में भी घटित होती है जब अपनी पूरी लय में मन की गति से भी तेज तुम, उड़ उसके पास पहुँच जाना चाहते हो और तुम्हारी अपनी “अलका” अपने हाथों तुम्हारे पर कतर देती है......... **************** अपनी प्रेयसी का संसार न जाने किसकी तलाश में भटकता हूँ और जब सूरज ढलता है वहाँ जा कर बैठता हूँ कि शीतल चांदनी का स्पर्श मदमाती निशा का नृत्य और सृष्टि की वीणा का साज होगा. आँखे बंद कर लेता हूँ कि तलाश पूरी हुई लेकिन होता है क्या सोचने मात्र से सहसा कोई जोर का धक्का देता है मैं धूल में होता हूँ चांदनी घबरा जाती है निशा का नृत्य थम जाता है और वीणा के तार टूट जाते हैं. धक्का देने वाला कोई और नहीं अपनी ही प्रेयसी का संसार है.

दो कवितायें

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देवदास को मेरी याद आयी है बरसों बाद देवदास को मेरी याद आयी है आसमान से उतरने लगा है वह  रोज रात की तन्हाई में और दबे पांव दाखिल हो मेरी जिंदगी में खूब चर्चा करता है चंद्रमुखी की. चंद्रमुखी चुन्नी बाबू माँ और मदिरा सब हैं उसकी आत्मकथा में बस वो नहीं है जिसकी वजह से देवदास का अस्तित्व है. माना आत्मकथाओं में सच नहीं होता और इतिहासकारों को सच का पता नहीं देवदास न जाने कैसे बन जाता है मेरा सच रोज रात की तन्हाई में. पुनर्जन्म ही अंतिम सत्य है मंदिरों में पंडितों ने अर्चना की सालों तक अलका के मोक्ष हेतु जनम मरण के बंधन से मुक्ति हेतु लेकिन काल के कुछेक पृष्ठ पलटते ही वीरान खंडहरों में उसके नृत्य व हंसी की गूँज ............ यज्ञ , पूजा – अर्चना की बेबसी   और अलका की उन्मुक्त हंसी हमेशा की भांति मृग - मरीचिका के हादसों का शिकार देवदास - बदहवास पुनर्जन्म ही अंतिम सत्य है