रजनीश के बोल

एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर से रात के समय विदा होने लगा तो मित्र ने अपनी लालटेन उसके हाथ में थमा दी. अंधे ने कहा , ‘ मैं लालटेन लेकर क्या करूं ? अंधेरा और रोशनी दोनों मेरे लिए बराबर हैं.’ मित्र ने कहा , ‘ रास्ता खोजने के लिए तो आपको इसकी जरुरत नहीं है , लेकिन अंधेरे में कोई दूसरा आपसे न टकरा जाये इसके लिये यह लालटेन कृपा करके आप अपने साथ रखें.’ अंधा आदमी लालटेन लेकर जो थोड़ी ही दूर गया था कि एक राही उससे टकरा गया. अंधे ने क्रोध में आकर कहा , ‘ देखकर चला करो. यह लालटेन नहीं दिखाई पड़ती है क्या ?’ राही ने कहा , ‘ भाई तुम्हारी बत्ती ही बुझी हुई है.’ प्रकाश दूसरे से मिल सकता है लेकिन आँख दूसरे से नहीं मिल सकती. जानकारी दूसरे से मिल सकती है लेकिन ज्ञान दूसरे से नहीं मिल सकता. और अगर आँख ही न हो तो प्रकाश का क्या करियेगा ? ज्ञान न हो तो जानकारी बोझ हो जाती है. अंधा आदमी बिना लालटेन के ज्यादा सुविधा में था क्योंकि सम्हलकर चलता , होशपूर्वक चलता. अंधा हूँ , तो डरकर चलता. हाथ में लालटेन थी , आदमी अँधा था तो आश्वासन से चलने लगा. अब कोई...