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पैर'नॉइआ और प्रॉपगैंडा (Paranoia और Propaganda)

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       अंग्रेजी का एक शब्द है , Paranoia ( पैर ' नॉइआ). ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार इसका अर्थ है - ' इस गलत विश्वास पर आधारित एक मानसिक रोग कि अन्य व्यक्ति आपको हानि पहुंचाना चाहते हैं अर्थात मिथ्या संदेह या वहम का रोग '.        इंसान के अंदर कहीं न कहीं एक अज्ञात भय रहता है ; लेकिन वह अपना ज्ञान बढ़ाकर , सत्य के अन्वेषण द्वारा अपने अंदर के भय पर विजय हासिल करने की कोशिश करता है. सत्य का अभाव इंसान के अंदर के अवास्तविक डर को बढ़ाता है. डरे हुए लोग इकट्ठे होने लगते हैं , डरे हुए लोगों के बीच एक (तथाकथित) मजबूत नेता उभरता है जो विश्वास दिलाता है कि वह बचा लेगा. लेकिन उस नेता को सारी ताकत आम लोगों के अंदर बैठे डर से मिलती है. इसलिए वह कभी नहीं चाहता कि लोगों के अंदर बैठा डर मिटे. यही कारण है कि नित नए भय का माहौल बना रहता है और भय का यह माहौल रचा जाता है प्रॉपगैंडा से.        आज से लगभग सौ साल पहले 1923 में जेल में सजा काट रहे हिटलर ने अपनी राजनीतिक विचारधारा के साथ आत्मकथा लिखी थी जो ' मीन...

‘9 नवंबर’ में महात्मा गाँधी

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पिछले हफ्ते महात्मा गाँधी व व उनके बड़े बेटे हरिलाल का जिक्र निकला था. हम किसी भी मसले पर तत्क्षण ‘ फाइनल जजमेंट ’ देने लगते है. आसान है ऐसा करना लेकिन यह भी सच है कि हम महात्मा गाँधी को जितना अधिक जानने का प्रयास करते हैं , उतना ही अधिक पता चलता है कि हम कितना कम जानते हैं. फिर किसी अंतिम निष्कर्ष पर पहुँचने की इतनी जल्दी क्यों ,  यात्रा का थोड़ा आनंद तो लिया जा सकता है. उपन्यास ‘ 9 नवंबर ’ में महात्मा गाँधी के बैद्यनाथ धाम देवघर आने का जिक्र आता है. उस अंश को फिर से पढ़ते हैं....   रह – रह कर उचटती नींद के बीच शेखर के दिन किसी तरह कट रहे थे कि ‘ निश्चय ’ में प्रकांड विद्वान पंडित श्री हरि शंकर चौबे के पांव पड़े – “शेखर बेटा ! ब्राह्मणों और अगड़ों के लिए आज दोहरी परीक्षा है. एक ओर मुसलमानों के अनवरत तुष्टिकरण से सनातन धर्म पर खतरा बढ़ता जा रहा है तो दूसरी ओर सरकार दिनों – दिन अछूतों का दिमाग बिगाड़ती जा रही है. हमें अपने अस्तित्व की लड़ाई स्वयं लड़नी है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा अवरोध हमारे ही अंदर है. सवर्ण – ब्राह्मण आदि ही जो कांग्रेसी रहे हैं या कांग्रेसियों क...

बा ! संतरा केवल आप ही खाइयेगा !

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बागडोगरा के लिए उड़ान भरने वाली फ्लाइट के इंतजार में कोलकाता एअरपोर्ट पर बैठा हूँ. कल रविवार है और टीकाचक के लिए कुछ लिख नहीं पाया हूँ. कौन पढ़ रहा है , मालूम नहीं लेकिन खूब लिखा जा रहा है ; कौन सुन रहा है – पता नहीं लेकिन लोग बोल रहे हैं. बहुत बोल रहे हैं और न जाने क्या-क्या बोल दे रहे हैं. तो बहुत लिखने व बहुत बोलने के दौर में बगैर कुछ बोले , चुपचाप – बस पढ़ने का मन हो रहा है. तो फिर से एकबार पढ़ रहा हूँ उसके बारे में जिसके बारे में खूब लिखा गया है और आज भी लिखा जा रहा है. भारत वापसी के बाद वह पूरे देश की ख़ाक छान रहा था – मुँह बंद किये लेकिन आँख व कान खोले हुए. ऐसे में उसे बनारस में हिन्दू कॉलेज (जो आगे चल कर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी कहलाया) के उद्घाटन समारोह में बोलने के लिए बुलाया गया. जिसमें वायसराय समेत कई राजा-महाराजा शामिल थे. राजा-महाराजाओं ने इस कॉलेज के निर्माण में भारी चंदा दिया था , इसलिये इस समारोह में उन्हें वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलना बिल्कुल स्वाभाविक था. वैसे भी वे थे तो राजा-महाराजा ही न - सोने-हीरे के आभूषणों से लदे हुए. महिमामंडन के उस समारोह में साधारण से दिखने ...