आदमी को प्यास लगती है -- ज्ञानेन्द्रपति
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ज्ञानेन्द्रपति |
जो एक हैंडपम्प है
भरी दोपहर वहाँ
दो जने पानी पी रहे हैं
अपनी बारी में एक जना चाँपे चलाये जा रहा है हैंडपम्प का हत्था
दूसरा झुक कर पानी पी रहा है ओक से
छक कर पानी पी, चेहरा धो रहा है वह बार-बार
मार्च-अख़ीर का दिन तपने लगा है, चेहरा सँवलाने लगा है, कण्ठ रहने लगा है हरदम ख़ुश्क
ऊपर, अपने फ्लैट की खुली खिड़की से देखता हूँ मैं
ये दोनों वे ही सेल्समैन हैं
थोड़ी देर पहले बजायी थी जिन्होंने मेरे घर की घंटी
और दरवाजा खोलते ही मैं झुँझलाया था
भरी दोपहर बाज़ार की गोहार घर के चैन को झिंझोड़े यह बेजा ख़लल मुझे बर्दाश्त नहीं
'दुनिया-भर में नंबर एक' -- या ऐसा ही कुछ भी बोलने से उन्हें बरजते हुए
भेड़े थे मैंने किवाड़
और अपने भारी थैले उठाये
शर्मिन्दा, वे उतरते गये थे सीढ़ियाँ
ऊपर से देखता हूँ
हैंडपम्प पर वे पानी पी रहे हैं
उनके भारी थैले थोड़ी दूर पर रखे हैं एहतियात से, उन्हीं के ऊपर
तनिक कुम्हलायी उनकी अनिवार्य मुस्कान और मटियाया हुआ दुर्निवार उत्साह
गीले न हो जायें जूते-मोजे इसलिए पैरों को वे भरसक छितराये हुए हैं
गीली न हो जाये कण्ठकस टाई इसलिए उसे नीचे से उठा कर गले में लपेट-सा लिया है, अँगोछे की तरह
झुक कर ओक से पानी पीते हुए
कालोनी की इमारतें दिखायी नहीं देतीं
एक पल को कस्बे के कुएँ की जगत का भरम होता है
देख पा रहा हूँ उन्हें
वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद नहीं हैं
भारतीय मनुष्यों के उत्पाद हैं
वे भारतीय मनुष्य हैं -- अपने ही भाई-बन्द
भारतीय मनुष्य -- जिनका श्रम सस्ता है
विश्व-बाजार की भूरी आँख
जिनकी जेब पर ही नहीं
जिगर पर भी गड़ी है.
*****
('कवि ने कहा' से)
102% true sir
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंइसके साथ ही ज्ञानेंद्रपति की कई कविताएं बहुत मशहूर रही. इसलिए कि उन्होंने समय की कमजोरियों पर अपनी उंगली रखी, उस तरफ इशारा किया, लोगों का ध्यान खींचा. आठवें दशक के प्रमुख कवियों में एक ज्ञानेंद्रपति की कविताओं को नए सिरे से पढ़े जाने की जरूरत है. उन कविताओं की तरह फिर से पाठकों का ध्यान खींचने के लिए टीकाचक बहुत शुक्रिया और शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम
हटाएंमनुष्यता के प्रति कवि का करुण भाव। कवि के प्रणाम।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम
हटाएंको
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