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काँच की छत और खुले आसमान का भ्रम

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आज अनायास ही बचपन की धुंधलाती स्मृति पटल पर दीना मुसहर की घरवाली चली आयी. वह दीना मुसहर के साथ काम करने आती थी और शाम को जब घर जाने लगती तो माँ उसे पौने दो सेर अनाज देती. पौने दो सेर – एक सेर दीना के लिए और तीन पाव उसकी घरवाली के लिए. दीना मुसहर की घरवाली अकेली नहीं थी, और भी औरतें आती थीं – सब एक पाव अनाज कम पातीं और खुशी – खुशी अपने घर चली जातीं. कोई सवाल नहीं करता. किसी के पास कोई सवाल भी नहीं था सिवाय दीदी के. दीदी हमेशा प्रश्न करती रहती और सबके चेहरे पर उतराते भावों के मजे लेती. लोगों को उसके सवाल समझने के बावजूद समझ में नहीं आते और उसके ऊपर बगैर जवाब सुने उसका जोर से हँस पड़ना – सब बड़ा उलझाऊ होता था. ऐसे में जब भी माँ दीना मुसहर की घरवाली को पौने दो सेर अनाज की मजूरी देती, दीदी माँ से पूछती –        “माँ, दीना बो (दीना की घरवाली) को तीन पाव और दीना को एक सेर. बेचारी कितना काम करती है. बाहर जाकर देखो दीना खाली बैठा बीड़ी पी रहा होगा. इसको सवा सेर दिया करो.”        माँ की जगह दीना बो सफाई देती –    ...

गाली में स्त्री

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जुलाई 2016 में भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म की सर्वाधिक दुहाई देने वाली राजनीतिक पार्टी के उभरते नेता ने एक वरिष्ठ दलित महिला नेता को गाली दी , जिसे लेकर हंगामा बरपा हुआ. इसके साथ ही कुछ दिनों तक गालियाँ सुर्खियों में रहीं. वैसे गालियाँ हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं , हमें पता भी नहीं चलता और हमारे मुँह से अनायास ही गालियाँ निकल जाती हैं. ब्रिटिश लेखिका मेलिसा मोर गालियों पर लिखी अपनी किताब में कहती हैं कि गालियाँ देना , हमारे इंसान होने की निशानी है. यह हमारी बुनियादी जरूरत है ताकि हमारी भड़ास निकल सके.        गालियाँ देना हमारे इंसान होने की निशानी है !!! दिलचस्प बात है कि तमाम चीजें हमारी बुनियाद तय करती हैं और उनमें गालियाँ भी हैं , लेकिन गालियों की बुनावट , उसके भाषाविज्ञान पर ध्यान देने पर एक नया आयाम उभरता है – तेरे माँ की , तेरे बहन की , मादर** , बहन**. कितने कमाल की है हमारी प्रयोगधर्मिता. आखिर तमाम गालियों में माँ , बहन व बेटी ही क्यों हैं. जिस धरती पर भारत माता और गौ माता के नाम पर सपूतों के खून उबाल मारने लगते हों उनकी बोलियों और ...

केशव नहीं आयेंगे, लेकिन हताश मत होना....

आखा तीज या अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यताओं की फेहरिश्त लंबी है. इसी दिन त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था, गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थीं, महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश से महाभारत लिखवाना शुरू किया था, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम व सौभाग्य की देवी अन्नपूर्णा का भी जन्म हुआ था और आखा तीज के दिन ही भगवान शिव ने कुबेर को धन – संपदा का प्राधिकार सौंपा था. तमाम मान्यताओं के साथ एक मान्यता यह भी है कि आखा तीज के दिन हुआ विवाह बहुत ही मंगलदायी सिद्ध होता है. विवाह हेतु सबकी मंगल कामना होती है लेकिन अगर अबोध बच्चों की शादी का आयोजन हो तो किसी भी विवेकी मन में आशंकाओं का घर करना स्वाभाविक है. साथ ही यह भी सत्य है कि मान्यताओं को विवेकी और तर्कशील बातें नहीं सुहाती क्योंकि उनका एक तर्क होता है –        “यह हमारी सनातन परंपरा है और इसे भगवान ने बनाया है.” राजस्थान में आखा तीज के दिन बाल विवाह की पुरानी परंपरा रही है जबकि सालों पहले इसे अपराध घोषित किया जा चुका है. तमाम प्रयासों के बावजूद इस आपराधिक कृत्य को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सका है. हाँ, इसे...

इक्कीसवीं सदी में अंधविश्वास का महाविज्ञापन

        हाल में एक प्रमुख अखबार पर नजर पड़ी. अखबार के मुखपृष्ठ समेत दो पृष्ठों पर समाचारों की शक्ल में अद्भुत घोषणाएं छपीं थीं -  “आज से ही शुरू हो जायेगा सभी दुखों और कष्टों का अंत. इस अद्भुत पाठ को सुनने-करने मात्र से दरिद्र भी महाधनवान बन जाता है. प्रभु कृपा का सर्वशक्तिशाली महाविज्ञान. विश्व के करोड़ों लोगों ने पाई असाध्य कष्टों से मुक्ति.”       उपरोक्त बड़े हेडलाइनों के बाद समाचारों के छोटे टाइटल भी महत्वपूर्ण थे जो मंत्र अथवा दिव्य पाठ की महिमा प्रदर्शित कर रहे थे, उदहारणस्वरुप बिना ऑपरेशन के लीवर का गंभीर रोग ठीक / किडनी की पथरी समाप्त हो गई / 23 वर्ष बाद पक्ष में हुआ कोर्ट का फैसला / पांच साल पुराने मानसिक रोग से मुक्ति / 20 साल पुरानी बी पी की प्रॉब्लम से मुक्ति / चार वर्षों से अटका प्रमोशन हो गया आदि - आदि.                 यकीनन ऊपर जो लिखा है, वह समाचारों की शक्ल में विज्ञापन था. हम भांति-भांति के लुभावने विज्ञापन व लोगों के ध्यान आकर्ष...

हिन्दी में बोलना “उद्दंडता” है !

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(भारत के सबसे बड़े प्रांत की सरकार ने एक फैसला लिया है कि अब बच्चों को पहली कक्षा से ही अंग्रेजी की शिक्षा प्रदान की जायेगी. इस फैसले के पीछे के जो भी कारण हों, मेरी समझ से हिंदी में बोलना बदतमीजी है और इसीलिए अंग्रेज़ी सीखना आवश्यक है, आखिर बदतमीजी ठीक बात तो नहीं. पूरी विनम्रता से 2015 में लिखा गया यह लेख आपके लिए  हिंदी में  प्रस्तुत है क्योंकि अंग्रेज़ी मुझे आती नहीं. गुस्ताखी माफ़ हो !)   हिन्दी के नाम पर होने वाले बड़े राजकीय पर्वों का ‘ सितंबर माह ’ दस्तक दे रहा था। लगभग एक पखवाड़े बाद आयोजित होने जा रहे बहुचर्चित विश्व हिन्दी सम्मेलन की आयोजन स्थली भोपाल से मैंने यात्रा प्रारंभ की। वायुयान में मुझे ‘ इमरजेंसी गेट ’ के पास वाली सीट मिली थी। उड़ान की औपचारिकताओं को पूरा करने हेतु एयर होस्टेस ने जरूरत पड़ने पर आपातकालीन द्वार खोलने के संबंध मे बताना आरंभ किया। द्वार खोलने की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने की खातिर मैंने फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोल रही एयर होस्टेस को बीच मे टोका और अनुरोध किया कि वे हिन्दी में समझाएँ। एयर होस्टेस ने मेरे पास बैठी सुदर्शन सहयात्रिणी से...