इबादतगाह में सन्नाटा

नज़रबंदी के इस दौर में हम एक-दूसरे का हाल-चाल कुछ अधिक ही पूछने लगे हैं. रंगीलाल जी बड़े पुराने मित्र रहे हैं. इधर कई सालों से उनसे बातचीत नहीं हो पाई थी , कल उनका फोन आया , " भैया , अब तो मानोगे कि कोई केन्द्रीय शक्ति है , जो इस दुनिया को चलाती है." रंगीलाल जी बड़े भोले इंसान हैं , वे अनावश्यक समय बर्बाद नहीं करते और मौक़ा मिलते ही सबको अपने रंग में रंगने लगते हैं. मैं क्या कहता , अमूमन मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं होता और रंगीलाल जी की बात तो ठीक ही थी. हमारे लिए एक मर्कज़ी साहिबे इख्तियार तो हैं ही , जिनके ऐलान के साथ हम सब अपनी मर्जी से नज़रबंद हो गए. ये बात दूसरी है कि जोश में कुछ बड़े साहब लोगों ने घंटा बजाने व शंख पूरने के लिए सड़क पर जुलूस निकाल लिया , जबकि मस्नदनशीं साहिबे इख्तियार ने अपने-अपने घरों से न निकलने की हिदायत दी थी. हो जाता है अक्सर , दिमागी-दड़बे की दीवार-ओ-छत के बेहद मजबूत होने पर होने लगता है ये सब. खैर , रंगीलाल जी ने जिस केन्द्रीय शक्ति अथवा ईश्वर की बात की थी , उस ईश्वर के होने का सवाल लगातार मथता रहा है. सदियों से इंसान क...