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किताब एक खतरनाक चीज है !

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प्रख्यात कवि ज्ञानेन्द्रपति की एक कविता है – टेलीविजन को देखो. इस कविता की कुछ पंक्तियाँ अनायास ही झकझोरने लगती है –        ‘किताब एक खतरनाक चीज है.        आदमी के हाथों में उसके जाते ही        सल्तनत के पाये डगमगाने लगते हैं        किताब की चुप्पी में बंद चीखें और ललकारें        किताब को खोलते ही        बारूद की गंध की तरह उठने लगती हैं        रक्त संचार में घुलने लगती हैं        .....................’        कहते हैं किताबें अँधेरे दूर करती हैं. इसके शब्द बोध व समझ की ज्योति लेकर आते हैं, ऐसे में किताब को खतरनाक चीज कहना क्या वाजिब है ? कविता की शुरुआती पंक्तियाँ हैं –        'फेंको पुस्तक        देखो अब शुरू होता है हमारा सबसे दिलचस्प कार्यक्...

बड़े भोले हो, पिता ! तभी तो मुझे जन्म लेने दे रहे हो !

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उन्नीस सौ नब्बे के दशक के आरंभ में बारहवीं परीक्षा पास करने के बाद थोड़े दिनों के लिए अपने बड़े भाई के यहाँ पानीपत गया था. बड़े भाई पानीपत के मॉडल टाउन में किराये के मकान में रहते थे. रेलवे स्टेशन से उनके आवास तक जाने के रास्ते में सुंदर मकानों व गाड़ियों को देख मैं विस्मित था. बीमारू प्रदेश के एक गाँव से चलकर मैं वहाँ पहुँचा था और उस छोटे से शहर की समृद्धि को देख मुझे बार-बार यही ख़याल आता रहा कि मैं कितने पिछड़े इलाक़े से हूँ और यह कितना आधुनिक शहर है. मेरी बोलती बंद सी हो गई थी. बड़े भाई जिस मकान में रह रहे थे उसके ठीक पड़ोस का मकान , मकान नहीं व्हाइट हाउस था. व्हाइट हाउस कहने मात्र से जो अहसास किसी धरतीवासी के अंदर हो सकता है , वही अहसास उस प्रासाद को देखकर मुझे होता था. मैं अपलक उसे निहारता रहता , उस घर के लोगों के बारे में तरह-तरह की रूमानी कल्पना करता – कितने मॉड – अल्ट्रा मॉड लोग होंगे ; अति आधुनिक.        मेरे प्रवास के दूसरे दिन शाम में व्हाइट हाउस की बालकनी पर लगभग बीस साल की एक मोटी लेकिन सुंदर लड़की अपने गोद में दस-ग्यारह महीने के एक लड़के के सा...

कुछ सीता भी कहती है, चुपचाप !

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यहाँ मैं अपनी ओर से कुछ लिखने से पूर्व श्रीमद् वाल्मिकी रामायण का कुछ अंश हूबहू उतार रहा हूँ. हूबहू इसलिए कि आप स्वयं ही इस पर विचार कर सकें , बगैर किसी चश्मे के. हाँ , इस अध्याय का अंत तो मेरे अपने शब्दों ही होना है.   श्रीमद्  वाल्मीकि रामायण से (हूबहू) राक्षसराज विभीषण को लंका के राज्य पर अभिषिक्त देखकर उनके मंत्री और प्रेमी राक्षस बहुत प्रसन्न हुए. साथ ही लक्ष्मणसहित श्रीरामजी को भी बड़ी प्रसन्नता हुई. इसके पश्चात श्रीराम ने हनुमानजी से कहा –   “ सौम्य ! तुम इन महाराज विभीषण से आज्ञा लेकर लंकानगरी मे प्रवेश करके मिथिलेशकुमारी सीता से उनका कुशल-समाचार पूछो. तुम वैदेही को यह प्रिय समाचार सुना दो कि रावण युद्ध में मारा गया. तत्पश्चात उनका संदेश लेकर लौट आओ.” भगवान श्रीराम का यह संदेश पाकर हनुमानजी ने लंका में प्रवेश किया और विभीषण से आज्ञा मांगी. उनकी आज्ञा मिलते ही वह अशोकवाटिका में गए. महाबली हनुमान को आया देख देवी सीता उन्हें पहचानकर मन ही मन प्रसन्न हुईं , किन्तु कुछ बोल न सकीं. चुपचाप बैठी रहीं.       “विदेहनंदिनी ! श्रीरामचन्द्रजी ल...

आम आदमी से लोकतंत्र को खतरा

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आज एक व्याख्यान में शामिल हुआ था. वक्ता ने एक महत्वपूर्ण बात की – यद्यपि लोकतंत्र लोगों के द्वारा, लोगों के लिए, लोगों की सरकार है; यह आम आदमी ही है जो लोकतंत्र के लिए खतरा बनकर उभरता है. यह आम आदमी ही है जो लोकतंत्र की आत्मा को मारने का भी काम करता है. बात अटपटी सी लग सकती है. इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण बात कि आज आम आदमी के विरुद्ध बोलना खतरे से खाली नहीं. लेकिन ध्यान से देखने पर आम आदमी की दानवी शक्ति का सहज अंदाजा लगता है. यह आम आदमी ही है जो तमाम तरह की पशुता, धर्मान्धता, नफरत, खून-खराबे को बल देता है. आम आदमी के इस भयानक रूप को स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल जरुर है लेकिन जब उस वक्ता को सुन रहा था अनायास ही विल्हेम रेक की किताब लिसन, लिटिल मैन (Listen, Little Man) का ख्याल आया. नवंबर 2014 में इस किताब को कागज़ पर उतारा था, उसे यहाँ दुहरा रहा हूँ.  सालों पहले भगवान श्री रजनीश (ओशो) ने एक किताब का जिक्र किया था –       “यह एक अजीब किताब है. उसे कोई नहीं पढ़ता. तुमने शायद उसका नाम भी न सुना हो, हालांकि यह अमेरिका में ही लिखी गई है. किताब है : ‘लिसन, लिटिल मैन’; ...