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हौआ और नुनेज़ की आँखें

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एच जी वेल्स की एक प्रसिद्ध कहानी है – ‘द कंट्री ऑफ़ द ब्लाइंड.’ अपने छात्र जीवन में हम सबने इसके संक्षिप्त रूप को पढ़ा होगा. आजकल अनायास ही इस कहानी की याद आ जाती है और मुझे लगता हैं हमें इस कहानी को बार-बार याद करते रहना चाहिए.        बड़ी प्यारी कहानी है और बहुत कुछ कह जाती है. एक पर्वतारोही है – नुनेज़ ! पर्वतारोहण के एक अभियान में नुनेज़ पहाड़ से फिसलता है और एक अनोखी घाटी में पहुँच जाता है. यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ के लोग अँधे हैं लेकिन उन्हें अपने अँधेपन की खबर नहीं. वे जी रहे हैं और मस्त हैं अपनी दुनिया में. दिन और रात में कोई फर्क नहीं. नुनेज़ के मन में लालच आता है और वह अपने मन में दुहराता है – ‘अँधों में काना राजा.’ नुनेज़ सोचता है वह इस घाटी का राजा बनेगा क्योंकि उसके पास आँख है. वह सोचता तो है, वह अपने मन में दुहराता तो है कि ‘अँधों में काना राजा ’ लेकिन नुनेज़ पर्वतारोही है , राजनेता नहीं. उसने अपने जीवन में कई साहसिक काम किये थे , पहाड़ तोड़े थे सही अर्थों में – राजा बनने में उसके यही गुण बाधक बन गए. राजनेता होता तो चीजें बड़ी आसान हो जातीं. र...

सामने से मेरे : चंद्रेश्वर

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हम तो बड़े सीधे-साधे लोग हैं. जमाना कितना बेईमान है. कितनी लूट-खसोट मची है. उनको देखिये कितनी मौज में हैं. गाड़ी-बँगला, बैंक-बैलेंस कितना कुछ इकट्ठा कर लिया साहब. कितनी शान में जी रहे हैं.        हमारे अंदर मौज में जीने की, गाड़ी-बँगले की चाहत पलती रही और इस कारण बेईमानी की भी. लेकिन बेईमानी करने हेतु वांछित हिम्मत न होने के कारण अंदर ही अंदर कुंठा बढ़ती चली गयी.        हम ईमानदारी की दुहाई देकर बेईमानों को कोसते रहे और हमारी कुंठा, हीन-भावना बढ़ती रही.        हम बड़े उदार लोग हैं और वे कितने आतताई ! उनका आतंक बढ़ता जा रहा – इतना कि अब अपने अपने-आप को बचा पाना मुश्किल है. हमारा संस्कार, हमारा धर्म कितना उदार है. इसके बरक्स वे ? वे फैलते जा रहे हैं और हम सिकुड़ते जा रहे हैं.        उदारता की दुहाई देकर संकीर्णता को कोसते रहे और हमारी कुंठा बढ़ती रही.        असल में न तो हमारा ईमानदार होना सच था, न तो उनका बेईमान होना. न तो हमारी उदार...

नए भारत में गुरुदेव की कविता ‘इंडियन प्रेयर’ की जरुरत

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आज से 119 साल पहले 1900 के आस-पास गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक कविता लिखी थी – ‘चित्त जेथा भयशून्य’. 1911 में उन्होंने इस कविता का अंग्रेज़ी अनुवाद किया जो गीतांजलि में शामिल हुआ. आगे गुरुदेव ने इस कविता को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भी पढ़ा था. उस दौर में इस कविता का शीर्षक ‘इंडियन प्रेयर ’ था. पराधीनता की बेड़ियों से जकड़े भारत के लिए कामना थी कि ईश्वर इस देश को हर तरह की संकीर्णता से मुक्त कर ज्ञान, सत्य व तार्तिकता से युक्त एक व्यापक चेतना वाली स्वतंत्रता प्रदान करे. आजादी के इकहत्तर साल बीतने के बावजूद और इक्कीसवी सदी के नए भारत के लिए उस प्रार्थना की उतनी ही जरुरत है जितनी उसकी रचना के समय रही होगी. प्रार्थना है कि                               Where the mind is without fear and the head is held high              Where knowledge is free     ...

गाँधी की गीता

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महात्मा गांधी ने नवंबर 1930 में यरवदा जेल में गीता पर लिखना आरम्भ किया था.  पूरी गीता (के अठारह अध्यायों) को कुछेक पन्नों में समेटते हुए महात्मा गांधी की टीका अपने आप में एक नई दृष्टि लेकर आती है. गांधी जी सहज तरीके से एक साधारण व्यक्ति के लिए  इसकी सार्थकता सिद्ध करते हैं. स्वयं उन्हीं के शब्दों में –        “कुछ लोग कहते हैं कि गीता तो महा गूढ़ ग्रंथ है. लोकमान्य तिलक ने अनेक ग्रंथों का मनन करके पंडित की दृष्टि से उसका अभ्यास किया और उसके गूढ़ अर्थों को वह प्रकाश में लाये. उस पर एक महाभाष्य की रचना भी की. तिलक महाराज के लिए यह गूढ़ ग्रंथ था; पर हमारे जैसे साधारण मनुष्य के लिए यह गूढ़ नहीं है. सारी गीता का वाचन आपको कठिन मालूम हो तो आप केवल पहले तीन अध्याय पढ़ लें. गीता का सार इन तीन अध्यायों में आ जाता है.” यहाँ महात्मा गाँधी के शब्दों में गीता-सार की प्रस्तावना समेत पांच अध्यायों का सार प्रस्तुत है. प्रास्ताविक   गीता महाभारत का एक नन्हा – सा विभाग है. महाभारत ऐतिहासिक ग्रंथ माना जाता है, पर हमारे मत से महाभारत और रामायण ऐतिहासिक ग्...

जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल

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रिचर्ड बाख की एक अनोखी किताब है - जोनाथन लिविंगस्टोन सीगल ! 10,000 से भी कम शब्दों में सिमटी यह किताब उस समुद्री पक्षी की कहानी है जिसका उड़ना भोजनमात्र की खोज नहीं है. वह उड़ता है आसमान को छूने के लिए, आसमान से भी पार जाने के लिए. अपने खफ़ा हुए तो क्या, जमात से अपमानित कर बाहर निकाल दिए गए तो क्या, नितांत तन्हा रह गए तो क्या – लेकिन इस परवाज का मकसद भोजन की तलाश मात्र नहीं हो सकता. -----------------------        सुबह हो गई है, सूरज की किरनें समंदर पर एक अनोखी छटा बिखेर रही हैं. मछुआरों की नाव समंदर किनारे लग गई हैं और इसी के साथ हजारों की संख्या में ‘ सीगल’ भोजन की तलाश में झुण्ड बना कर इधर – उधर उड़ रहे है – बस खाने को कुछ मिल जाए. कुछ भी हो - मछली हो या केकड़ा.        तभी एक सीगल शिशु आसमान से तट पर गिरता है और उसकी माँ चीखती है –        “जॉन ! जॉन ! तुम कब सुधरोगे ? तुम्हारे साथ क्या परेशानी है, बताओ. तुम्हें बाकी सीगल बच्चों की तरह आराम से रहने में क्या दिक्कत होती है. हर घड़ी हवा मे...

भीड़-भारत # 2

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कुछ दिनों पहले ही लोगों  की भीड़ जोर से गरजी थी कि वह बदल रहा है. वह जानता है कि उसकी उमर कुछ ज्यादा ही हो चली है , वह यह भी जानता है कि लोग उसे लेकर तरह-तरह की बातें करते हैं या कहें तो उसे कई तरीके से देखते हैं. कभी-कभी सोचता है कि उसकी उमर शायद कुछ ज्यादा ही हो गई है , इसीलिए उसे ठीक-ठीक याद नहीं रहता कि असल में वह कैसा है , असल में वह कौन है. वैसे वह जैसे ही ठहर कर शांत चित्त कुछ याद करने की कोशिश करता है , जोर-जोर कोई चिल्लाने लगता है कि वह बदल रहा है. इतना तो वह जानता है कि वह बदल रहा है क्योंकि बदलना ही सबसे बड़ा सत्य है. पल प्रतिपल हर कोई बदल रहा है , धरती बदल रही है , आसमान बदल रहा है. बदलना ही नियति है , लेकिन उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है कि हर घड़ी कोई न कोई चिल्लाने लगता है कि वह बदल रहा है. इतनी रात जबकि अँधेरा गहरा गया है उसके घर के आगे लोग फिर से चिल्लाने लगे हैं.        यद्यपि चिल्लाते हुए लोग फुसफुसाते भी हैं और उनकी फुसफुसाहट वह सुन सकता है. ‘ मार साले को , साला बुढ्ढा , भोंस... के , मादर ....... , साले का घर ही जला डाल ’ ...