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चमकते भारत में दुखिया का दुःख !??

भारत चमक रहा है , भारत दमक रहा है. इस चमकते-दमकते भारत ने दावोस में भी अपना झंडा गाड़ा , जहाँ पृथ्वी ग्रह के सबसे बड़े लोग – सर्वाधिक शक्तिशाली लोग , सर्वाधिक धनी लोग एकत्रित थे. बीते दिनों हमनें प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती , चित्त को शांत करने वाली सफेदी देखी. स्विस स्काई रेसॉर्ट , दावोस में चमकते भारत के चेहरे दिखे. वहां भारत के मेहनती लोग थे , जिन्होंने अपनी मेहनत से दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया था – वहां मुकेश अंबानी थे. वहाँ राहुल बजाज , सुनील मित्तल , सज्जन जिंदल , नरेश गोयल , आनंद महिंद्रा , उदय कोटक , चंदा कोचर , रवि रुइआ , एन चंद्रशेखरन समेत भारत के सौ से अधिक मेहनतकश थे. कहने की जरुरत नहीं कि पूरी धरती इनकी मेहनत व लगन का लोहा मान चुकी है.        सफलता का झंडा बुलंद हो रहा है फिर भी कुछ ‘ नेगटिव आत्माएँ ’ बेचैन घूम रही हैं. बीते साल इन बेचैन आत्माओं ने न जाने कैसे-कैसे इल्जाम गढ़े – ‘ विकास कपड़े फाड़कर घूम रहा है. ’ ‘ विकास पगला गया. ’ ‘ जीडीपी की हालत खराब ’ . इन्हें नहीं दिखता कि बीते एक साल में बिलियनअर ( Billionaire ) क...

दूधनाथ सिंह व विवेकानंद को याद करते हुए...

हिंदी के वरिष्ठ व विशिष्ट साहित्यकार दूधनाथ सिंह नहीं रहे. इस रविवार दूधनाथ सिंह व विवेकानंद को साथ-साथ पढ़ रहा हूँ. 2003 में एक महत्वपूर्ण किताब आई थी – ‘ आख़िरी कलाम ’ . इस किताब की प्रस्तावना में दूधनाथ सिंह ने कितना सच लिखा था –        “...हमें इस बात का डर नहीं है कि लोग कितने बि खर जायेंगे , डर यह है कि लोग नितांत गलत कामों के लिए कितने बर्बर ढंग से संगठित हो जायेंगे. हमारे राजनीतिक जीवन की एक बहुत-बहुत भीतरी परिधि है , जहाँ ‘ सर्वानुमति का अवसरवाद ’ फल-फूल रहा है. वहाँ एक आधुनिक बर्बरता की चक्करदार आहट है. ऊपर से सबकुछ शुद्ध-बुद्ध , परम पवित्र , कर्मकांडी , एकान्तिक लेकिन सार्वजनिक , गहन लुभावन लेकिन उबकाई से भरा हुआ , ऑक्सीजनयुक्त लेकिन दमघोंटू , उत्तेजक लेकिन प्रशान्त – सारे छल एक साथ.”        सब कुछ फल-फूल रहा है. नितांत अकेलेपन में भी एक व्यक्ति भीड़ की तरह सोचने लगा है , भीड़ की तरह बोलने लगा है , भीड़ के खतरनाक कृत्यों को अंजाम देने लगा है. सब सही व कुछ भी गलत नहीं लगने के इस युवा दौर में हमनें अभी परस...

साल का गुजरना और डायरी का एक पन्ना

साल को एक पड़ाव मानें तो एक पड़ाव बीत गया. उमर थोड़ी और बढ़ गई. क्या खोया , क्या पाया – इस हिसाब-किताब का कोई इरादा नहीं , बैलेंस शीट अथवा प्रॉफिट लॉस अकाउंट भी नहीं बनाना. लेकिन हर घड़ी घबराया सा रहता हूँ – कुछ न कुछ खोजता ही रहता हूँ. यह खोज , कुछ पाने की लालसा नहीं , बल्कि खो गई किसी चीज की तलाश है. परेशानी यही है कि पता ही नहीं कि खोया क्या है फिर भी हर घड़ी कुछ खो जाने का अहसास रहता है और घबराया सा रहता हूँ कि वह मिला नहीं. जानकारों की ‘ थिंक पॉजिटिव थ्योरी ’ के मुताबिक़ खोने के अहसास की तीव्रता व घबराहट कम करने के लिये अपनी उपलब्धियों का जिक्र करता हूँ , उन्हें दुहराता हूँ. एक ऐसी दुनिया रचता हूँ जिसमें मुझे मेडल व सर्टिफिकेट मिलते हैं , लोग मेरे लिये तालियाँ बजाते हैं. जानकारों व विशेषज्ञों के कहे अनुसार मैं हर घड़ी मुस्कुराता रहता हूँ , आनंदित दिखता हूँ. बावजूद इसके असलियत यही है कि मेरी घबराहट कम नहीं हुई है , कुछ बेशकीमती खो गया है और मुझे मिल नहीं रहा. कुछ बेशकीमती खो गया है और मुझे मिल नहीं रहा. गुजरे साल के अंतिम दिनों में मैंने कोशिश की कि चलो खो गया तो उसे ‘ राइट...

तीन तलाक़ पर रोक और लोकमत

तलाक़-ए-बिद्दत या इंस्टेंट तलाक़ पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल एक झटके में लोकसभा से पारित हो गया है. सत्ता पर काबिज लोगों की नीयत जो भी हो यह एक स्वागत योग्य फैसला है. स्वागत योग्य इसलिये भी कि कदम-कदम पर यदि धर्म खतरे में पड़ने लगे तो एक बार थम के विचार कर लेना उचित है. आस्थावान लोगों की मान्यता कहती है कि धर्म को ईश्वर ने बनाया. साथ ही ईश्वर सर्वशक्तिमान भी है तो एक मासूम सा सवाल कि फिर ईश्वर के बनाये धर्म को खतरा कैसे हो सकता है. सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना बेबस कैसे हो सकता है कि हर घड़ी उसके धर्म पर मिटने का खतरा मंडराता रहे और वास्तव में यदि ऐसा खतरा हो तो वह धर्म नहीं हो सकता , फिर उसका मिट जाना ही सबके हित में होगा. वैसे यह दौर धार्मिक आस्थाओं (मैं धार्मिक मूढ़ता कहने की धृष्टता नहीं कर सकता , इतना साहस भी नहीं) के परचम लहराने का है. कोई भी धार्मिक आस्थाओं के नाम पर कुछ भी कर सकता है. आज से सत्तर साल स्वतंत्र भारत में जब महिलाओं की स्थिति को सुधारने पर विचार किया तो आस्थावान लोग हिल गए थे. बहु विवाह की समाप्ति , अंतरजातीय विवाह की अनुमति , तलाक को कानूनी दर्जा , बेटियों को संपत...

रजनीश के बोल

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एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर से रात के समय विदा होने लगा तो मित्र ने अपनी लालटेन उसके हाथ में थमा दी. अंधे ने कहा , ‘ मैं लालटेन लेकर क्या करूं ? अंधेरा और रोशनी दोनों मेरे लिए बराबर हैं.’ मित्र ने कहा , ‘ रास्ता खोजने के लिए तो आपको इसकी जरुरत नहीं है , लेकिन अंधेरे में कोई दूसरा आपसे न टकरा जाये इसके लिये यह लालटेन कृपा करके आप अपने साथ रखें.’ अंधा आदमी लालटेन लेकर जो थोड़ी ही दूर गया था कि एक राही उससे टकरा गया. अंधे ने क्रोध में आकर कहा , ‘ देखकर चला करो. यह लालटेन नहीं दिखाई पड़ती है क्या ?’ राही ने कहा , ‘ भाई तुम्हारी बत्ती ही बुझी हुई है.’ प्रकाश दूसरे से मिल सकता है लेकिन आँख दूसरे से नहीं मिल सकती. जानकारी दूसरे से मिल सकती है लेकिन ज्ञान दूसरे से नहीं मिल सकता. और अगर आँख ही न हो तो प्रकाश का क्या करियेगा ? ज्ञान न हो तो जानकारी बोझ हो जाती है.        अंधा आदमी बिना लालटेन के ज्यादा सुविधा में था क्योंकि सम्हलकर चलता , होशपूर्वक चलता. अंधा हूँ , तो डरकर चलता. हाथ में लालटेन थी , आदमी अँधा था तो आश्वासन से चलने लगा. अब कोई...