संदेश

आलमारी

       किसी देश में अवांछित शरणार्थियों की तरह घर में किताबें जहाँ-तहाँ दिखने लगी थीं. इधर-उधर, हर तरफ किताबों के बिखरे होने से शांति-भंग होने की आशंका व किताबों के इस अतिक्रमण के विरोध में निर्जीव व सजीव दोनों वर्गों के साझा मोर्चा लेने की तैयारी की खबर हवा में थी. संशय, विरोध, आशंका व तमाम कुढ़न के बावजूद आहत पक्ष ने समझदारी व विवेक का दामन थामते हुए कोई ‘एक्शन’ लेने से पूर्व नोटिस देने व बातचीत करने के प्रोटोकॉल का अनुपालन सुनिश्चित किया. आहत पक्ष के प्रतिनिधि ने पहले अपना दर्द बयां किया कि किताबों के इस बिखराव के कारण अराजकता किस हद तक बढ़ गयी है और वह दिन दूर नहीं जब वे रसोईघर में भी दाखिल हो जायेंगी. इसी के साथ चेतावनी भी दी गई कि यदि यह हुआ तो ठीक नहीं होगा, लेकिन बातचीत विफल न हो इसको ध्यान में रखकर प्रतिनिधि ने एक महत्वपूर्ण बात रखी -– ‘अराजकता की इस स्थिति से निपटने के लिए इन किताबों को क्यों न उनका देश अथवा घर दे दिया जाय. आलमारी क्यों न खरीद ली जाय !!!’        आलमारी खरीद ली गई और किताबों को उनका वतन मिल गया. सब करीने से सज...

दो कवितायें

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देवदास को मेरी याद आयी है बरसों बाद देवदास को मेरी याद आयी है आसमान से उतरने लगा है वह  रोज रात की तन्हाई में और दबे पांव दाखिल हो मेरी जिंदगी में खूब चर्चा करता है चंद्रमुखी की. चंद्रमुखी चुन्नी बाबू माँ और मदिरा सब हैं उसकी आत्मकथा में बस वो नहीं है जिसकी वजह से देवदास का अस्तित्व है. माना आत्मकथाओं में सच नहीं होता और इतिहासकारों को सच का पता नहीं देवदास न जाने कैसे बन जाता है मेरा सच रोज रात की तन्हाई में. पुनर्जन्म ही अंतिम सत्य है मंदिरों में पंडितों ने अर्चना की सालों तक अलका के मोक्ष हेतु जनम मरण के बंधन से मुक्ति हेतु लेकिन काल के कुछेक पृष्ठ पलटते ही वीरान खंडहरों में उसके नृत्य व हंसी की गूँज ............ यज्ञ , पूजा – अर्चना की बेबसी   और अलका की उन्मुक्त हंसी हमेशा की भांति मृग - मरीचिका के हादसों का शिकार देवदास - बदहवास पुनर्जन्म ही अंतिम सत्य है 

'कवि ने कहा' - ज्ञानेन्द्रपति

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मानव की चेतना यात्रा में सदियों से हमारे साथ एक दुर्घटना होती आयी है. यह दुर्घटना है - हमारा किसी विचारधारा विशेष के समर्थक के रूप में उभरना. हमें पता भी नहीं होता और हम ‘विचारधारा’ के किसी खेमें में शामिल हो अनायास ही असहिष्णुता और आतंक का खेल खेलने लगते हैं.  पक्ष और विपक्ष की यह लड़ाई जब सभ्यता के हर क्षेत्र - साहित्य, कला, संगीत में गहरे तक जड़ फैला चुकी हो, एक “ज्ञानेन्द्रपति” का यह दावा कि उसका पक्ष उसके पाठकों के पक्ष में विलीन हो चुका है तो निस्संदेह वह “ज्ञानेन्द्रपति” एकाकी रह जाता है. लगभग दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य करने के बाद कविता के मोहपाश में फंसे ज्ञानेन्द्रपति सब कुछ त्याग कविता के संग गंगातट - बनारस में बसे, तो कविता विविध रूप  में प्रकट हुई. हिंदी साहित्य के तमाम छोटे - बड़े खेमों से अलग ज्ञानेन्द्रपति ने तीन दशकों से अधिक की रचना यात्रा के सारांश – निवेदन के रूप में अपनी तिरासी कविताओं को 2007 में “कवि ने कहा” के रूप में भेंट करते हुए कहा था – “....... कविता बेशक अपने समय से जूझकर हासिल की जाती है, लेकिन वह उस काल – खण्ड ...

सीवर व सेप्टिक टैंक के शहीद

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा        तिरंगे में लिपटे शव को कंधा देने की होड़ मची है. यह शहीद की शवयात्रा है. श्रद्धा से सिर अनायास ही झुके जा रहे है. सबकी आँखें नम हैं और बंद जुबानों में उसकी परम वीरता व अतुलनीय कुर्बानी की कहानी है. उसने देश की खातिर देश के दुश्मनों व आतंकवादियों की गोलियाँ झेली. लता मंगेशकर जब प्रदीप की पंक्तियों को गाती हैं तो पूरा देश रो पड़ता है –                                 जब देश में थी दीवाली                                 वो खेल रहे थे होली                     ...