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अप्रैल, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गंगा-बीती

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आमतौर पर हाल में प्रकाशित किसी किताब पर लिखने से बचना चाहता हूं। इसका कारण है कि ऐसी किसी कृति पर कुछ लिखने अथवा बोलने मात्र को आलोचना अथवा समीक्षा समझा जाने लगता है और मेरे अंदर आलोचना अथवा समीक्षा हेतु वांछित योग्यता व साहस का सर्वथा अभाव है। यह कार्य मुझे बेहद कठिन लगता है और इरिटेटिंग भी। इसके बरक्स किसी रचना में डूबना, उतराना बड़ा आनंद देता है। साथ ही किसी रचनाकार की पंक्तियों को अपनी सुविधा के अनुसार उद्धृत करना भी अच्छा लगता है। यद्यपि अपनी सुविधा के अनुसार किन्हीं पंक्तियों का अर्थ अथवा भाव बदलना बदतमीजी व बेशर्मी की श्रेणी में आ सकता है, जाने-अनजाने यह गुस्ताखी हो जाती है। पाठकीय स्वतंत्रता के नाम पर ऐसी गुस्ताखियों को माफी मिल सकती है। लेकिन यह माफी संभवत आलोचकों/समीक्षकों के लिए उपलब्ध नहीं होती - कहते हैं उनके अंदर संवेदनात्मक ज्ञान का एक न्यूनतम स्वीकार्य स्तर तो होना ही चाहिए। और पाठक !! वह पूर्णतः स्वतंत्र है, उसकी कोई बाध्यता नहीं, कोई न्यूनतम अहर्ता, कोई बंदिश नहीं; अनुशासन भी नहीं। इसीलिए पाठकीय स्वतंत्रता (या कि स्वच्छंदता - पूर्णतः अनुशासनहीन) की मस्ती के साथ किताब...

नचिकेता से डरता समाज

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        यजुर्वेद की दो शाखाओं में से एक है – कृष्ण यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद की कठशाखा से कठोपनिषद् निकलता है. मात्र दो अध्यायों और 118 श्लोकों में सिमटे कठोपनिषद् का विस्तार बहुत बड़ा है; उसके कई श्लोक हूबहू भगवान श्रीकृष्ण की जुबानी श्रीमद्भगवद्गीता में उतरते हैं. लेकिन कठोपनिषद् अप्रतिम बनता है – नचिकेता के कारण.        नचिकेता की कथा कमोबेश हमें मालूम है. मालूम होने के बावजूद हम नचिकेता की चर्चा करने से बचते है; उसका उल्लेख नहीं किया करते हैं. कारण स्पष्ट है, नचिकेता का जिक्र जोखिम भरा है; हमारी समझ नचिकेता से डरती है. हमारे संस्कार , हमारा लोकाचार , हमारी मर्यादा सब नचिकेता की संभावना मात्र से दरकने लगते हैं. किस्से-कहानी , मिथकों , भाषणों आदि तक तो ठीक है , लेकिन नचिकेता जैसा बालक सचमुच हमारे सामने खड़ा हो जाए तो...        कथा बड़ी प्यारी है. वाजश्रवा अपनी दयालुता व दान के कारण प्रसिद्ध है. वाजश्रवा नाम ही काफी है. कठोपनिषद् के शंकर भाष्य का एक श्लोक है – “वाजमन्नं तद्दानादिनिमित...

भगत सिंह को जानते हैं ? भाग-3

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       कहने की जरुरत नहीं कि लोगों को भगत सिंह का नाम आकर्षित करता है. पिछले रविवार को टीकाचक में भगत सिंह की बात निकलने पर कई साथियों की प्रतिक्रिया आयी कि वे भगत सिंह के बारे में व उनके लेखन को पढ़ना चाहते हैं. कुलदीप नैयर द्वारा लिखित भगत सिंह की जीवनी पढ़ी जा सकती है. 223 पृष्ठों में सिमटी यह जीवनी ‘सरफरोशी की तमन्ना’ नाम से राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित है. इसमें भगत सिंह के दो महत्वपूर्ण लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ ?’ और ‘बम का दर्शन’ भी शामिल है. इसके अतिरिक्त आधार प्रकाशन , पंचकूला ने ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज ’ नाम से भगत सिंह का समग्र लेखन प्रकाशित किया है. चमन लाल के संपादन में प्रकशित यह किताब 478 पृष्ठों की है और इसकी भूमिका भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह ने लिखी है.        पढ़ना कम हुआ है और आज का भीड़-भारत किताबों की जगह अपनी धारणाओं को पुष्ट करने हेतु ‘प्रॉपगंडा सामग्री ’ को तरजीह देने में लगा है.  फिर भी सच जानने की भूख बनी रहती है. ऐसे में  किताबों के अतिरिक्त कोई और उम्मीद नहीं. इसलिए ...