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मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगत सिंह को जानते हैं ? भाग-2

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       23 मार्च 1931 को महज तेईस साल की उमर में भगत सिंह को फाँसी दी गयी थी. बीते तेईस मार्च को उनकी शहादत के अट्ठासी साल गुजर गए. साथ ही इक्कीसवी सदी में जन्में कई करोड़ बच्चे बालीग होकर इस वर्ष भारत की नयी सरकार के गठन की प्रक्रिया में हिस्सा लेने जा रहे हैं – वे पहली बार मतदान करने जा रहे हैं. ऐसे में अनायास ही भगत सिंह का ख्याल आ रहा है. हम सभी भगत सिंह का नाम जानते हैं और बार-बार उनका नाम दुहराते रहते हैं. ‘नाम जानते हैं ’ का सीधा मतलब है कि हम केवल नाम ही जानते हैं और बार-बार नाम दुहराये जाने के कारण ऐसा भ्रम हो जाता है कि हम भगत सिंह को जानते हैं.        औपचारिक रूप से शिक्षित लोगों के बीच का एक अनौपचारिक सर्वे कि वे भगत सिंह को कितना जानते हैं, बड़ा मजेदार रहा. यहाँ उल्लेखनीय है कि ये वे लोग थे जो हर बात पर उनकी दुहाई देते रहते कि ‘भगत सिंह के आदर्शों को भुला दिया गया , नहीं तो भारत एक अलग ही देश होता.’ उस सर्वे में शामिल लोगों की प्रतिक्रिया का एक नमूना है –        ‘वे पंजाबी थे / क्रांतिकारी...

सराय

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सूफी फकीर हुआ, इब्राहीम. पहले वह एक सम्राट था. एक रात उसने देखा कि, सोया अपने महल में, कोई छप्पर पर चल रहा है. उसने पूछा :        ‘कौन बदतमीज आधी रात को छप्पर पर चल रहा है ? कौन है तू ?’        उसने कहा : ‘बदतमीज नहीं हूं, मेरा ऊंट खो गया है. उसे खोज रहा हूं.’        इब्राहीम को हंसी आ गई. उसने कहा : पागल ! तू पागल है ! ऊंट कहीं छप्परों पर मिलते हैं अगर खो जाएं ? यह भी तो सोच कि ऊंट छप्पर पर पहुंचेगा कैसे ?’        ऊपर से आवाज आई : ‘इसके पहले कि दूसरों को बदतमीज़ और पागल कह , अपने बाबत सोच. धन में, वैभव में, सुरा-संगीत में सुख मिलता है ? अगर धन में, वैभव में, सुरा-संगीत में सुख मिल सकता है तो ऊँट भी छप्परों पर मिल सकते हैं.’        इब्राहीम चौंका. आधी रात थी, वह उठा, भागा. उसने आदमी दौड़ाए कि पकड़ो इस आदमी को. लेकिन तब तक वह आदमी निकल गया. इब्राहीम ने आदमी छुड़वा रखे राजधानी में कि पता लगाओ कौन आदमी था. क्या बात कही ? किस ...

हौआ और नुनेज़ की आँखें

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एच जी वेल्स की एक प्रसिद्ध कहानी है – ‘द कंट्री ऑफ़ द ब्लाइंड.’ अपने छात्र जीवन में हम सबने इसके संक्षिप्त रूप को पढ़ा होगा. आजकल अनायास ही इस कहानी की याद आ जाती है और मुझे लगता हैं हमें इस कहानी को बार-बार याद करते रहना चाहिए.        बड़ी प्यारी कहानी है और बहुत कुछ कह जाती है. एक पर्वतारोही है – नुनेज़ ! पर्वतारोहण के एक अभियान में नुनेज़ पहाड़ से फिसलता है और एक अनोखी घाटी में पहुँच जाता है. यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ के लोग अँधे हैं लेकिन उन्हें अपने अँधेपन की खबर नहीं. वे जी रहे हैं और मस्त हैं अपनी दुनिया में. दिन और रात में कोई फर्क नहीं. नुनेज़ के मन में लालच आता है और वह अपने मन में दुहराता है – ‘अँधों में काना राजा.’ नुनेज़ सोचता है वह इस घाटी का राजा बनेगा क्योंकि उसके पास आँख है. वह सोचता तो है, वह अपने मन में दुहराता तो है कि ‘अँधों में काना राजा ’ लेकिन नुनेज़ पर्वतारोही है , राजनेता नहीं. उसने अपने जीवन में कई साहसिक काम किये थे , पहाड़ तोड़े थे सही अर्थों में – राजा बनने में उसके यही गुण बाधक बन गए. राजनेता होता तो चीजें बड़ी आसान हो जातीं. र...

सामने से मेरे : चंद्रेश्वर

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हम तो बड़े सीधे-साधे लोग हैं. जमाना कितना बेईमान है. कितनी लूट-खसोट मची है. उनको देखिये कितनी मौज में हैं. गाड़ी-बँगला, बैंक-बैलेंस कितना कुछ इकट्ठा कर लिया साहब. कितनी शान में जी रहे हैं.        हमारे अंदर मौज में जीने की, गाड़ी-बँगले की चाहत पलती रही और इस कारण बेईमानी की भी. लेकिन बेईमानी करने हेतु वांछित हिम्मत न होने के कारण अंदर ही अंदर कुंठा बढ़ती चली गयी.        हम ईमानदारी की दुहाई देकर बेईमानों को कोसते रहे और हमारी कुंठा, हीन-भावना बढ़ती रही.        हम बड़े उदार लोग हैं और वे कितने आतताई ! उनका आतंक बढ़ता जा रहा – इतना कि अब अपने अपने-आप को बचा पाना मुश्किल है. हमारा संस्कार, हमारा धर्म कितना उदार है. इसके बरक्स वे ? वे फैलते जा रहे हैं और हम सिकुड़ते जा रहे हैं.        उदारता की दुहाई देकर संकीर्णता को कोसते रहे और हमारी कुंठा बढ़ती रही.        असल में न तो हमारा ईमानदार होना सच था, न तो उनका बेईमान होना. न तो हमारी उदार...

नए भारत में गुरुदेव की कविता ‘इंडियन प्रेयर’ की जरुरत

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आज से 119 साल पहले 1900 के आस-पास गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक कविता लिखी थी – ‘चित्त जेथा भयशून्य’. 1911 में उन्होंने इस कविता का अंग्रेज़ी अनुवाद किया जो गीतांजलि में शामिल हुआ. आगे गुरुदेव ने इस कविता को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भी पढ़ा था. उस दौर में इस कविता का शीर्षक ‘इंडियन प्रेयर ’ था. पराधीनता की बेड़ियों से जकड़े भारत के लिए कामना थी कि ईश्वर इस देश को हर तरह की संकीर्णता से मुक्त कर ज्ञान, सत्य व तार्तिकता से युक्त एक व्यापक चेतना वाली स्वतंत्रता प्रदान करे. आजादी के इकहत्तर साल बीतने के बावजूद और इक्कीसवी सदी के नए भारत के लिए उस प्रार्थना की उतनी ही जरुरत है जितनी उसकी रचना के समय रही होगी. प्रार्थना है कि                               Where the mind is without fear and the head is held high              Where knowledge is free     ...