संदेश

फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रेड कारपेट वेलकम

चित्र
बीते दिनों वे लखनऊ की धरती पर उतरे थे और हमनें उनके लिए लाल कालीन बिछाया था. पूरे शहर को सजाया था. इस सजावट के लिये उपमा भी भक्ति वाली ही होनी चाहिये. इसीलिए एक प्रमुख अख़बार ने मूड सेट करने के लिए लिखा –        “जैसे कभी राम के लिए अयोध्या सजी थी , योगी सरकार ने निवेशकों के लिए लखनऊ को भी उसी तरह सतरंगी चुनरिया उढ़ा दी है.”        उधर सरकार के प्रतिनिधि चहक रहे थे – “लखनऊ नहीं देखा तो इंडिया नहीं देखा...”        बिल्कुल, यहाँ कोई गरीब नहीं दिखा , कोई दुखिया नहीं दिखा; राम राज्य की तरह. आपको मालूम होना चाहिये राम राज्य में कोई दुखिया नहीं था !! कोई रोता नहीं था. हाल के सालों में ‘न्यू इंडिया ’ में भी कोई दुखिया नहीं, कोई रोता नहीं सिवाय इक्के-दुक्के सिरफिरे अ-भक्तों के. वैसे ये अ-भक्त नहीं, कु-भक्त हैं और सही कहें तो इनके लिए भक्त शब्द का इस्तेमाल ही ठीक नहीं, असल में ये द्रोही हैं- विकासद्रोही , देशद्रोही , समाजद्रोही , धर्मद्रोही आदि आदि. निगेटिविटी फैला रहे ये सिरफिरे लोग अखबार भी...

‘9 नवंबर’ में महात्मा गाँधी

चित्र
पिछले हफ्ते महात्मा गाँधी व व उनके बड़े बेटे हरिलाल का जिक्र निकला था. हम किसी भी मसले पर तत्क्षण ‘ फाइनल जजमेंट ’ देने लगते है. आसान है ऐसा करना लेकिन यह भी सच है कि हम महात्मा गाँधी को जितना अधिक जानने का प्रयास करते हैं , उतना ही अधिक पता चलता है कि हम कितना कम जानते हैं. फिर किसी अंतिम निष्कर्ष पर पहुँचने की इतनी जल्दी क्यों ,  यात्रा का थोड़ा आनंद तो लिया जा सकता है. उपन्यास ‘ 9 नवंबर ’ में महात्मा गाँधी के बैद्यनाथ धाम देवघर आने का जिक्र आता है. उस अंश को फिर से पढ़ते हैं....   रह – रह कर उचटती नींद के बीच शेखर के दिन किसी तरह कट रहे थे कि ‘ निश्चय ’ में प्रकांड विद्वान पंडित श्री हरि शंकर चौबे के पांव पड़े – “शेखर बेटा ! ब्राह्मणों और अगड़ों के लिए आज दोहरी परीक्षा है. एक ओर मुसलमानों के अनवरत तुष्टिकरण से सनातन धर्म पर खतरा बढ़ता जा रहा है तो दूसरी ओर सरकार दिनों – दिन अछूतों का दिमाग बिगाड़ती जा रही है. हमें अपने अस्तित्व की लड़ाई स्वयं लड़नी है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा अवरोध हमारे ही अंदर है. सवर्ण – ब्राह्मण आदि ही जो कांग्रेसी रहे हैं या कांग्रेसियों क...

बा ! संतरा केवल आप ही खाइयेगा !

चित्र
बागडोगरा के लिए उड़ान भरने वाली फ्लाइट के इंतजार में कोलकाता एअरपोर्ट पर बैठा हूँ. कल रविवार है और टीकाचक के लिए कुछ लिख नहीं पाया हूँ. कौन पढ़ रहा है , मालूम नहीं लेकिन खूब लिखा जा रहा है ; कौन सुन रहा है – पता नहीं लेकिन लोग बोल रहे हैं. बहुत बोल रहे हैं और न जाने क्या-क्या बोल दे रहे हैं. तो बहुत लिखने व बहुत बोलने के दौर में बगैर कुछ बोले , चुपचाप – बस पढ़ने का मन हो रहा है. तो फिर से एकबार पढ़ रहा हूँ उसके बारे में जिसके बारे में खूब लिखा गया है और आज भी लिखा जा रहा है. भारत वापसी के बाद वह पूरे देश की ख़ाक छान रहा था – मुँह बंद किये लेकिन आँख व कान खोले हुए. ऐसे में उसे बनारस में हिन्दू कॉलेज (जो आगे चल कर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी कहलाया) के उद्घाटन समारोह में बोलने के लिए बुलाया गया. जिसमें वायसराय समेत कई राजा-महाराजा शामिल थे. राजा-महाराजाओं ने इस कॉलेज के निर्माण में भारी चंदा दिया था , इसलिये इस समारोह में उन्हें वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलना बिल्कुल स्वाभाविक था. वैसे भी वे थे तो राजा-महाराजा ही न - सोने-हीरे के आभूषणों से लदे हुए. महिमामंडन के उस समारोह में साधारण से दिखने ...

चमकते भारत में दुखिया का दुःख !?? - भाग - 2

चित्र
पिछले रविवार टीकाचक में ‘ चमकते भारत में दुखिया का दुःख ’ पोस्ट करते समय नहीं सोचा था कि फिर से उसी मसले पर लिखूँगा लेकिन पूरे सप्ताह रह-रह कर मिलती प्रतिक्रियाओं ने आगे लिखने के लिए प्रेरित किया. मैंने भारत में आर्थिक असमानता की गहरी होती खाई का जिक्र करते हुए ऑक्सफेम की रिपोर्ट के हवाले से बस इतना लिखा था कि पिछले एक साल में देश की कुल कमाई का 73% मात्र एक प्रतिशत लोगों के पास चला गया है और गाँव के एक मजदूर को 941 साल लग जायेंगे उतना कमाने में जितना इस देश की चमकती-दमकती कंपनी का टॉप एग्जीक्यूटिव एक साल में कमाता है.        प्रतिक्रिया देने वालों में किसी बड़े पूंजीपति अथवा किसी बड़ी कंपनी के सीईओ के होने का तो सवाल ही नहीं लेकिन मेरे वे मित्र जो ऑक्सफेम की रिपोर्ट पर आधारित मेरे ब्लॉग पर आपत्ति दर्ज कर रहे थे वे मेरी ही तरह भारत के उस 99% लोगों में से थे जिनके सामूहिक हाथों में साल भर की कुल कमाई का मात्र 27% लगा था. मजेदार बात कि आज हमारे अंदर यह बात गहरे तक बैठ गई है कि यदि किसी मुकेश अंबानी की हैसियत एक साल में 67% बढ़कर 38 बिलियन डॉलर हो जाती है तो...