ये कवितायें भी तो प्रेम में ही रची गईं थीं...
तुम्हारे पर कतर देती है....... घनघोर बारिश में मिलन की आस में लंबी यात्रा के पश्चात एक काली रात को जब वह दस्तक देता है अपनी प्रेयसी के दरवाजे पर तो अनायास ही कुछ घटित होता है, उसके बाद के “तुलसी” को सब जानते हैं. लेकिन दरवाजे पर घटित पल भर की घटना तुम्हारे जीवन में भी घटित होती है जब अपनी पूरी लय में मन की गति से भी तेज तुम, उड़ उसके पास पहुँच जाना चाहते हो और तुम्हारी अपनी “अलका” अपने हाथों तुम्हारे पर कतर देती है......... **************** अपनी प्रेयसी का संसार न जाने किसकी तलाश में भटकता हूँ और जब सूरज ढलता है वहाँ जा कर बैठता हूँ कि शीतल चांदनी का स्पर्श मदमाती निशा का नृत्य और सृष्टि की वीणा का साज होगा. आँखे बंद कर लेता हूँ कि तलाश पूरी हुई लेकिन होता है क्या सोचने मात्र से सहसा कोई जोर का धक्का देता है मैं धूल में होता हूँ चांदनी घबरा जाती है निशा का नृत्य थम जाता है और वीणा के तार टूट जाते हैं. धक्का देने वाला कोई और नहीं अपनी ही प्रेयसी का संसार है.