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चलो प्रेम पर लिखते हैं !

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वे मुझसे प्रेम करते थे. प्यार में उन्होंने मेरी किताबें पढ़ डालीं. किताबों को पढ़, वे कुनमुनाये लेकिन कुछ कहा नहीं. बाद में कुछ और रचनाएं पढ़ीं, फिर और ज्यादा कुनमुनाये; लेकिन कुछ कहा नहीं. वे मुझसे प्रेम करते हैं. वे अब मुझे नहीं पढ़ते हैं. अब कुनमुनाते नहीं हैं लेकिन कुछ कहते हैं – क्या लिखते हो !!! कुछ सकारात्मक लिखो. जो बढ़िया है उस पर लिखो, हमेशा कमियों – निगेटिव आस्पेक्ट पर लिखते हो. उजाले पर लिखो. वे अब भी मुझसे प्रेम करते हैं. वे आगे मुझे पढने के बारे में कभी सोचेंगे भी नहीं – यह तय करने के बाद उनका प्यार बढ़ गया है. अब वे मुझे और ज्यादा समझाते हैं – “प्रेम पर लिखो !   कभी प्रेम पर लिखो, मैं पढूंगा नहीं; लेकिन लिखो तो सही.” तो चलिए प्रेम पर लिखते हैं – यह जानते हुए भी कि प्रेम पर लिखा नहीं जा सकता. प्रेम ओढ़ा जा सकता है, प्रेम बिछाया जा सकता है, प्रेम धड़क सकता है, प्रेम हवाओं में फ़ैल सकता है, प्रेम मौन में मुखरित हो सकता है, प्रेम बोला जा सकता है - लेकिन प्रेम पर बोलना अथवा लिखना ?? प्रेम पर ?? प्रेम में होना पर्याप्त है – शब्दों की सीमा से परे. फिर भी हम प...

आइये, भजन-कीर्तन करते हैं !

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पूरा देश भजन-कीर्तन के मूड में लग रहा है. ग्रैंड दिवाली के अवसर पर सरयू नदी के तट पर हमने एक विश्व रिकॉर्ड बनाया और शीघ्र ही हम विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति भी स्थापित करेंगे. दीपावली के दूसरे दिन हमने जय बाबा केदारनाथ का उद्घोष किया और शीघ्र ही केदारनाथ के एक अति भव्य व दिव्य स्वरुप का दर्शन संभव होगा. यह सब बाबा की प्रेरणा से बाबा के बेटे के माध्यम से हो रहा है.        श्रद्धा की अपनी माया है. वह मायावती थी – उसने भी तो मंदिर बनाये थे, प्रतिमा स्थापित की थी; और तो और जीते जी अपनी ही मूर्ति लगवा ली. काबा देखा है, आपने ! वैटिकन सिटी देखी है, आपने ! लेकिन यहाँ अपने आराध्य देव के लिए कुछ किया नहीं कि घर के ही चार दुष्ट चौदह सवाल खड़े करने लगते हैं. आप भले ही कुछ कहो, कुछ करो हम भगवान राम के त्रेता युग को इस धरती पर उतार कर रहेंगे. पुष्पक विमान भी उतरेगा, बंदर-भालू भी आयेंगे. सब कुछ भव्य होना चाहिये – देश चमकता हुआ दिखना चाहिये. सब कुछ अति भव्य - रोड शो याद है न ! जहाँ ईश्वर की कृपा होगी, वहाँ लक्ष्मी होंगी और जहाँ लक्ष्मी होंगी वहाँ सब कुछ भव्य ही तो होगा. भव्...

गिव अप कंट्रोल, सर !

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(कंपनियाँ अथवा आर्गेनाईजेशन अपने स्टाफ सदस्यों को टीम बिल्डिंग, लीडरशिप, मोटिवेशन आदि का प्रशिक्षण देती रहती हैं और तमाम मैनेजमेंट गुरुओं की चर्चा होती है, तमाम किताबों का जिक्र निकलता है. लेकिन हमारे यहाँ, भारत में होने वाली इन चर्चाओं में कोई रिकार्डो सेमलर की किताबों की चर्चा नहीं करता क्योंकि रिकार्डों सेमलर मैनेजमेंट की पारंपरिक सोच की बुनियाद को हिलाता है. इस रविवार टीकाचक में रिकार्डो सेमलर की एक किताब पर बातचीत करते हैं.)    रिकार्डो सेमलर की “द सेवेन डे वीकेंड” पढ़ते समय बरबस एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही थीं –        “पुत्र का आग्रह है        खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए        ताकि सुनिश्चित हो सके        हर घडी नूतन हवाओं का प्रवाह        पिता अनुभवी है, लेकिन        और उसने देखा है        हवा में उड़ते छप्परों को वह निर्देश जारी कर...

तीन कवितायें...

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देव- बीमार व कैदी क्यों होता है आमतौर पर एक दरवाजा मंदिर में और होता नहीं एक भी झरोखा कल पूछा था देवदूत से देवदूत के चेहरे पर उभरी लाचारी व दर्द की रेखाएं अगर होंगे झरोखे परमात्मा हो जायेगा स्वस्थ और उसे कैद रखना होगा मुश्किल अगर हुए एक से अधिक दरवाजे दूत के चेहरे पर दर्द था क्योंकि उसका देव बीमार है और लाचारी क्योंकि बेडियाँ नहीं काट सकता                                           19.09.1996  पुत्र का आग्रह है पुत्र का आग्रह है खिड़कियां खोल देनी चाहिए ताकि सुनिश्चित हो सके हर घड़ी नूतन हवाओं का प्रवाह पिता अनुभवी है, लेकिन और उसने देखा है हवा में उड़ते छप्परों को वह निर्देश जारी करता है क्या जरुरत है खिड़की खोलने की जबकि मौजूद हैं घर में पोलर व सिन्नी के पंखे शीघ्र ही आ जायेगा एअरकंडीशनर लेकिन आज पता नहीं क्यों पुत्र ने जिद पकड़ ली है खिड़कियां खोल देनी चाहिए पुत्र की जिद पिता के लिए परेशानी है ...