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'कवि ने कहा' - ज्ञानेन्द्रपति

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मानव की चेतना यात्रा में सदियों से हमारे साथ एक दुर्घटना होती आयी है. यह दुर्घटना है - हमारा किसी विचारधारा विशेष के समर्थक के रूप में उभरना. हमें पता भी नहीं होता और हम ‘विचारधारा’ के किसी खेमें में शामिल हो अनायास ही असहिष्णुता और आतंक का खेल खेलने लगते हैं.  पक्ष और विपक्ष की यह लड़ाई जब सभ्यता के हर क्षेत्र - साहित्य, कला, संगीत में गहरे तक जड़ फैला चुकी हो, एक “ज्ञानेन्द्रपति” का यह दावा कि उसका पक्ष उसके पाठकों के पक्ष में विलीन हो चुका है तो निस्संदेह वह “ज्ञानेन्द्रपति” एकाकी रह जाता है. लगभग दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य करने के बाद कविता के मोहपाश में फंसे ज्ञानेन्द्रपति सब कुछ त्याग कविता के संग गंगातट - बनारस में बसे, तो कविता विविध रूप  में प्रकट हुई. हिंदी साहित्य के तमाम छोटे - बड़े खेमों से अलग ज्ञानेन्द्रपति ने तीन दशकों से अधिक की रचना यात्रा के सारांश – निवेदन के रूप में अपनी तिरासी कविताओं को 2007 में “कवि ने कहा” के रूप में भेंट करते हुए कहा था – “....... कविता बेशक अपने समय से जूझकर हासिल की जाती है, लेकिन वह उस काल – खण्ड ...

सीवर व सेप्टिक टैंक के शहीद

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा        तिरंगे में लिपटे शव को कंधा देने की होड़ मची है. यह शहीद की शवयात्रा है. श्रद्धा से सिर अनायास ही झुके जा रहे है. सबकी आँखें नम हैं और बंद जुबानों में उसकी परम वीरता व अतुलनीय कुर्बानी की कहानी है. उसने देश की खातिर देश के दुश्मनों व आतंकवादियों की गोलियाँ झेली. लता मंगेशकर जब प्रदीप की पंक्तियों को गाती हैं तो पूरा देश रो पड़ता है –                                 जब देश में थी दीवाली                                 वो खेल रहे थे होली                     ...

ताकि मंदिर-मस्जिद पवित्र बना रहे !

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:. यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:.                            -अथर्ववेद         जिस कुल में नारियों की पूजा होती है , उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होती हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती , वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं.        धार्मिक प्रावधानों व धार्मिक लोगों की महिमा अपरंपार है. आसाम में स्थित कामाख्या मंदिर का नाम अवश्य ही सुना होगा. हमारी अलौकिक परंपरा कि इस मंदिर के गर्भगृह में स्त्री की योनि की प्रतिमा स्थापित है. यही नहीं इस मंदिर में बारिश के मौसम में एक मेला लगता है . हो सकता है इस मेले से आप परिचित हों- अंबुबाची मेला. यदि आपको पता नहीं तो आप चकित हो सकते हैं कि चार दिवसीय इस मेले का आयोजन कामाख्या देवी के मासिक धर्म का उत्सव मनाने के लिए होता है क्योंकि इस अवधि में ही देवी अपने मासिक धर्म से ...

नाम छुपाना, आखिर क्यों ?

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दिसम्बर 2014 की एक सर्द सुबह अखबार के साथ घर के अन्दर एक खबर दाखिल हुई. बीते रात भारत की राजधानी में टैक्सी के अंदर एक पच्चीस वर्षीय युवती के साथ टैक्सी ड्राईवर ने बलात्कार किया था. बलात्कार की घटना हमारे महान भारत के लिये कोई ख़ास खबर नहीं होती जब तक कि पाशविकता का अतिरेक न हो जाय, फिर बीती रात घटी उस छोटी (???) सी घटना का दिलोदिमाग पर छाने का मतलब देर तक नहीं समझ पाया और खासकर तब जब कि वह युवती शराब के नशे में धुत्त थी. रात के ग्यारह बजे पब से एक खुबसूरत महिला का नशे की हालत में निकल, अकेले टैक्सी में सफ़र करना और फिर लगभग बेहोशी की दशा में बेपरवाह सो जाने पर ड्राईवर अगर स्वयं को नियंत्रित कर पाने में असफल रहा तो ऐसा कौन सा बड़ा जुर्म हो गया ! आखिर वह इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती है ? हया की प्रतीक इतनी बेहया कैसे हो सकती है ? उस पर अगर लड़कों से गलती हो जाय तो फांसी की माँग – यह कैसा न्याय ? जन प्रतिनिधि और अगर वे नेता जी हों फिर तो अपनों की भावना का ख्याल रखना एक नैतिक दायित्व बन जाता है. इसीलिए अपने दायित्वों का निर्वहण करते हुए भावनाओं की अभिव्यक्ति भी लाजिमी है –   ...