तीन तलाक़ पर रोक और लोकमत
तलाक़-ए-बिद्दत या इंस्टेंट तलाक़ पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल एक झटके में लोकसभा से पारित हो गया है. सत्ता पर काबिज लोगों की नीयत जो भी हो यह एक स्वागत योग्य फैसला है. स्वागत योग्य इसलिये भी कि कदम-कदम पर यदि धर्म खतरे में पड़ने लगे तो एक बार थम के विचार कर लेना उचित है. आस्थावान लोगों की मान्यता कहती है कि धर्म को ईश्वर ने बनाया. साथ ही ईश्वर सर्वशक्तिमान भी है तो एक मासूम सा सवाल कि फिर ईश्वर के बनाये धर्म को खतरा कैसे हो सकता है. सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना बेबस कैसे हो सकता है कि हर घड़ी उसके धर्म पर मिटने का खतरा मंडराता रहे और वास्तव में यदि ऐसा खतरा हो तो वह धर्म नहीं हो सकता , फिर उसका मिट जाना ही सबके हित में होगा. वैसे यह दौर धार्मिक आस्थाओं (मैं धार्मिक मूढ़ता कहने की धृष्टता नहीं कर सकता , इतना साहस भी नहीं) के परचम लहराने का है. कोई भी धार्मिक आस्थाओं के नाम पर कुछ भी कर सकता है. आज से सत्तर साल स्वतंत्र भारत में जब महिलाओं की स्थिति को सुधारने पर विचार किया तो आस्थावान लोग हिल गए थे. बहु विवाह की समाप्ति , अंतरजातीय विवाह की अनुमति , तलाक को कानूनी दर्जा , बेटियों को संपत...