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तीन तलाक़ पर रोक और लोकमत

तलाक़-ए-बिद्दत या इंस्टेंट तलाक़ पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल एक झटके में लोकसभा से पारित हो गया है. सत्ता पर काबिज लोगों की नीयत जो भी हो यह एक स्वागत योग्य फैसला है. स्वागत योग्य इसलिये भी कि कदम-कदम पर यदि धर्म खतरे में पड़ने लगे तो एक बार थम के विचार कर लेना उचित है. आस्थावान लोगों की मान्यता कहती है कि धर्म को ईश्वर ने बनाया. साथ ही ईश्वर सर्वशक्तिमान भी है तो एक मासूम सा सवाल कि फिर ईश्वर के बनाये धर्म को खतरा कैसे हो सकता है. सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना बेबस कैसे हो सकता है कि हर घड़ी उसके धर्म पर मिटने का खतरा मंडराता रहे और वास्तव में यदि ऐसा खतरा हो तो वह धर्म नहीं हो सकता , फिर उसका मिट जाना ही सबके हित में होगा. वैसे यह दौर धार्मिक आस्थाओं (मैं धार्मिक मूढ़ता कहने की धृष्टता नहीं कर सकता , इतना साहस भी नहीं) के परचम लहराने का है. कोई भी धार्मिक आस्थाओं के नाम पर कुछ भी कर सकता है. आज से सत्तर साल स्वतंत्र भारत में जब महिलाओं की स्थिति को सुधारने पर विचार किया तो आस्थावान लोग हिल गए थे. बहु विवाह की समाप्ति , अंतरजातीय विवाह की अनुमति , तलाक को कानूनी दर्जा , बेटियों को संपत...

रजनीश के बोल

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एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर से रात के समय विदा होने लगा तो मित्र ने अपनी लालटेन उसके हाथ में थमा दी. अंधे ने कहा , ‘ मैं लालटेन लेकर क्या करूं ? अंधेरा और रोशनी दोनों मेरे लिए बराबर हैं.’ मित्र ने कहा , ‘ रास्ता खोजने के लिए तो आपको इसकी जरुरत नहीं है , लेकिन अंधेरे में कोई दूसरा आपसे न टकरा जाये इसके लिये यह लालटेन कृपा करके आप अपने साथ रखें.’ अंधा आदमी लालटेन लेकर जो थोड़ी ही दूर गया था कि एक राही उससे टकरा गया. अंधे ने क्रोध में आकर कहा , ‘ देखकर चला करो. यह लालटेन नहीं दिखाई पड़ती है क्या ?’ राही ने कहा , ‘ भाई तुम्हारी बत्ती ही बुझी हुई है.’ प्रकाश दूसरे से मिल सकता है लेकिन आँख दूसरे से नहीं मिल सकती. जानकारी दूसरे से मिल सकती है लेकिन ज्ञान दूसरे से नहीं मिल सकता. और अगर आँख ही न हो तो प्रकाश का क्या करियेगा ? ज्ञान न हो तो जानकारी बोझ हो जाती है.        अंधा आदमी बिना लालटेन के ज्यादा सुविधा में था क्योंकि सम्हलकर चलता , होशपूर्वक चलता. अंधा हूँ , तो डरकर चलता. हाथ में लालटेन थी , आदमी अँधा था तो आश्वासन से चलने लगा. अब कोई...

संस्कारित बच्चे और मानव बम

आज से लगभग अस्सी साल पुरानी बात है. एक छोटे से गाँव में एक छोटा सा बच्चा है – सात साल का. यह बच्चा अपने वृद्ध नाना के साथ रहता है. कहने की जरुरत नहीं कि दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं. बच्चा हर घड़ी अपने नाना से चिपका रहता, यहाँ तक कि नाना के साथ ही सोता , खाता-पीता , खेलता-कूदता. इस बच्चे के गाँव में एक मंदिर है. गाँव वाले मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. बच्चे के नाना भी नियमित रूप से मंदिर जाते हैं. यह बच्चा घर से अपने नाना के पीछे-पीछे निकलता , लेकिन जैसे ही मंदिर करीब आता उसके नाना कहते हैं –        “बेटा , जाओ खेलो-कूदो.” रोज यह होता , नाना बच्चे को मंदिर के दरवाजे से बहला-फुसला कर खेलने के लिए भेज देते हैं. मंदिर से बार-बार वापस कर दिये जाने पर बच्चा एक दिन अपने आपको रोक नहीं पाता है. वह पूछ बैठता है –  “रोज मैं आपके पीछे-पीछे मंदिर तक आता हूँ और आप मुझे मंदिर के अंदर नहीं जाने देते. गाँवभर के बूढ़े-बुजुर्ग, माँ-बाप अपने संग बच्चों को मंदिर लेकर जाते हैं – उन्हें अच्छे संस्कार देते हैं.” नाना कहते हैं – “थोड़े बड़े हो जाओ – च...

सोमनाथ की पताका लहरा रही है !

"आज जिन लोगों को सोमनाथ याद आ रहे हैं, इनसे पूछिए कि क्या तुम्हें इतिहास पता है ? तुम्हारे परनाना, तुम्हारे पिता जी के नाना, तुम्हारी दादी माँ के पिता जी जो इस देश के पहले प्रधानमंत्री थे, जब सरदार पटेल सोमनाथ का उद्धार करवा रहे थे तब उनकी भौहें क्यों तन गईं थी."      इक्कीसवीं सदी का आधुनिक व वैज्ञानिक भारत इस तंज पर जोर की ताली बजाता है तो इसके जवाब में डरे हुए लोग अपनी भक्ति व अपने नेता की भक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं -       “सारा देश जानता है कि वे अनन्य शिवभक्त हैं और कहने की जरुरत नहीं कि वे न सिर्फ हिन्दू धर्म से हैं , बल्कि ‘जनेऊधारी ’ हिंदू हैं.”       भजन-कीर्तन करते भारत के लिए पूजा-अर्चना आज किसी व्यक्ति का निजी मामला नहीं है. आज उसके प्रदर्शन का दौर है. समय धार्मिक उद्घोष का है , शंखनाद का है. कोई यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि ‘नहीं, मैं नहीं मानता !’ कोई यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि राजा (प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आदि जन प्रतिनधि) व राज्य को पंथनिरपेक्ष रहना है. पंथनिरपेक्षता...